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बच्‍चे का यौन शोषण हुआ तो इसमें बच्‍चे की क्‍या गलती, क्‍यों छिपाते हैं दूसरों के कुकर्म

-क्‍या बच्‍चे के जीवन से बढ़कर है इज्‍जत, समाज को नजरिया बदलना होगा
-बाल यौन शोषण करने वाले 90 प्रतिशत दरिंदे परिवार या निकट सम्‍बन्‍धी होते हैं
-यौन पीडि़त बच्‍चों का इलाज करने वाले चिकित्‍सकों को भी इसकी रिपोर्टिंग करना आवश्‍यक
-बच्‍चों के साथ होने वाले यौन शोषण और चिकित्‍सकों की जिम्‍मेदारी पर कार्यशाला आयोजित

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। तुम वहां करने क्‍या गयी थीं… अच्‍छा अब चुपचाप रहना इसका जिक्र किसी से करने की जरूरत नहीं है…ये वे चन्‍द जुमले हैं जो मां-बाप अपने बच्‍चे से उस समय कहते हैं जब उन बच्‍चों के साथ यौन शोषण हो जाता है। बच्‍चों को चुप नहीं मुखर करने की जरूरत है। झूठी शान और मान सम्‍मान के नाम पर बच्‍चे को चुप करके माता-पिता खुद भले ही अपनी इज्‍जत को सुरक्षित महसूस कर लें लेकिन इसका बच्‍चे के मन मस्तिष्‍क पर इतना गलत प्रभाव पड़ता है जो कि उसका पूरा जीवन खराब कर देता है, यौन शोषण के कारण शारीरिक चोटों के घाव तो भर जाते हैं लेकिन उसके मस्तिष्‍क में बैठी बात जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ती है, जो आगे चलकर उसकी अपनी सामान्‍य और वैवाहिक जिन्‍दगी तक पर असर डालती है। वह अंदर ही अंदर घुटता रहता है।

यह बात संजय गांधी पीजीआई की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पियाली भट्टाचार्य ने यहां इंदिरा नगर स्थित होटल बेबियन में लखनऊ अरबन एडीपी, वर्ल्‍ड विजन इंडिया के तत्‍वावधान में आयोजित एक कार्यशाला में शनिवार को अपने सम्‍बोधन में कही। अंडरस्‍टैंडिंग दि इशू ऑफ चाइल्‍ड सेक्‍सुअल एब्‍यूज एंड रिस्‍पॉन्‍सबिलिटीज ऑफॅ मेडिकल प्रैक्टिशनर्स विषय पर आयोजित कार्यशाला में बाल यौन शोषण के कानूनी पहलुओं से लेकर भावनात्‍मक पहलुओं पर दिन भर चली कार्यशाला में चिकित्‍सा और कानून क्षेत्र के विशेषज्ञों ने विस्‍तार से चर्चा की।

डॉ पियाली ने अपने सम्‍बोधन में कहा कि चूंकि बच्‍चे के साथ यौन शोषण हुआ तो इसमें गलती बच्‍चे की नहीं है, जरूरत इस बात की है कि यौन शोषण के समय ही माता-पिता का रवैया उनके प्रति सकारात्‍मक हो, हिम्‍मत दिलाने वाला हो, दोषी को सामने लाने वाला हो तो इससे न उस बच्‍चे को सामान्‍य जीवन जीने में मदद मिलेगी बल्कि दोषी व्‍यक्ति को सजा दिलाकर दूसरे बच्‍चों की जिन्‍दगी को भी बचाने में मदद मिलेगी, क्‍योंकि अक्‍सर देखा गया है कि यौन शोषण करने वालों के बारे में रिपोर्टिंग न होने से वह समाज में खुला और स्‍वछन्‍द तरीके से घूमता-फि‍रता है तथा अपनी इस गंदी मानसिकता से दूसरे बच्‍चों को भी शिकार बनाता रहता है।

डॉ पियाली ने बताया कि भारत सरकार का सर्वे बताता है कि 53 प्रतिशत बच्‍चे भारत में यौन शोषण के शिकार हैं। यही नहीं बच्‍चों के साथ होने वाले यौन शोषण के 90 प्रतिशत मामलों में यौन शोषण करने वाला बच्‍चे के परिवार या निकट का ही होता है। डॉ पियाली ने बताया कि होता यह है कि ऐसे मामले छिपा लिये जाते हैं, इसकी रिपोर्टिंग भी तब होती है जब घरवालों की मजबूरी हो जाती है जैसे बच्‍ची को ब्‍लीडिंग होने लगती है, बच्‍ची गर्भवती हो जाती है और तब बच्‍चे के अभिभावक चिकित्‍सक से सम्‍पर्क करते हैं। उन्‍होंने बताया कि हालांकि अब धीरे-धीरे ऐसे मामले सामने लाये जाने लगे हैं। एक केस का जिक्र करते हुए उन्‍होंने बताया कि एक ऐसा केस आया कि जिसमें पिता ही अपनी पु’त्री के साथ यौन शोषण करता रहा और बच्‍ची को उसकी मां ने चुप कर दिया, इसके बाद जब पिता ने पीडि़त पुत्री की छोटी बहन के साथ भी यह हरकत करनी शुरू की तो बड़ी बहन सामने आयी और कहा कि मेरे साथ जो आपने किया वह मैं अपनी बहन के साथ नहीं करने दूंगी।

डॉ पियाली ने कहा इस तरह की स्थितियों से बचाने के लिए जहां बच्‍चों को चुप करने की नहीं बल्कि मुखर करने जरूरत है, वहीं बच्‍चों को यह जानकारी देना भी आवश्‍यक है कि वे ऐसी स्थिति में अपना बचाव कैसे करें, कैसे पहचानें कि उनको अंग विशेष को जब कोई टच करने की कोशिश करें तो किस तरह से शोर मचायें, और आसपास मौजूद लोगों को बतायें, कि यह आदमी उसके साथ छेड़छाड़ कर रहा है।

माता-पिता बच्‍चे पर रखें गहरी नजर

डॉ पियाली ने कहा कि माता-पिता को चाहिये कि वह बच्‍ची के व्‍यवहार पर नजर रखें, अचानक बच्‍चे के व्‍यवहार में कोई बदलाव दिखे, गुमसुम रहे, किसी खास व्‍यक्ति को देखते ही सहम जाये, मां के पीछे छिपने लगे, बार-बार यूरीनरी इन्‍फेक्‍शन हो रहा हो, चोटें लग रही हों, शरीर पर चोटों के निशान दिखें तो ऐसे में माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिये और बच्‍चे से यह जानने की कोशिश करें कि आखिर ऐसा क्‍यों हो रहा है। बच्‍चे के साथ उनका व्‍यवहार गुस्‍से वाला न होकर उसकी सहायता और प्‍यार देने वाला होना चाहिये ताकि सहजता के साथ बच्‍चा पूरी बात माता-पिता को बता सके।

उन्‍होंने कहा कि ऐसे केस में जो माता-पिता डरते हैं कि उनकी बच्‍ची की बदनामी हो जायेगी, तो उनकी और पूरे परिवार की काउंसलिंग करके यह बात समझानी होती है कि इसके बारे में शिकायत करके दोषी व्‍यक्ति को सजा दिलायी जाये ताकि उनके बच्‍चे और दूसरों के बच्‍चों के साथ वह व्‍यक्ति ऐसा काम न कर सके। उन्‍होंने कहा कि इसके लिए समाज में भी मानसिकता बदलने की जरूरत है कि जो हुआ उसमें उस बच्‍ची का कोई कसूर नहीं है। इस मानसिकता के साथ जब लोग रहेंगे तो पीडि़त बच्चियों के प्रति समाज का नजरिया बदलेगा, और फि‍र जो मां-बाप बदनामी के डर से इन बातों को छिपाते हैं, वे भी ऐसी घटनाओं को सामने लाने में सहज महसूस करेंगे।

एफआईआर लिखवाते समय ध्‍यान से करें शब्‍दों का चयन

कार्यशाला में आली से जुड़ी वूमेन राइट एक्टिविस्‍ट वकील रेनू मिश्रा ने अनेक कानूनी पहलुओं की जानकारियां दीं। उन्‍होंने कहा कि पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत बाल यौन शोषण में सजा का कानून तो है लेकिन छोटी-छोटी चूक होने के कारण इसका लाभ पीडि़त को नहीं मिल पाता है और गुनहगार गुनाह करने के बाद भी आराम से बच जाता है। उन्‍होंने बताया कि अगर किसी बच्‍ची का यौन शोषण होता है तो पहली बात उसकी रिपोर्टिंग तो होनी ही चाहिये, साथ ही एफआईआर पीडि़त बच्‍ची की भाषा में ही लिखनी चाहिये क्‍योंकि कई बार एफआईआर में लिखी गयी शब्‍दावली के चलते आरोपी अदालत से छूट जाता है। क्‍योंकि अदालत में बच्‍चे के द्वारा प्रयोग की गयी शब्‍दावली से ही पुष्टि मानी जाती है, उन्‍होंने बताया कि अक्‍सर बोलचाल में हम लोग शब्‍द इस्‍तेमाल करते हैं कि फलां व्‍यक्ति ने फलां बच्‍चे के साथ गलत काम किया, गंदा काम किया, ऐसे में इन शब्‍दों का प्रयोग एफआईआर में भी किया जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि गलत काम और गंदा काम की परिभाषा कोर्ट में आरोपी को बचाने वाला वकील अपने हिसाब से देता है और इस शब्‍द से यह सिद्ध नहीं हो पाता है कि आरोपी ने बच्‍ची के साथ शारीरिक संबंध बनाये, नतीजा कोर्ट से जो सजा मिलनी चाहिये थी, वह नहीं मिल पाती है।

एफआईआर देर से लिखने के कारण का जरूर जिक्र करें

रेनू मिश्रा ने बताया कि इसी प्रकार एफआईआर में घटना होने और घटना की एफआईआर लिखाने के बीच का जो समय था, उसमें एफआईआर क्‍यों नहीं लिखायी गयी इसकी वजह एफआईआर में नहीं लिखी जाती है, जो कि गलत है, मान लीजिये बच्‍ची के साथ यौन शोषण होने के एक मा‍ह बाद अगर आपने एफआईआर दर्ज करायी तो उसके पीछे जो भी वजह हो उसका जिक्र एफआईआर में अवश्‍य करें कि इस कारण एफआईआर एक माह बाद लिखायी जा रही है। अगर देर से एफआईआर लिखाने की वजह नहीं लिखी होती है तो बचाव पक्ष इस खामी का फायदा उठाकर भी आरोपी को बचाने में कामयाब हो जाता है। उन्‍होंने कहा कि यौन शोषण का शिकार हो रहे बच्‍चों में कोई खास वर्ग या खास क्षेत्र नहीं है, सभी क्षेत्रों, सभी वर्गों में इस तरह के हादसे हो रहे हैं। आंकड़ों के नजरिये से देखें तो 10 में से 1 बच्‍चा यौन शोषण का शिकार होता है।

बच्‍चे के साथ संवाद बनायें रखें, उसके मन को टटोलते रहें

कार्यशाला में चाइल्‍ड साइकोलॉजिस्‍ट डॉ मिर्जा वकार बेग ने बताया कि माता-पिता को बच्‍चे के साथ रोजाना थोड़ा समय निकाल कर बातचीत करते रहना चाहिये। इस तरह बातचीत करते रहने से बच्‍चे के दिल में क्‍या चल रहा है, माता-पिता को इसे जानने का अवसर मिलता है। उन्‍होंने कहा कि पहले के जमाने में बच्‍चों को साथ में लिटाकर कहानियां सुनाने का जो प्रचलन था, वह बहुत अच्‍छा था। उन्‍होंने कहा कि माता-पिता का प्‍यार बच्‍चे के लिए अनकंडीशनल होना चाहिये, कहने का अर्थ है कि यह नहीं होना चाहिये कि माता-पिता बच्‍चे से कहें कि देखो तुम ऐसे करोगे तो हम तुम्‍हें प्‍यार करेंगे वरना नहीं करेंगे, बल्कि उससे यह कहना चाहिये कि तुम जैसे भी हो मेरे हो, अपनी सारी बातें तुम मुझसे बता सकते हो, हम तुम्‍हें हमेशा प्‍यार करते रहेंगे, इससे यह होगा कि बच्‍चा माता-पिता के साथ खुलकर अपनी जिज्ञासाओं और बातों को कह सकेगा। उन्‍होंने बताया कि पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत यह आवश्‍यक है कि जब चिकित्‍सक ऐसे बच्‍चे का इलाज करे तो उसके बारे में वह रिपोर्ट करे, ऐसा न करने पर डॉक्‍टर के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसी प्रकार ऐसे पीडि़त बच्‍चे चिकित्‍सीय परीक्षण और इलाज और चिकित्‍सक को फ्री करने का भी प्रावधान है।

देखें वीडियो-बच्‍चों के साथ यौन शोषण की समाप्ति के लिए दिलायी गयी शपथ