Saturday , November 23 2024

200 से ज्‍यादा लैब में हुई जांचों की रिपोर्ट पर दस्‍तखत की खानापूर्ति करने वाले पैथोलॉजिस्‍ट का लाइसेंस निलंबित

महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल का कड़ा कदम, नवी मुम्‍बई के पैथोलॉजिस्‍ट ने अलग-अलग जिलों में फैला रखा था अपना जाल

 

निलंबित पैथोलॉजिस्‍ट का कहना, सब झूठ है, इस फैसले के खिलाफ जाउंगा बॉम्बे हाई कोर्ट

मरीजों की पैथोलॉजी जांच का बिना व्‍यक्तिगत पर्यवेक्षण किये जांच रिपोर्ट पर हस्‍ताक्षर करने वाले मुम्‍बई के एक पैथोलॉजिस्‍ट का लाइसेंस महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल (एमएमसी) ने छह माह के लिए निलंबित कर दिया है। आपको बता दें कि महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल को शिकायत मिली थी कि यह पैथोलॉजिस्‍ट 200 से ज्‍यादा पैथोलॉजी के लिए जांच रिपोर्ट पर सिर्फ दस्‍तखत करने का कार्य करता था जबकि जांच पैथोलॉजिस्‍ट को अपनी व्‍यक्तिगत देखरेख में कराना आवश्‍यक होता है।

डॉ संदीप यादव

महाराष्‍ट्र पैथोलॉजिस्‍ट एंड माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉ संदीप यादव से मिली जानकारी के अनुसार कर्जत, रोहा, पनवेल, नालसोपारा, वसई और विरार सहित राज्य भर में 200 से अधिक पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाओं के लिए व्यक्तिगत पर्यवेक्षण के बिना-कथित रूप से रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए नवी मुंबई स्थित पैथोलॉजिस्‍ट डॉ प्रवीण शिंदे के लाइसेंस को छह माह के लिए निलंबित कर दिया है। इस अवधि में डॉ शिंदे किसी भी तरह की प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे। एमएमसी ने कहा है कि डॉ शिंदे पेशे की गरिमा को बरकरार रखने में असफल हुए हैं।

 

आपको बता दें कि राज्य के प्रमाणित पैथोलॉजिस्‍ट्स की सबसे बड़ी बॉडी महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ प्रैक्टिसिंग पैथोलॉजिस्ट (एमएपीपी) की शिकायत पर जांच के बाद एमएपीपी ने डॉ शिंदे का निलं‍बन किया है। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इस बारे में वरिष्ठ एमएमसी के अधिकारियों ने कहा कि दो साल की जांच के बाद यह पाया गया कि डॉ प्रवीण शिंदे “पेशे की गरिमा बनाए रखने में नाकाम रहे” थे।

हालांकि, बताया जा रहा है कि शिंदे ने आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि वह उच्‍च न्‍यायालय में अपील दायर करने के निर्धारित 60 दिनों की अवधि के भीतर बॉम्बे हाईकोर्ट में एमएमसी के फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। शिंदे पर महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल का निलं‍बन का निर्णय इन छह महीने की अ‍वधि के बाद ही लागू होगा।

आपको बता दें महाराष्‍ट्र सरकार ने जून 2016 में एक संकल्‍प पत्र में शरीर के तरल पदार्थ, मूत्र, रक्त और ऊतक के नमूने का विश्लेषण करने और चिकित्सा अभ्यास के रूप में ऐसी चिकित्सा रिपोर्टों पर हस्ताक्षर करने को परिभाषित किया है। इसके अनुसार किसी लैब में तैनात एक पंजीकृत पैथोलोजिस्‍ट ही अपनी देखरेख में हुई जांच की रिपोर्ट पर हस्‍ताक्षर कर सकेगा।

डॉ संदीप ने बताया कि जांच में पाया गया था कि डॉ शिंदे की नवी मुम्‍बई में मेट्रो केयर पैथोलॉजिकल लेबोरेटरी होने के बावजूद उनका नाम और दस्‍तखत का प्रयोग पूरे महाराष्‍ट्र की अलग-अलग जिलों में चल रही 200 से ज्‍यादा गैर लाइसेंसी लैब के पैथोलॉजिसट की रिपोर्ट में देखा गया। बताया जाता है कि डॉ शिंदे के इस कार्य में अन्‍य चिकित्‍सकों, तकनीशियनों और पैथोलॉजिस्‍टों की भी मिलीभगत पायी गयी। बताया जाता है कि यह भी पाया गया कि डॉ शिंदे के डिजिटल हस्‍ताक्षर का प्रयोग भी किया जाता था। शिकायत ने यह भी बताया था कि रिपोर्ट तकनीशियनों द्वारा तैयार की गयी और हस्‍ताक्षर भी कर दिये गये ज‍बकि मरीजों को धोखा दिया गया कि उस पर हस्‍ताक्षर पैथोलॉजिस्‍ट कर रहे हैं।

 

आपको बता दें कि एमएमसी द्वारा वर्ष 2016 में भी डॉ शिंदे का निलंबन किया गया था लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने डॉ शिंदे की अपील पर एमएमसी को नये सिरे से जांच का आदेश दिया था। इस आदेश के अनुपालन में एमएमसी द्वारा दो साल पहले जांच शुरू की गयी जिसके बाद डॉ शिंदे के खिलाफ की गयीं शिकायतें सही पायी गयीं। एमएमसी के अंतिम आदेश के मुताबिक, जांच के दौरान डॉ शिंदे की ओर से उनके वकील अरुण मिश्रा ने तर्क दिया कि शिकायत गलत है और यह डॉ शिंदे की प्रतिष्ठा को खराब करने का प्रयास है।

लेकिन एमएमसी ने कहा कि शिंदे “पेशे की गरिमा को बनाए रखने में नाकाम रहे हैं। “उनके खिलाफ पेशेवर दुर्व्यवहार स्पष्ट रूप से पाया गया है। एमएमसी के रजिस्ट्रार संजय देशमुख के अनुसार जांच के बाद बीती 3 मार्च को एक बैठक में किए गए विस्तृत विचार-विमर्श और निर्णय के बाद, डॉ शिंदे के पंजीकरण को छह महीने के लिए रद करने और मेडिकल प्रैक्टिस से उनहें निलंबित रखने का फैसला किया गया।” इसका आदेश बीती 3 अगस्त को जारी किया गया था। डॉ संदीप यादव ने बताया कि न ही किसी पैथोलॉजिस्‍ट को यह करना चाहिये जिसके दोषी डॉ शिंदे पाये गये हैं और न ही किसी भी चिकित्‍सक को गैरकानूनी लैब से जांच कराने के लिए केस भेजना चाहिये। ये दोनों ही पेशे के प्रति ईमानदारी न बरतते हुए गलत आचरण की श्रेणी में आते हैं।

दूसरी ओर डॉ शिंदे का दावा है कि इस आदेश को पारित करके, एमएमसी अदालत के आदेश का उल्लंघन कर रहा है क्योंकि न तो जांच  न ही आदेश कानून के अनुसार नहीं है। डॉ शिंदे का यह भी कहना है कि वह बॉम्‍बे हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.