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होम्योपैथी में एमडी, पीएचडी के स्टूडेंट्स की राह हुई आसान

-कोर्स के दौरान पेपर्स तैयार करने के लिए साक्ष्य आधारित केस रेफरेन्स पुस्तक में उपलब्ध

-Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology किताब में सात त्वचा रोगों के सन्दर्भ केस उपलब्ध

-इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोटिंग होम्योपैथी के वेबिनार में मोलस्कम कॉन्टेजिओसम रोग पर डॉ गिरीश गुप्ता ने दिया व्याख्यान

सेहत टाइम्स
लखनऊ। हाल के वर्षों में अनेक मंचों से बार-बार यह कहा जाता रहा है कि शिशु से लेकर वृद्धजनों तक के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होम्योपैथी के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए इसके प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है, इसके लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ ही विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए शोध कार्य को बढ़ाने की जरूरत है। होम्योपैथी में एमडी और पीएचडी के इच्छुक छात्रों के लिए यह बड़ी राहत की बात है कि अब उनके पास अपने पेपर्स तैयार करने के लिए जर्नल में छप चुके रिसर्च केसेस के रिफरेन्स उपलब्ध हैं, ये रिसर्च केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) के जर्नल जैसे प्रतिष्ठित जर्नल्स में प्रकाशित हैं।

जानकारों का कहना है कि त्वचा रोगों के लिए एमडी या पीएचडी के विद्यार्थियों को अपना पेपर तैयार करने के लिए थ्योरी का मटेरियल तो उपलब्ध हो जाता है लेकिन साक्ष्य आधरित उपचार पर प्रकाशित रिसर्च पेपर्स का अभाव होने के कारण इन विद्यार्थियों को अपने पेपर्स में केसेस के रिफरेन्स लिखने में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब इस अभाव को दूर करने में एक बड़ी भूमिका वरिष्ठ शोधकर्ता, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक डॉ गिरीश गुप्ता निभा रहे हैं।

यह बात हाल ही में इंटरनेशनल फोरम फॉर प्रमोटिंग होम्योपैथी द्वारा आयोजित वेबिनार में सामने आयी। इस वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता द्वारा मोलस्कम कॉन्टेजिओसम रोग के लिए साक्ष्य आधारित होम्योपैथिक चिकित्सा एवं प्रबंधन विषय पर उपचारित किये चार मॉडल केसेस और शोध कार्य को विस्तार से प्रस्तुत किया। वेबिनार से जुड़े चिकित्सकों के साथ चर्चा के दौरान डॉ गिरीश ने बताया कि एमडी/पीएचडी करने वाले स्टूडेंट्स जिन्हें डर्मेटोलॉजी विषय मिलता है उन्हें साक्ष्य आधारित केसेस के अधिकृत सन्दर्भों का बहुत अभाव रहता है, लेकिन अब इन रेफरेन्स के लिए मेरी लिखी बुक एविडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्मेटोलॉजी Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। इस किताब में त्वचा की सात बीमारियों विटिलिगो, सोरायसिस, एलोपेशिया एरिएटा, लाइकेन प्लेनस, वार्ट, मोलस्कम कॉन्टेजिओसम और माइकोसिस ऑफ़ नेल के साक्ष्य आधारित उपचारित किये गए मॉडल केसेस दिए गए हैं। यह किताब amazon पर उपलब्ध है।

वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता ने मोलस्कम कॉन्टेजिओसम के चार मॉडल केसेस प्रस्तुत करते हुए बताया कि मोलस्कम कॉन्टेजिओसम रोग ज्यादातर बच्चों व बड़ों को होता है, बुजुर्गों में सामान्यतः नहीं होता है। उन्होंने कहा कि स्किन डिजीज का जितना अच्छा इलाज होम्योपैथी में है, उतना दूसरी पैथी में नहीं है इसे क्लासिकल होम्योपैथी से आसानी ठीक किया जा सकता है। क्लासिकल होम्योपैथी को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें इलाज रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है यानी रोगी को जिस प्रकार की दिक्कतें हैं , उसके लक्षणों, उसकी आदतों, उसकी मनःस्थिति, उसके व्यवहार, उसकी पसंद-नापसंद, उनके साथ घटी खास घटनाओं आदि की हिस्ट्री लेकर ही मरीज विशेष के लिए सिंगल दवा का चुनाव किया जाता है।

वेबिनार में डॉ गिरीश गुप्ता ने मोलस्कम कॉन्टेजिओसम के जिन चार मॉडल केसेस का प्रेजेंटेशन दिया उनमें पहला केस चार साल की बच्ची का था, जिसके चेहरे पर दाने थे, बहिर्मुखी स्वभाव वाली बच्ची को अंधेरे से डर लगता था, ठंडा पानी पीना पसंद करती थी वह आइसक्रीम कोल्ड ड्रिंक का सेवन बहुत करती थी इसके साथ ही नमकीन चीज भी उसे पसंद थी। बच्ची 29 जून 2017 को लायी गयी तब पहली बार दवा दी गयी इसके बाद 13 नवम्बर, 2017 को काफी हद तक ठीक हो गयी थी।

दूसरे केस में 5 साल के बच्चे को कीड़े मकोड़े और अंधेरे से डर लगता था। मीठा खाना पसंद करता था, ठंडक में रहना पसंद करता था, भावुक होना, जल्दी रोना, जैसे लक्षण थे। बच्चा पहली बार 19 मार्च 2014 को आया -26 जून 2014 को लगभग ठीक हो गया।

तीसरा मॉडल केस 31 साल की महिला थी उनके चेहरे पर और ठोड़ी के नीचे दाने थे। संयुक्त परिवार में रहने वाली इस महिला का पति सऊदी अरब में रहता था, बहुत तनाव में रहती थी, उसको घर से सपोर्ट नहीं था, उसके तीन बच्चे थे, वह अपनी बात किसी से कह नहीं पाती थी, अकेले में रोती थी, लोग ताने देते थे, जल्दी गुस्सा आना, सांप से डर जैसे लक्षण थे 1 मई 2019 को इलाज शुरू हुआ 15 अक्टूबर 2019 को ठीक इलाज बंद हो गया।

चौथा मॉडल केस 5 साल के बच्चे का था जिसे बहुत जल्दी जुकाम-बुखार हो जाता था। बच्चा बहुत बोलने वाला, गंभीर, जानवरों से प्यार करने वाला, जरा सी आइसक्रीम खाने पर जुकाम हो जाता था लेकिन फिर भी वह आइसक्रीम पसंद करता था। 15 मई, 2014 को इलाज शुरू हुआ तथा 14 नवम्बर 2017 को बंद हो गया।

डॉ गिरीश ने अपने प्रेजेंटेशन में मोलस्कम कॉन्टेजिओसम पर की गयी अपनी शॉर्ट स्टडी के बारे में भी जानकारी दी। यह पेपर एशियन जर्नल ऑफ़ होमियोपैथी में मई से जुलाई 2014 वॉल्यूम 8 नंबर दो ( 27 ) पर प्रकाशित किया गया है।

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