18 साल से अंगदान के प्रति जागरूकता फैला रहे महाराष्ट्र के प्रमोद लक्ष्मण महाजन की बाइक यात्रा का लखनऊ पहुंचने पर हुआ स्वागत
लखनऊ 16 नवम्बर। इंडियन मेडिकल एसोसिएश्न की लखनऊ शाखा के अध्यक्ष व केजीएमयू के पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सूर्यकांत ने देहदान के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए कहा है कि देहदान की शुरुआत भारत वर्ष में महर्षि दधीचि ने की थी, जिस स्थान पर महर्षि दधीचि ने अपना शरीर भस्म करके हड्डियां वज्र बनाने के लिए दी थीं, उस पावन भूमि मिश्रिख (जिला सीतापुर) से लगे लखनऊ से नेत्रदान, अंगदान, देहदान के लिए मैं लोगों का आह्वान करता हूं कि हजारों साल पूर्व शुरू किये गये इस पावन कार्य को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें। ज्ञात हो राक्षसों को मारने के लिए दधीचि की हड्डियों से बने वज्र का इस्तेमाल देवताओं ने किया था।
विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए डॉ सूर्यकांत ने यह विचार आज शुक्रवार को यहां गोमती नगर स्थित रेस्टोरेंट शीरोज में आयोजित एक स्वागत समारोह में व्यक्त किये। यह समारोह महाराष्ट्र के सांगली के रहने वाले 67 वर्षीय प्रमोद लक्ष्मण महाजन के स्वागत में आयोजित किया गया था। आपको बता दें कि प्रमोद लक्ष्मण महाजन ने वर्ष 2000 में एक पूर्व सैनिक को अपना एक गुर्दा दान किया था, तब से प्रमोद राज्यों में बाइक से यात्रा करते हुए लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करते रहते हैं। इसी क्रम में बीती 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र से शुरू की गयी 10000 किलोमीटर की बाइक यात्रा के तहत प्रमोद गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड होते हुए उत्तर प्रदेश पहुंचे हैं।
समारोह का आयोजन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और राइडर्स ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। मुख्य अतिथि लखनऊ की जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव रीमा मल्होत्रा ने अपने सम्बोधन में कहा कि गरीब व्यक्ति अगर अपना मुकदमा लड़ने के लिए अधिवक्ता का खर्च वहन नहीं कर सकता है तो राज्य विधिक आयोग अपना वकील उस व्यक्ति के मुकदमे के लिए उपलब्ध कराता है।
विनायक ग्रामोद्योग संस्थान के शैलेन्द्र श्रीवास्तव, आईरोन विंग्स राइडर्स क्लब के प्रेसीडेंट चंदन चौधरी, ल्यूपिन के सीनियर रीजनल सेल्स मैनेजर युवराज भटनागर, लोन वूल्फ के मिथलेश मौर्य और राइडर सिराज मिर्जा की उपस्थिति के बीच डॉ सूर्यकांत ने कहा कि अंगदान करना एक अच्छा कदम है, उन्होंने हाल ही में हुई आईएएस राकेश मित्तल की मृत्यु का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने भी अपनी आंखें दान कर दी थीं। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि नेत्रदान की अगर बात करें तो इसमें सिर्फ आंखों की पुतली के आगे लगा पर्दा (कार्निया) निकाला जाता है, पूरी आंख नहीं। इसी प्रकार रक्त दान के लिए भी लोगों को आगे आना चाहिये।
उन्होंने एक और खास जानकारी देते हुए बताया कि मनुष्य के शरीर में 5 लीटर रक्त होता है और उसमें से सिर्फ 350 मिली लीटर रक्त निकाला जाता है, और उसकी भी पूर्ति एक सप्ताह में हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह सोचिये कि शरीर में जो रक्त में रेड ब्लड सेल्स (आरबीसी) होते हैं उनकी आयु करीब 120 दिन होती है इसके बाद वह सेल्स मरने लगते हैं और नये बनते जाते हैं, ऐसे में जो सेल्स मर कर खत्म हो जायेंगे वे अगर किसी के काम आ सकें तो अच्छी ही बात है। उन्होंने बताया कि लोगों में यह भ्रम होता है कि ब्लड देने से कमजोरी आ जाती है, इस बात को लेकर उन्होंने एक पुराना किस्सा बताते हुए कहा कि सन 1991 में एक व्यक्ति अपनी बीमार पत्नी के लिए भी अपना खून देने को तैयार नहीं था। इस पर डॉ सूर्यकांत उसे ब्लड बैंक ले गये और उसके सामने पहले खुद अपना रक्तदान किया और उसे चलकर दिखाया कि देखो मुझे कुछ नहीं हुआ, इस तरह उस व्यक्ति को भी रक्तदान करने के लिए तैयार कर लिया। इस मौके पर डॉ सूर्यकांत ने समारोह में उपस्थित लोगों के बीच देहदान और नेत्रदान के लिए पंजीकरण कराये जाने वाले फॉर्म भी वितरित कराये जिसे भरकर लोगों ने जमा करने का वादा किया है।