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क्रॉनिक किडनी डिजीज का मुख्‍य कारण है मोटापा, बच्‍चों को भी हो रही

आखिरी चरण में इलाज के लिए सिर्फ सर्जरी या प्रत्यारोपण का विकल्प

नयी दिल्‍ली/लखनऊ। क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) का मुख्‍य कारण मोटापा है। मोटापा सीधे तौर पर चयापचय सिंड्रोम को बढ़ाता है, जिससे किडनी की कार्यप्रणाली में वर्कलोड बढ़ने के कारण किडनी डैमेज हो जाती है। जबकि दूसरी ओर यह उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों को जन्म देता है, जिससे किडनी बुरी तरह प्रभावित होती है। दोनों ही मामलों में सही समय पर हस्तक्षेप जरूरी है और यदि इस पर ध्यान न दिया गया तो स्थिति दोगुना तेजी से खराब हो सकती है।

यह जानकारी फोर्टिस इंस्टीट्यूट ऑफ रीनल साइंसेस और फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल हॉस्पिटल (एफएचवीके) के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजी सलाहकार, डॉक्टर तनमय पांड्या ने ग्‍वालियर में दी। पिछले एक दशक में ग्वालियर जैसे टियर 1 शहरों में लंबे समय के माटापे से संबंधित किडनी की बीमारियों में 40% तक वृद्धि हुई है। डॉक्टरों के अनुसार, मोटापे और क्रोनिक किडनी रोगों का संयोजन शरीर के लिए घातक है। मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि के साथ यह प्रमुख स्वास्थ्य चिंता का कारण बन रहा है।

उन्‍होंने कहा कि पिछले 5 सालों में हमने बच्चों के मोटापे के मामलों में लगातार वृद्धि देखी है। हालांकि लोगों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है, लेकिन सीकेडी बच्चों को भी तेजी से अपनी चपेट में लेती है। सालों से मैं ऐसे परिवारों का इलाज कर रहा हूं, जिनमें मोटापा और सीकेडी दोनों के जीन्स पाए गए और हैरानी वाली बात यह है कि यह आने वाली पीढ़ी में भी फैल सकता है।”

उन्‍होंने कहा कि वसंत कुंज स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल, कैलाश हॉस्पिटल के सहयोग से नियमित रूप से ओपीडी सेवाएं प्रदान करता रहा है। फोर्टिस हॉस्पिटल की स्टडी के अनुसार फोकल सेग्मेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस (एफएसजीएस), एक खतरनाक स्थिति है, जिससे मोटापे से ग्रस्त रोगियों में किडनी की विफलता की समस्या देखी जाती है। हालांकि, समय पर निदान से परिणाम बेहतर हो सकते हैं लेकिन आखिरी चरण में इलाज के लिए सर्जरी या प्रत्यारोपण का विकल्प रह जाता है।

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर के 18% पुरुष और 21% महिलाएं माटापे का शिकार हैं। यह साबित हो चुका है कि मोटापा क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) और एंड-स्टेज रीनल डिजीज (ईएसआरडी) के विकास के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करता है। सामान्य वजन वाले लोगों की तुलना में, मोटे या अधिक वजन वाले लोगों में ईएसआरडी विकसित होने की संभावना 7 गुना तक बढ़ जाती है।

“डॉक्टरों की टीम ने दोनों ही समस्याओं से निजात पाने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित शुगर लेवल, संतुलित ब्लड प्रेशर, सही वजन के लिए सही आहार, धूम्रपान बंद करने, मेडिटेशन और ओटीसी पिल्स की सलाह दी। यदि किसी की उम्र 40 से ज्यादा है तो उन्हें नियमित वार्षिक जांच की सलाह दी जाती है।

फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल हॉस्पिटल के सुविधा निदेशक, मंगला देम्बी ने बताया कि, हालांकि, क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के मरीजों में रीनल ट्रांसप्लानंट ही एकमात्र विकल्प बचता है, लेकिन जिनको किडनी डोनर की जरूर होती है, उन्हें आमतौर पर हेमोडायलेसिस या पेरिटोनियल डायलेसिस के साथ-साथ जीवनशैली में सही बदलाव की सलाह दी जाती है। मोटापे और सीकेडी के मरीजों की संख्या को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि लोगों को इसके बारे में सभी जरूरी जानकारी दी जाएं, जिससे वे इन समस्याओं से बच सकें।