-सांस के रोगों के विशेषज्ञ, फिजियोथैरेपिस्ट, डाइटिशियन, काउंसलर, सोशल वर्कर आदि की एक पूरी टीम देती है रोगी को मार्गदर्शन
सेहत टाइम्स
लखनऊ। पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन श्वसन रोगों के लिए एक आधुनिक चिकित्सा विधा है, जिसके माध्यम से सांस के रोगियों को दवाओं एवं इन्हेलर्स के अतिरिक्त कैसे उनका जीवन गुणवत्तापूर्वक बनाया जा सकता है। यह सिखाया जाता है। कैसे उनकी रोज़मर्रा की परेशानियां को कम किया जा सकता है, सिखाया जाता है। साथ ही ऐसे सांस के रोगियों की कार्यक्षमता एवं पोषण को कैसे बढ़ाया जा सकता है।
यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में आज 25 जनवरी को ’’पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन एवं पैलिएटिव केयर’’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेंटर के इंचार्ज डॉ0 सूर्यकान्त व विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकान्त ने कही। ज्ञात रहे कि किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में एक पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र बनाया गया है, जिसमें सांस के रोगी जैसे- अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या फिर टीबी के संपूर्ण इलाज के बाद भी जिनकी सांस फूलती है या परेशानी रहती है, ऐसे रोगियों को कुछ शारीरिक व्यायाम, पोषण सलाह तथा काउंसलिंग के माध्यम से रोगियों की जीवन की गुणवत्ता और उनकी कार्य करने की क्षमता को बढ़ाने की कोशिश की जाती है।
डॉ सूर्यकान्त ने कहा कि रोगियों को कुछ योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान की भी सलाह दी जाती है। इस पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र में रोगियों को डॉक्टर की सलाह पर पंजीकृत किया जाता है। रोगी को प्रारंभ में केंद्र में आना पड़ता है और आवश्यकता अनुसार रोगी को ऑनलाइन सेशन के द्वारा भी प्रशिक्षित किया जाता है। इसी पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र के द्वारा आज इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की संरक्षक केजीएमयू की कुलपति डॉ0 सोनिया नित्यानन्द ने इस संगोष्ठी के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं।
डॉ0 सूर्यकान्त ने बताया कि देश में करीब 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या टीबी का पूर्ण उपचार होने के पश्चात भी जिनकी सांस फूलती रहती है ऐसे रोगियों को दवाओं एवं इन्हेलर से पूरी तरह से आराम नहीं मिल पाता है। अतः इन रोगियों के लिए शोध के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन की आवश्यकता पड़ती है। इस पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन में सांस के रोगों के विशेषज्ञ, फिजियोथैरेपिस्ट, डाइटिशियन, काउंसलर, सोशल वर्कर आदि की एक पूरी टीम की आवश्यकता होती है जो कि रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में मौजूद है। अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय शोधों के आधार पर यह देखा गया है कि तीन महीने के पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन के प्रयोग से रोगियों को काफी आराम मिल जाता है, साथ ही साथ उनके जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के वक्ता डॉ0 सूर्यकान्त, डॉ0 अंकित कुमार, त्रिवेन्दरम् से डॉ0 श्रीदेवी वारियर, कोलकता से डॉ0 सिरसेन्दु राय, मुम्बई से डॉ0 अंकिता तथा पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेन्टर केजीएमयू से डॉ0 शिवम श्रीवास्तव, दिव्यानी गुप्ता, सुक्रति मिश्रा ने अपने व्याख्यान दिये।
इस आयोजन में विभाग के चिकित्सक डॉ0 आर ए एस कुशवाहा, डॉ0 राजीव गर्ग, डॉ0 अजय कुमार वर्मा, डॉ0 आनन्द श्रीवास्तव, डॉ0 दर्शन बजाज, डॉ0 ज्योति बाजपेयी, डॉ0 अंकित कुमार एवं विभाग के सभी रेजिडेन्ट्स, पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेन्टर की टीम के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ0 शिवम श्रीवास्तव, डाइटिशियन दिव्यानी गुप्ता और सोशल वर्कर कम-काउंसलर सुकृति मिश्रा और डेटा मैनेजर पवन कुमार पाण्डेय उपस्थित रहे। इसके साथ ही विभाग के शोधार्थी और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ0 ए.के. चौधरी भी उपस्थित रहे। इस संगोष्ठी में लगभग 400 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया। इस संगोष्ठी के समापन में डॉ0 अंकित कुमार ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 सूर्यकान्त ने बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने अपने तीन क्रेडिट आवर्स भी प्रदान किये है और सभी प्रतिभागियों को क्रेडिट आवर्स के साथ सर्टिफिकेट भी प्रदान किये जायेंगे। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग करने वाले चिकित्सकों, चिकित्सा छात्रों एवं फिजियोथेरेपिस्ट से कोई भी शुल्क नही लिया गया।