Sunday , July 27 2025

प्रो आरके धीमन ने कहा, 2030 तक हेपेटाइटिस उन्मूलन हो सकता है अगर…

-राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के चेयरमैन भी हैं प्रोफेसर धीमन

-हेपेटाइटिस के महत्व के बारे में युवा डॉक्टरों और प्रैक्टिसिंग फिजीशियंस को प्रशिक्षित करना जरूरी

-एसजीपीजीआई के हेपेटोलॉजी विभाग ने आयोजित किया है दो दिवसीय मास्टर क्लास


सेहत टाइम्स

लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के निदेशक व राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के चेयरमैन पद्मश्री प्रोफेसर आर के धीमन ने कहा है कि वायरल हेपेटाइटिस को 2030 तक समाप्त करने का लक्ष्य अवश्य पूरा हो सकता है, यदि हम अपने युवा डॉक्टरों और प्रैक्टिसिंग फिजीशियंस को वायरल हेपेटाइटिस के महत्व के बारे में प्रशिक्षित कर सकें। उन्होंने कहा कि वायरल हेपेटाइटिस की शीघ्र जांच और उपचार की आवश्यकता है।

प्रो धीमन ने यह बात विश्व हेपेटाइटिस दिवस (28 जुलाई) के अवसर पर संस्थान में 26-27 जुलाई को आयोजित दो दिवसीय मास्टर क्लास के आयोजन का शुभारम्भ करते हुए अपने सम्बोधन में कही। इस कार्यक्रम का आयोजन एसजीपीजीआई के हेपेटोलॉजी विभाग द्वारा स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्रों और चिकित्सकों के लिए किया गया है। जनसामान्य और स्वास्थ्य कर्मियों के बीच वायरल हेपेटाइटिस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है।

ज्ञात हो प्रो धीमन को ही देश में राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम शुरू करने का श्रेय जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायरल हेपेटाइटिस के उन्मूलन के लिए 2016 में कार्यक्रम शुरू किया गया था जिसमें 2030 तक इसके उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।

आपको बता दें कि 2016 में पंजाब स्थित चंडीगढ़ पीजीआई में जब प्रो धीमन विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे, उस समय उन्होंने अपने संस्थान में वायरल हेपेटाइटिस पर नियंत्रण के लिए कार्यक्रम शुरू किया था। इसे पंजाब मॉडल के रूप में भी जाना जाता है। बाद में 2018 में भारत सरकार द्वारा इस कार्यक्रम को पूरे देश में लागू करने के लिए अपने हाथ में ले लिया गया, तथा प्रो धीमन को इस कार्यक्रम का चेयरमैन बनाया गया।

डब्ल्यूएचओ का एचआईवी, वायरल हेपेटाइटिस और यौन संचारित संक्रमणों पर वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र की रणनीति (2022-2030) वायरल हेपेटाइटिस को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करने के स्पष्ट लक्ष्यों को रेखांकित करती है। इस रणनीति का लक्ष्य 2030 तक नए हेपेटाइटिस संक्रमणों को सालाना 520,000 मामलों तक और हेपेटाइटिस से संबंधित मौतों को 450,000 तक कम करना है, जो 2015 की तुलना में घटनाओं में 90% और मृत्यु दर में 65% की कमी दर्शाता है। वायरल हेपेटाइटिस को दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण जन स्वास्थ्य समस्या माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों के अनुसार, 2015 में वायरल हेपेटाइटिस के कारण दुनिया भर में 1.34 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई, जो दुनिया भर में तपेदिक से होने वाली मौतों के बराबर है। भारत में, अनुमान है कि 40 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी से और 6-12 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से पीड़ित हैं।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य हेपेटाइटिस से लड़ना और 2030 तक देश भर में हेपेटाइटिस सी का उन्मूलन करना, हेपेटाइटिस बी और सी (सिरोसिस और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (यकृत कैंसर)) से जुड़ी संक्रमित आबादी, रुग्णता और मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाना और हेपेटाइटिस ए और ई के कारण होने वाले जोखिम, रुग्णता और मृत्यु दर को कम करना है।

नि:शुल्क उपचार केंद्र चला रहा है एसजीपीजीआई

एसजीपीजीआई का हेपेटोलॉजी विभाग उत्तर प्रदेश राज्य का पहला ऐसा विभाग है, जो उन्नत यकृत रोगों से पीड़ित रोगियों को समर्पित सेवाएँ प्रदान कर रहा है। विभाग राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत वायरल हेपेटाइटिस के निदान और उपचार के लिए एक निःशुल्क उपचार केंद्र चला रहा है।

दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में वायरल हेपेटाइटिस के विभिन्न प्रकारों पर व्याख्यान और चर्चाओं की व्यापक शृंखला शामिल है, जिसमें हेपेटाइटिस बी और सी पर विशेष ध्यान दिया गया है। चूंकि वायरल हेपेटाइटिस जानलेवा हो सकता है और सालाना लाखों लोगों की जान ले रहा है, इस नवगठित विभाग की पहल चिकित्सा कर्मियों और समाज के लिए एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम हो सकती है।

डॉ अमित गोयल, प्रोफेसर और हेपेटोलॉजी विभाग के प्रमुख, पाठ्यक्रम निदेशक ने वायरल हेपेटाइटिस के निदान और प्रबंधन पर व्याख्यान दिए और पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया। संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. देवेंद्र गुप्ता ने ज़ोर देकर कहा कि वायरल हेपेटाइटिस एक जन स्वास्थ्य समस्या है।

हेपेटोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमित गोयल ने टीकाकरण रणनीतियों और नैदानिक ​​तरीकों पर ज़ोर दिया। विभाग के संकाय डॉ. अजय कुमार मिश्रा और डॉ. सुरेंद्र सिंह ने भी छात्रों को शिक्षित किया और इंटरैक्टिव सत्र सुनिश्चित किए। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और मेदांता अस्पताल के कई प्रसिद्ध गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट ने इस गतिविधि में संकाय के रूप में भाग लिया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में लखनऊ और आसपास के कई जिलों के 150 से अधिक मेडिकल छात्रों और चिकित्सकों ने भाग लिया। छात्रों को वायरल हेपेटाइटिस पर अपने शोध कार्य दिखाने का अवसर भी दिया गया और इसके लिए उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया  गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.