-58 वर्षीय गंभीर मरीज की वेंटीलेटर पर निर्भरता में कमी आना शुरू
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए आशा की किरण बनकर फूटी प्लाज्मा थेरेपी से उत्तर प्रदेश में पहली बार इलाज की शुरुआत हो गई है। इस थेरेपी से इलाज की शुरुआत यहां किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में 26 अप्रैल यानी रविवार को हुई। शुरुआती रुझानों में इसके सफल होने के संकेत मिल रहे हैं।
इस नयी थेरेपी से शुरुआत होने की जानकारी देने के लिए केजीएमयू ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। अपरान्ह एक बजे आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट, नयी थेरेपी से इलाज कर रहे मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वीरेन्द्र आतम व डॉ डी हिमांशु, रेस्पेरेटरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकांत, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ तूलिका चंद्रा, हेमेटोलॉजी विभाग के डॉ एसपी वर्मा, मेडिसिन विभाग के डॉ केके सावलानी, पैथोलॉजी विभाग के डॉ वाहिद अली के साथ केजीएमयू के मीडिया प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने भी सम्बोधित किया।
कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट ने बताया प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना संक्रमित गंभीर 58 वर्षीय मरीज का उपचार शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के लिए यह बहुत गौरव की बात है कि शासन ने हमें इस थेरेपी से से इलाज के लिए अनुमति दी। उन्होंने कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों से अपील की कि वे स्वेच्छा से अपना प्लाज्मा दान दें ताकि दूसरे संक्रमित मरीजों की जिंदगी को बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति के दान किए हुए 500 मिलीलीटर प्लाज्मा से कोरोना संक्रमित दो गंभीर मरीजों के उपचार में सुविधा होगी। प्रो भट्ट ने बताया कि अब तक तीन लोगों ने अपना प्लाज्मा केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में दान किया है।
कुलपति ने बताया कि प्लाज्मा लेने से पहले दान कर्ता की विभिन्न जांचें की जाती हैं तथा तय मानकों पर खरे उतरने के बाद ही व्यक्ति का प्लाज्मा लिया जाता है। उन्होंने प्लाज्मा दान करने वालों के प्रति आभार जताते हुए कहा कि सच्चे अर्थों में कोरोना वारियर्स ये मरीज हैं जो कोरोना जैसी बीमारी से लड़कर विजयी हुए हैं तथा अब अपना प्लाज्मा दान देकर दूसरों को कोरोना पर विजय पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
प्रो वीरेन्द्र आतम व डॉ डी हिमांशु जिनकी देखरेख में प्लाज्मा थेरेपी से उपचार किया जा रहा है उन्होंने कहा दान किये गए प्लाज्मा से प्राप्त एंटीबॉडी इस बीमारी से लड़ने में सहायक होती हैं। इसमें आईजीजी एंटीबॉडी की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि दानकर्ताओं के रक्त में पर्याप्त एंटीबॉडी की जांच करने के बाद ही इसे प्रयोग में लाया जाता है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में उपस्थित रेस्पिरेट्री मेडिसिन मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सूर्यकांत ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी से शुरू हुए इलाज के अच्छे परिणाम आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि थेरेपी से इलाज शुरू किये अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं लेकिन उपचार किये जा रहे मरीज को वेंटीलेटर की आवश्यकता में कमी आयी है, इसका अर्थ है कि उपचार ठीक दिशा में हो रहा है। उन्होंने आशा जतायी कि इस थेरेपी से निश्चित रूप से लाभ होगा। डॉ सूर्यकांत ने प्लाज्मा दान देने की अपील करते हुए कहा कि दूसरे की सहायता के लिए दान देना हमारी परम्परा रही है, दधीचि ने अपनी हड्डियां दान कर दी थीं, कर्ण ने अपने कुंडल और कवच एक पल भी सोचे बिना दान कर दिये थे।
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ तूलिका चंद्रा ने बताया कि प्लाज्मा दान किये जाने से इसके दान कर्ताओं को किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं होती है। तथा गंभीर कोरोना संक्रमित मरीजों को इसकी पहली खुराक 200ml की दी जाती है इस प्लाज्मा में उपस्थित एंटीबॉडी गंभीर बीमार के शरीर में कोविड-19 को निष्क्रिय करने में सहयोग करता है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि दान किया यह प्लाज्मा 1 वर्ष तक डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा जा सकता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस को हेमेटोलॉजी विभाग के डॉ एसपी वर्मा, मेडिसिन विभाग के डॉ केके सावलानी, पैथोलॉजी विभाग के डॉ वाहिद अली के साथ केजीएमयू के मीडिया प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने भी सम्बोधित करते हुए कोरोना से ठीक हुए लोगों से प्लाज्मा दान करने की अपील की।