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अंग्रेजी दां हैं तो अंग्रेजी में जानिये पौराणिक-आध्‍यात्मिक ग्रंथों के बारे में

-प्‍लास्टिक सर्जन डॉ दिव्‍य नारायण उपाध्‍याय की पुस्‍तक ‘बैटल ऑफ पंचवटी’ का विमोचन

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। अंग्रेजी दां हैं तो क्‍या हुआ, अपने देश भारत की संस्‍कृति को पहचानने के लिए पौराणिक-आध्‍यात्मिक ग्रंथों के बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिये, फि‍र वे चाहें रामायण हो या रामचरित मानस, गीता हो या शिवपुराण इन सभी ग्रंथों में ईश्‍वर की लीलाओं के साथ ही मानव कल्‍याण का संदेश दिया हुआ है, इस संदेश को समझने की जरूरत है, कहते हैं कि हम चाहें कितनी भी ऊंचाई छू लें, लेकिन हम खड़े तभी रह पायेंगे जब हमारे पांव जमीन को छूते रहेंगे।

अब सवाल यह आता है कि इस अंग्रेजी भाषा के आधिपत्‍य के चलते नयी पीढ़ी के ज्‍यादातर लोग हिन्‍दी और संस्‍कृत भाषा में अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं, क्‍योंकि उनकी शिक्षा का माध्‍यम शुरू से ही अंग्रेजी रहा होता है। इन सभी बातों को विचार करते हुए किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यायल के प्‍लास्टिक सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दिव्‍य नारायण उपाध्‍याय ने नयी पीढ़ी को इन कथाओं के बारे में जानकारी उनकी ही भाषा यानी अंग्रेजी में देने की पहल की है।

देखें वीडियो : डॉ दिव्य नारायण ने दी ‘बैटल ऑफ पंचवटी’ पुस्तक के बारे में जानकारी

इस क्रम में डॉ उपाध्‍याय ने इन्‍हीं पौराणिक ग्रंथों में से कुछ कहानियां निकालकर एक पुस्‍तक ‘बैटल ऑफ पंचवटी’ लिखी है। साधारण अंग्रेजी में लिखी इस पुस्‍तक का विमोचन आज यहां गोमती नगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्‍ठान में आयोजित मेटाफोर फेस्टिवल-2019 में वरिष्‍ठ पत्रकार राहुल देव ने किया। इस मौके पर अनेक चिकित्‍सक, डॉ दिव्‍य के परिजन समेत अनेक साहित्‍य प्रेमी मौजूद थे।

उन्‍होंने कहा कि इस पुस्‍तक का महत्‍व देश के सा‍थ ही विदेश में रहने वालों उन लोगों के लिए भी अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है जो भारत के अध्‍यात्‍म को समझना चाहते हैं, उसकी गूढ़ता में जाना चाहते हैं। उन्‍होंने कहा कि ऐसे विदेशी सैलानियों की भी कमी नहीं है जो मथुरा, काशी समेत देश के अनेक धार्मिक स्‍थानों पर आस्‍था के चलते पहुंचते हैं।