-संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के हेड डॉ अमित गुप्ता ने रखी राय
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। गुर्दे के रोगी (क्रॉनिक किडनी डिजीज) के उपचार में चिकित्सक और डायटीशियन दोनों का भूमिका का समावेश होना आवश्यक है, इससे मरीज को गुणवत्तापूर्ण जीवन मिलेगा।
यह बात संजय गांधी पीजीआर्ई के नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अमित गुप्ता ने यहां छठे एडवांस कोर्स इन रीनल न्यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्म के दूसरे व अंतिम दिन कहीं। फिजीशियंस और डायटीशियंस के लिए इस एडवासं कोर्स का आयोजन गोमती नगर स्थित होटल हयात रीजेन्सी में संजय गांधी पीजीआई के गुर्दा रोग विभाग और सोसाइटी ऑफ रीनल न्यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्म के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। डॉ गुप्ता ने कहा कि दुर्भाग्यवश चिकित्सकों को पढ़ाई के समय न्यूट्रीशियंस के बारे मे कुछ पढ़ाया नहीं जाता है, इसलिए उनका ज्ञान इस बारे में ज्यादा नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि मरीज पूछता है कि खाने में क्या खायें, क्या न खायें, तो इस बारे में उन्हें अच्छी जानकारी नहीं होती। इसमें डायटीशियन का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि उन्हें इसकी प्रॉपर गाइडेंस मिली होती है लेकिन डायटीशियंस को यह नहीं पता रहता है कि इस मरीज की बीमारी किस स्तर की है।
डॉ गुप्ता ने कहा कि डॉक्टर को बीमारी के बारे में ज्ञान है लेकिन खाने के बारे में नहीं है, डायटीशियन को खाने के बारे में जानकारी है लेकिन बीमारी के बारे में उतना ज्ञान नहीं है। उन्होंने कहा कि कौन सी बीमारी में कितना प्रोटीन देना है, कितना नमक देना है यह तो डॉक्टर बता देगा लेकिन किस तरह से दिया जायेगा, यह डायटीशियन बता सकते हैं। इसीलिए दोनों का मेल होना जरूरी है इसलिए इस तरह के जो कोर्स होते हैं यह इन चीजों पर फोकस करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा भी होता है कि बीमारी में मरीज कहीं गलत सुन लेता है, पढ़ लेता है, यानी उसे गलत सूचना होती है, इससे मरीज का ही नुकसान होता है। मरीज को प्रॉपर सूचना मिले और प्रॉपर ट्रीटमेंट और पोषण मिले तभी उसकी बीमारी में फायदा होगा।