Tuesday , March 19 2024

लोक अदालतें भी दूर करती हैं तनाव, जानिये कैसे

-जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव ने दी महत्‍वपूर्ण जानकारियां
-निर्वाण मानसिक एवं नशा रोग चिकित्सा अस्पताल में आयोजित किया गया फ्री कैम्‍प

लखनऊ। विधिक प्रक्रिया से जुड़ा मानसिक तनाव जो कभी-कभी अवसाद या डिप्रेशन का रूप ले लेता है, ऐसे तनाव को दूर रखने में लोक अदालत एक अच्‍छा मंच है, इसकी खासियत यह है कि यह अदालत का एक वैकल्पिक मंच है जिसमें वाद दायर करने से पहले या दायर होने के बाद भी अपना मामला सुलझा सकते हैं, इन मामलों में समझौते से काम चल जाता है, और उस हालत में कोर्ट फीस भी वापस कर दी जाती है। यही नहीं इस प्रक्रिया में समय भी बहुत नहीं लगता है तथा इसमें हुए निर्णय को किसी भी अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है।

यह बात आज लखनऊ की जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिḽव सिविल जज पूर्णिमा सागर ने यहां कल्याणपुर स्थित निर्वाण मानसिक एवं नशा रोग चिकित्सा अस्पताल में आयोजित मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य शिविर का उद्घाटन करते हुए कही। शिविर का आयोजन जिला विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ एवं मनोविज्ञान विभाग, एमिटी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता माह के अवसर पर किया गया था।

सिविल जज पूर्णिमा सागर ने बताया कि प्रदेश के सभी जिलों में स्थाई लोक अदालत होती है जो की समय-समय पर आयोजित की जाती है | उन्‍होंने कहा कि यहां अपराधिक मामलों में त्वरित न्याय दिलाया जाता है इसमें अभियुक्त और पीड़ित के बीच समझौता होता है जिसमें अभियुक्त अपना अपराध मान कर व पीड़ित को हर्जाना देकर कोर्ट की दुखद प्रक्रिया से बचता है, कम सजा पाता है और समय और धन की बचत होती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर डाला कि जो आज के दिन हमें मानसिक तनाव और अवसाद के बारे में जानकारी मिली है उस जानकारी को पूरे महीने और उसके बाद भी अपने घर एवं दोस्तों के बीच चर्चा करें क्योंकि हम सब लोगों को मिलकर ऐसी समस्याओं का समाधान करना है और समाज में जागरूकता लानी है।

समाज को वेलनेस सेंटर भी चाहिये, सिर्फ इलनेस सेंटर नहीं : डॉ पीके गुप्‍ता

आई.एम.ए. के पूर्व अध्यक्ष डॉ पी के गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि आज के समाज को वैलनेस सेंटर की जरूरत है ना कि सिर्फ इलनेस सेंटर की। डॉ गुप्ता ने इस बात पर जोर डाला कि एक मरीज के लिए जितना शारीरिक समस्याओं से बचे रहना एवं उनका खयाल रखना जरूरी है उतना ही मानसिक स्थिति का खयाल रखना भी जरूरी है | डॉ. गुप्ता ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने गुस्से पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है, और इसके लिए अपना निजी दृष्टिकोण बदलने की, अपने अन्दर सकारात्मकता लाने की ज़रूरत है और इसके लिए समय-समय पर मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की सलाह लेनी चाहिए। उन्‍होंने आश्‍वस्‍त किया कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और उससे जुड़े सभी चिकित्सक रात-दिन मरीजों की सेवा सकारात्मकता के साथ करते रहेंगे।

‘बदले दौर’ की भेंट चढ़ गये हैं माता-पिता व औलाद के बीच के सम्‍बन्‍ध : डॉ एचके अग्रवाल

निर्वाण के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ एच. के. अग्रवाल ने शिविर में आये लोगों को संबोधित करते हुए पहले समझाया कि डिप्रेशन होता क्या है और कैसे समाज पर नाकारात्मक असर करता है।  डॉ अग्रवाल ने संयुक्त परिवार और संस्कृति पर जोर डालते हुए बताया कि कैसे लोग पूर्व में परिवार में वार्तालाप करते थे एवं एक दूसरे के सुख-दुख में उनके भागीदार होते थे। उन्होंने बताया कि आज वर्तमान में जहां घर की मां पूजा में व्यस्त है और बच्चा उसे ढकोसला कहता है, जहां मां-बाप कमाने में लगे हैं तो वहीँ बच्चे की हर जायज़-नाजायज इच्छाओं की पूर्ति करते रहते हैं, जिससे उन्हें लगता है कि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं पर वास्तव में यह उनकी भूल है और उन्हें आगे चलकर इस बात का एहसास होता है। डॉ अग्रवाल ने कहा की भारत में बढ़ते हुए डिप्रेशन का कारण कौन सी सभ्यता को अपनाएं, इसकी दुविधा भी है। कुछ लोग अपनी सभ्यता आगे ले जाना चाहते हैं पर वहीं दूसरे लोग पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो रहे हैं।

80 फीसदी क्रिमिनल्‍स को जन्‍म दिया है मानसिक उत्‍पीड़न ने

डॉ अग्रवाल ने क्रिमिनल साइकोलॉजी पर जोर डालते हुए कहा कि 20 प्रतिशत क्रिमिनल पैदा ही ऐसी मानसिक स्थिति से होते हैं हैं जिसे एंटीसोशल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर कहते हैं, बाकी 80 प्रतिशत क्रिमिनल की यदि जड़ में जाएं तो कहीं ना कहीं किसी प्रकार के मानसिक उत्पीड़न का पता चलेगा जिसकी वजह से वह क्रिमिनल बने, जिसे उसके खुद के परिवार वाले ही नहीं जान पाते और जानने का प्रयास भी नहीं करते।

कार्यक्रम में निर्वाण अस्पताल से पूर्व में इलाज ले चुके कुछ मरीजों ने भी अपने विचार साझा किए उन्होंने बताया कि कैसे वह अवसाद से ग्रस्त हो चुके थे और मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक की मदद लेकर उन्हें अवसाद से बाहर आने का मौका मिला। कार्यक्रम का समापन निर्वाण के निदेशक डॉ डी.एच. अग्रवाल, मनोचिकित्सक एवं डॉ प्रांजल अग्रवाल ने की सभी को धन्यवाद देकर किया। लगभग शाम को 4:00 बजे तक कैंप शिविर में 100 से ज्यादा मरीजों की उपस्थिति रही। इन सभी मरीजों को निर्वाण एवं एमिटी विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिकों द्वारा निशुल्क परामर्श दिया गया।