Wednesday , October 30 2024

गिलियन बैरे सिंड्रोम से ग्रस्त बच्ची को मौत के मुंह से वापस निकाल लायीं केजीएमयू की पीडियाट्रीशियंस

-सात माह तक चले इलाज, गहन देखभाल के बाद बच्ची हुई स्वस्थ, अस्पताल से दी गयी छुट्टी

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग की चिकित्सकों ने गिलियन बैरे सिंड्रोम (एक प्रकार का लकवा) से ग्रस्त आठ वर्ष की बच्ची को सात माह के अथक प्रयास के बाद अंतत: स्वस्थ करने में सफलता प्राप्त कर ली है। गिलियन बैरे सिंड्रोम एक ऑटो इम्यून डिजीज है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। परिणामस्वरूप बच्चा पैरालिसिस का शिकार हो जाता है, यह पैरालिसिस शरीर में नीचे से ऊपर की ओर होता है।

मिली जानकारी के अनुसार आठ वर्षीया बच्ची मदीहा को बाल रोग विभाग में प्रोफेसर डॉ. माला कुमार, अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. शालिनी त्रिपाठी और सहयोगी प्रोफेसर डॉ. स्मृति के तहत भर्ती किया गया था। जब मदीहा अस्पताल आई, तो उसके चारों हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे और उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी, इसलिए उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। उसे IVIg थेरेपी दी गई, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में उसे एक और खुराक दी गई।
अस्पताल के पीआईसीयू (PICU) में रहते हुए, मरीज़ सेप्टिक शॉक और वेंटिलेटर से जुड़ा निमोनिया से भी पीड़ित हो गई। उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, इसलिए न्यूरोलॉजी विभाग से सलाह ली गई। उन्होंने सीएसएफ (CSF) परीक्षण और प्लाज्माफेरेसिस की सलाह दी। प्लाज्माफेरेसिस के 3 चक्र किए गए। संक्रमण के अनुसार एंटीबायोटिक्स को बदला गया। लंबे समय तक इंटुबेशन की जरूरत को देखते हुए ट्रेकिओस्टॉमी की गई। बच्चे को दौरे भी पड़े, जिसके लिए आवश्यक उपचार किया गया।

शुरुआत में बच्चे को कमजोरी के कारण ट्यूब के जरिए भोजन दिया गया। मरीज को हाई ब्लड प्रेशर हो गया, इसलिए उसे मुंह से लेने वाली दवाएं दी गईं। लगातार तेज धड़कन (टैचीकार्डिया) के लिए भी इलाज किया गया। धीरे-धीरे बच्चे के हाथों की कमजोरी में सुधार हुआ और उसने मुंह से खाना शुरू कर दिया। मरीज लगभग 14 दिनों तक वेंटिलेटर के बिना रहा, लेकिन सांस लेने में परेशानी के कारण उसे फिर से वेंटिलेटर पर रखा गया। धीरे-धीरे उसे वेंटिलेटर से हटाया गया और सामान्य हवा पर रखा गया। बच्चा लगभग 5 महीने तक ट्रेकिओस्टॉमाइज्ड था, और बाद में ट्रेकिओस्टॉमी साइट को पट्टी बांधकर बंद कर दिया गया। बच्चे को आहार चार्ट दिया गया। निचले अंगों में आई जकड़न (कॉन्ट्रैक्चर्स) के लिए फिजियोथेरेपी और पुनर्वास चिकित्सा की सलाह ली गई और उन्हें फिजियोथेरेपी करने की सलाह दी गई। अस्पताल में चला लम्बा इलाज बहुत कठिन था, लेकिन गहन इलाज और देखभाल से वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी। अस्पताल में 7 महीने तक इलाज के बाद बच्चे की स्थिति में सुधार हुआ और अब उसे छुट्टी दे दी जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.