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अंग प्रत्यारोपण के बाद लटकती रहती है संक्रमण की तलवार

लखनऊ । यदि किसी मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है तो उसे संक्रमण होने का बेहद खतरा रहता है। प्रतिरोधक शक्ति बहुत कम होने के कारण साधारण व्यक्ति की अपेक्षा अंग प्रत्यारोपित कराये हुए व्यक्ति को संक्रमण का ज्यादा खतरा रहता है। अनेेक ऐसे कीटाणु होते हैं जो निष्क्रिय पड़े रहते हैं, ये ही कीटाणु प्रतिरोधक क्षमता घटने पर सक्रिय हो जाते हैं और संक्रमण पैदा कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति के संक्रमण की जांच तत्काल कराना चाहिये। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद संक्रमण होने की संभावना 20 से 40 प्रतिशत है।

संक्रमण का निदान और उपचार पर लोहिया इंस्टीट्यूट मेंं संगोष्ठी आयोजित

यह जानकारी डॉ राम मनोहर लोहिया इंंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में आज अंग प्रत्यारोपण से संबंधित एक संगोष्ठïी में दी गयी। संक्रमण की पहचान और उसका उपचार कैसे किया जाये विषय पर चर्चा के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर व इंचार्ज डॉ ललित दर और संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ आरके शर्मा ने स्पीकर के रूप में भाग लिया।

प्रत्यारोपण में दी जाने वाली दवाओं से घटती है रोग प्रतिरोधक शक्ति

चिकित्सकद्वय ने बताया कि अंग प्रत्यारोपण कराने वाले व्यकितयों को जो दवायें दी जाती हैं उनके सेवन से मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जाती है इसीलिए उसे संक्रमण होने की संभावना अधिक रहती हैं। इसलिए आवश्यक है कि जिस स्थान पर रोगी रहे वहां की खूब अच्छी तरह से सफाई रखनी चाहिये। उन्होंने बताया कि फंगस के संक्रमण से ग्रस्त मरीज की जान को बहुत खतरा होता है, संक्रमण से मौतों की संख्या का आंकड़ा 3 से 4 फीसदी है।

कमजोर इम्युनिटी होने पर सक्रिय हो जाते हैं कीटाणु

डॉ शर्मा ने बताया कि हमारे आसपास के वातावरण में बहुत से कीटाणु रहते हैं, उदाहरण के रूप में तपेदिक यानी टीबी के कीटाणु भी कभी न कभी हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं लेकिन रोग प्रतिरोधक शक्ति अच्छी होने के कारण यह हावी नहीं हो पाते हैं, लेकिन जैसे ही रोग प्रतिरोधक शक्ति घटती है वैसे ही वह व्यक्ति टीबी का शिकार हो जाता है।

फफूं दी का संक्रमण बहुत ज्यादा खतरनाक

डॉ दार ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों में निमोनिया का वायरस सीएमवी का खतरा रहता है। इसके अलाव फफूं दी का संक्रमण बहुत खतरनाक होता है। उन्होंने बताया कि चूंकि शरीर बाहरी बॉडी को जल्दी-जल्दी स्वीकार नहीं कर पाता इसीलिए कहा जाता है कि गुर्दा दान करने वाला व्यक्ति मरीज का सगा-सम्बन्धी हो। उन्होंने बताया कि शरीर प्रत्यारोपित किया हुआ गुर्दा स्वीकार कर ले इसीलिए ऐसी दवायें दी जाती हैं, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि इन दवाओं से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।

देर से प्रकट होते हैं लक्षण

डॉ शर्मा ने बताया कि कुछ संक्रमण ऐसे होते हैं जिनके लक्षण बहुत देर से प्रकट होते हैं। ऐसे में थोड़ा सी भी दिक्कत होने पर उसे टाले नहीं, अपने डॉक्टर से जरूर सम्पर्क करें। उन्होंने बताया कि इसीलिए चिकित्सक अंग प्रत्यारोपण करने से पहले मरीज और डोनर दोनों में संक्रमण की जांच करते हैं कि ऐसा तो नहीं है कि कोई संक्रमण थोड़ा सा हो जो कि प्रत्यारोपण के बाद उभर जाये।

साफ-सुथरी जगह पर रखें मरीज को

डॉ शर्मा ने सलाह दी कि प्रत्यारोपण कराने के बाद मरीज को साफ-सुथरी जगह रखें, जो कि हवादार हो, ूमरीज को भीड़भाड़ में भी न जाने को कहा जाता है। मरीज को साफ पानी दिया जाना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि यदि व्यक्ति का जॉब ऐसा है कि उसे भीड़भाड़ में रहना पड़ता है तो उसे जॉब बदलने की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया कि प्रत्यारोपण के बाद दूसरे-तीसरे सप्ताह से संक्रमण का खतरा शुरू हो जाता है, जबकि दो से छह माह की अवधि में संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
संगोष्ठी का आयोजन करने वाली लोहिया संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ विनीता मित्तल ने बताया कि संगोष्ठी का शुभारम्भ संस्थान के निदेशक प्रो दीपक मालवीय ने किया।  इस मौके पर माइक्रोबायोलॉजी विभाग के चौथे वार्षिक न्यूजलेटर का विमोचन भी किया गया। इसमें माइक्रोबायोलॉजिकल संकलन, वार्षिक एन्टीबायोग्राम रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया है।

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