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कितनी भी व्‍यस्‍त क्‍यों न हों मां, नौ मिनट तो बच्‍चे के लिए निकालने ही होंगे

नवजात से लेकर किशोरावस्‍था तक के बच्‍चों की समस्‍याओं के समाधान के लिए विशेषज्ञों का जमावड़ा, तीन दिवसीय यूपीपेडीकॉन शुरू 

लखनऊ 16 नवम्‍बर। आजकल ज्‍यादातर माता-पिता नौकरी-पेशा वाले हो गये हैं, इसके पीछे तर्क है कि इस महंगाई में ठीकठाक जीवनयापन के लिए ऐसा करना जरूरी है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इस आपा-धापी में आपके बच्‍चे को आपका कितना समय मिल रहा है, आपका ऐसा समय जो आपके बच्‍चे की जिन्‍दगी को संवारने के लिए बहुत जरूरी है। कितनी भी व्‍यस्‍त मां हों लेकिन उन्‍हें तीन-तीन-तीन (कुल नौ मिनट) तो बच्‍चे के लिए निकालने ही होंगे वरना ऐसा न हो, कि जिस चाहत के साथ नौकरी करके अपने बच्‍चे के भविष्‍य को बनाने में आप व्‍यस्‍त हैं, उस चाहत को ग्रहण लग जाये।

 

यह बात उत्तर प्रदेश पेडिकान के तत्वावधान में आज से शुरू हुए  39वें स्टेट कांफ्रेंस ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के पहले दिन आयोजित कार्यशाला में संजय गांधी पीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पियाली भट्टाचार्य ने कही। कॉन्‍फ्रेंस के पहले दिन हुईं छह कार्यशालाओं के बारे में जानकारी देते हुए कार्यक्रम के संयोजक डॉ आशुतोष वर्मा ने बताया कि आज तीन वर्कशाप KGMU के कलाम सेण्टर में हुई और तीन वर्कशॉप राजधानी के विभिन्न मेडिकल इंस्‍टीट्यूट्स में हुईं। कलाम सेंटर में डॉ. पियाली भट्टाचार्य के नेतृत्व में आयोजित हुई “ऐडोलेशन वर्कशाप” में 10 से 18 साल तक की उम्र के बच्चों में रही समस्याओं में बाल रोग विशेषज्ञ किस तरह से इलाज करें उसके बारें में डॉक्टर्स को सिखाया और समझाया गया।  ऐडोलेशन दरअसल एक ऐसी समस्या या बीमारी है जिसमें किशोर हो रहे बच्चे यह समझ ही नहीं पाते कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। लिहाजा वे गलत राह पर चल पड़ते हैं उनको इस मेन्टल टेंशन से निकाला जाये उसके बारें में इस वर्कशाप में बालरोग विशेषज्ञों को समझाया और सिखाया गया।

डॉ. पियाली भट्टाचार्या ने बताया कि आज के दौर में किशोरों की सबसे बड़ी समस्या है अपनी बातों को एक्सप्रेस न कर पाना। उन्होंने कहा कि इस तरह के लोगों के साथ काम कर पाना सबसे मुश्किल होता है क्योकि पहली बात तो ऐसे लोग हमारे पास जल्दी आते नहीं है क्योकि वो स्कूल या स्पोर्ट्स की एक्टिविटी में मशगूल होते हैं जो शाररिक रूप से तो सही है पर मानसिक रूप से सही नहीं है। मेन्टल हेल्थ के दायरे में बहुत सारी समस्यायें हो रही है बच्चों को। इस संदर्भ में जो तीन चीज हम लोग पकड़ पाएं है उनमे पहली चीज हैं माँ-बाप का बिजी होना। अक्सर बच्चे आकर ये शिकायत करते हैं कि हमने मम्मी से बात करने की कोशिश की और मम्मी ने कहा बाद में बात करना यानि माँ के पास बच्चे के लिए समय नहीं है क्योकि वो दो जगह अपने काम को बाँट रही है पहला ऑफिस में दूसरा घर में लिहाजा बच्चे के लिए उसके पास समय नहीं है, तो बच्चा किसके साथ अपनी परेशानिया शेयर करें।

 

उन्‍होंने कहा कि दूसरी चीज बच्चे को 9 मिनट कम से कम बच्चें को माँ-बाप से मिलना चाहिए। पहले तीन मिनट उसे तब मिलने चाहिए जब वो सुबह सो कर उठे क्‍योंकि जगते ही मां के प्‍यार भरे स्‍पर्श और दुलार से बच्‍चे का मन प्रफुल्लित हो जाता है। इसी प्रकार दूसरा तीन मिनट तब जब वो स्कूल से घर आयें, बच्‍चों से पूछें कि आज स्‍कूल में क्‍या हुआ, उन्‍हें कोई दिक्‍कत तो नहीं, प्‍यार से अगर उसकी कमीज का कॉलर ही ठीक कर दें तो मां के स्‍पर्श मात्र से ही बच्‍चे में नयी ऊर्जा का संचार हो जाता है, इसी प्रकार अंतिम तीन मिनट उसे तब मिले जब वो रात में सोने जाएँ क्‍योंकि आजकल लोरी, कटोरी और स्‍टोरी गुजरे जमाने की बातें कर दी गयी हैं तो ऐसे में आपके तीन मिनट बच्‍चे के व्‍यवहार को बनाने में बहुत कारगर होंगे।

 

उन्‍होंने कहा कि आज के दौर में बच्चे इंटरनेट से मशगूल है जबकि इंटरनेट के उपयोग के लायक इनका दिमाग तैयार नहीं होता है इंटरनेट में क्या अच्छा है और क्या बुरा ये वो तय नहीं कर पाते और चूँकि गलत रास्ता हमेशा आसान होता है इसलिए किशोर सबसे ज्यादा उसकी तरफ भागते हैं लिहाजा उनके अंदर गुस्सा, नशा की लत और असंतुष्टि पनपती है। आवश्‍यक यह है कि चाहे मोबाइल हो, कम्‍प्‍यूटर हो या टीवी हो, इसके लिए घंटे निर्धारित करने होंगे क्‍योंकि लम्‍बे समय तक स्‍क्रीन का इस्‍तेमाल जहां बच्‍चों का समय खा रही है वहीं उनकी आंखें भी खराब कर रही हैं। ये चीज आज के लगभग हर किशोर के मन में घर कर रही है।

 

संयोजक डॉ आशुतोष ने बताया कि आज पहले दिन KGMU के कलाम सेंटर में पहली वर्कशॉप “नियोनेटल वेंटिलेशन” की हुई जिसमे हम लोगों ने प्रदेश के जितने भी बालरोग विशेषज्ञ हैं, उनको वेंटिलेशन और कृत्रिम श्‍वास के द्वारा किस तरीके से  नवजात शिशुओं की मृत्यु कम की जा सकती है, इसके बारें में बताया गया। ये वर्कशॉप भारत की बड़ी प्रोफेसर सुषमा नागिया, प्रो माला कुमार और डॉ एस.एन सिंह के नेतृत्व में हुई है।

 

इसके अलावा दूसरी वर्कशॉप जो हुई उसका नाम है “क्रेडल टू क्रेयान” जिसके अंतर्गत हम लोगो ने बाल रोग विशेषज्ञों को ये सिखाने का प्रयास किया है जिन बच्चों में पैदाइशी विकृतियां है या जिनके पनपने में कुछ दिक्कतें है उन्हें किस तरह से आगे ले जाया जाये। ये वर्कशाप डॉ अनुराग कटियार के नेतृत्व में हुई।  कलाम सेंटर में हुई तीसरी वर्कशॉप के अलावा चौथी वर्कशॉप लखनऊ के डिवाइन हॉस्पिटल में हुई है जिसमे नवजात बच्चों के हार्ट में आ रही समस्याओं व उनके इलाज के विषय में आयी हुई नई टेक्नालॉजी के विषय में बाल रोग विशेषज्ञों को सिखाया व समझाया गया है। ये वर्कशॉप डॉ ए.के. श्रीवास्तव के नेतृत्व में संपन्न हुई है. पांचवी वर्कशॉप विवेकानंद पॉलिक्लिनिक में शिशुओं के गुर्दा रोग से सम्बंधित हुई है। ये वर्कशॉप डॉ निरंजन कुमार सिंह के नेतृत्व में संपन्न हुई है। इसी तरह छठी और अंतिम वर्कशॉप एरा मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएट क्लिनिक नाम से हुई जिसमे हमारे प्रोफेशन में नए बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टरों को ये सिखाया गया है कि उनको किस तरह बच्चों को देखना चाहिये। बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार उन्हें रखना है। शिशुओं में क्या नई बीमारियां आयी हैं आदि के बारें में बताया गया।

 

नियोनेटल वेंटिलेशन के बारें में बात करते हुए इस वर्कशॉप की हेड डॉ सुषमा नागिया ने बताया कि कुछ बच्चों में श्‍वास की दिक्कत होती है जैसे श्‍वास उनकी बहुत तेज चल रही होती है तो कभी बहुत धीमे, ऐसे बच्चों को वेंटिलेटर के द्वारा कृत्रिम श्‍वास दी जाती है, पर वेंटिलेटर लगते समय किन चीजों का ध्यान रखना है, कैसे पैरामीटर सेट करने है, कैसी मशीन लेना जरुरी है, कितने देर बच्चे को वेन्टीलेट करना है आदि चीजें आज की वर्कशॉप में नवजात विषेशज्ञों को सिखाई व बताई गयीं और आज की वर्कशॉप में सबसे ज्यादा प्राइवेट प्रेक्टिस करने वाले पेडिकान डॉक्टर्स ने शिरकत की ताकि वो ये समझ सकें किस तरह उन्हें शिशुओं को वेन्टीलेट करना है।