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नॉर्मल और सीजेरियन डिलीवरी की भी अहम भूमिका है शिशु को अस्‍थमा से बचाने में

होने वाले शिशु को अस्‍थमा से बचाने के लिए गर्भवती रखें इन बातों का खयाल

लखनऊ। अगर पति या पत्‍नी में किसी एक को अस्‍थमा है तो उनके बच्‍चों को 25 प्रतिशत, और अगर पति या पत्‍नी के परिवार वालों में किसी को अस्‍थमा है तो होने वाले बच्‍चे को अस्‍थमा होने का खतरा 5 से 10 प्रतिशत है। लेकिन गर्भावस्‍था से लेकर प्रसव तक की स्थितियों में कुछ सावधानियां बरत कर शिशु को अस्‍थमा के खतरे से बचाया जा सकता है। इन्‍हीं सावधानियों में एक है शिशु का जन्‍म नॉर्मल डिलीवरी से होना न कि सीजेरियन से।

 

यहां प्रेस क्‍लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में यह जानकारी देते हुए केजीएमयू के पल्‍मोनरी विभाग के हेड प्रो सूर्यकांत ने बताया कि पांच देशों ने मिलकर एक स्‍टडी की जिसमें यह बात सामने आयी है। इसके कारणों के बारे में पूछने पर उन्‍होंने बताया कि प्राकृतिक रूप से शिशु के पैदा होने का तरीका नॉर्मल डिलीवरी है। उन्‍होंने इसे स्‍पष्‍ट करते हुए बताया कि जब शिशु प्राकृतिक तरीके यानी नॉर्मल डिलीवरी से जन्‍म लेता है तो उसे वैजाइनल फ्ल्‍यूड का प्रोटेक्‍शन मिलता है जिससे जब वह गर्भ से बाहर आता है तो वह फ्ल्‍यूड एक कवच का काम करता है जबकि सीजेरियन पैदा हुए शिशु को सीधे बाहर निकाल लेने के कारण उसे वैजाइनल फ्ल्‍यूड का कवच नहीं मिलता है और बाहरी वातावरण से उसका तुरंत सामना हो जाता है, यह एक बड़ा कारण है जिससे अस्‍थमा होने का खतरा बढ़ जाता है।

उन्‍होंने बताया कि विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार भारत में 9 करोड़ 35 लाख लोग और विश्‍व में करीब 59 करोड़ 50 लाख लोग अस्‍थमा से पीड़ित हैं। भारत में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है और इसके रोगियों की संख्‍या में इजाफा हो रहा है। अस्‍थमा छुआछूत की बीमारी नहीं है लेकिन अनुवांशिक जरूर है।

 

वातावरण, खानपान, जीवन शैली पर ध्‍यान जरूरी

प्रो सूर्यकांत ने बताया कि स्‍टडी में पाया गया है कि वातावरण, खानपान और जीवन शैली का अस्‍थमा रोग होने में बहुत फर्क पड़ता है। गर्भावस्था में महिला फास्‍ट फूड, पिज्‍जा, बर्गर, मैगी, कोल्‍ड ड्रि‍न्‍क का सेवन करती हैं तो होने वाले बच्‍चे को अस्‍थमा होने का खतरा रहता है। यही नहीं यह भी देखा गया है कि हाईवे और ज्‍यादा प्रदूषण वाले स्‍थानों पर बने घरों में रहने वाली महिलाओं के शिशुओं को अस्‍थमा का ज्‍यादा खतरा पाया गया। इसी प्रकार अगर गर्भावस्‍था के दौरान महिला के आसपास कोई व्‍यक्ति धूम्रपान करता है तो भी इसका असर होने वाले शिशु पड़़ता है और उसे अस्‍थमा होने का खतरा रहता है। ज्ञात हो धूम्रपान करने वाले व्‍यक्ति के अंदर तो 30 प्रतिशत धुआं जाता है बाकी 70 प्रतिशत आस-पास मौजूद व्‍यक्ति की सांसों में जाता है। प्रो सूर्यकांत ने बताया कि फर वाले खिलौने, टेडीबियर, पालतू जानवर, कालीन, बहुत ज्‍यादा परदे, बहुत ज्‍यादा सोफे के कवर यानी जहां धूल जमने की गुंजाइश ज्‍यादा रहती है वहां भी शिशुओं को अस्‍थमा होने का खतरा ज्‍यादा रहता है।

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गर्भवती पोछा लगायें, झाड़ू नहीं

 उन्‍होंने बताया कि इसी प्रकार अगर घर में सीलन है, जाले लगे हैं, घर के कोनों में गंदगी है तो भी होने वाले शिशु के लिए अस्‍थमा का खतरा पैदा कर सकते हैं। 20 वर्षों से अस्‍थमा-एलेर्जी का इलाज करने वाले प्रो सूर्यकांत ने बताया कि उन्‍होंने इतने वर्षों में वे गांव-गांव जाकर, वहां शिविर लगाकर, स्‍लम एरिया, हर तरह की बस्‍ती में जाकर इलाज किया है और हर चीज को नजदीक से ऑब्‍जर्व किया है और यह उनका व्‍यक्तिगत अनुभव है कि गर्भवती माता को झाड़ू लगाने से बचना चाहिये बल्कि पोछा जरूर लगायें इसकी सीधी वजह है कि झाड़ू लगाने में धूल उड़ती है जबकि पोछा लगाने में धूल के कण दब जाते हैं। उन्‍होंने बताया कि जो बच्‍चे पिज्‍जा, बर्गर, मैगी, कोल्‍ड ड्रि‍न्‍क का ज्‍यादा सेवन करते हैं उन्‍हें अस्‍थमा होने का खतरा जयादा रहता है। उन्‍होंने बताया कि जिन बच्‍चों को अस्‍थमा होने का खतरा रहता है उनमें 29.3 प्रतिशत बच्‍चों को इस तरह के खान पान के कारण अस्‍थमा हो गया।