डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के विलय के बाद कब तक मरीज को मिलेगी फ्री इलाज की सुविधा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ट्रांसगोमती स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त अस्पताल के इसके बाजू में ही स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया संस्थान में विलय की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस विलय का असर मरीज को फ्री इलाज से लेकर चिकित्सक और कर्मचारियों तक पर पड़ना तय है, यह बात दीगर है कि किसी को कम तो किसी को ज्यादा।
आम मरीज, जो हर माह हजारों की संख्या में इलाज की सुविधा उठा रहे हैं, का क्या होगा जो अभी तक सिर्फ एक रुपये के परचे पर भर्ती होने पर और बिना भर्ती हुए फ्री में जांच, दवा, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, पैथोलॉजी जांचों सहित पूरा इलाज फ्री पा रहे हैं। आपको बता दें कि एमआरआई जांच को छोड़कर बाकी सारी जांचें यहां फ्री में उपलब्ध हैं।
आंकड़े बताते हैं कि जनवरी 2018 से दिसम्बर 2018 तक एक साल में यहां 6 लाख 38 हजार 785 नये मरीजों को ओपीडी में देखा गया, जबकि 466 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में 24 हजार 515 मरीजों का इलाज भर्ती कर किया गया।
मरीजों की जांचों के बारे में बात करें तो बीते एक साल में अस्पताल में उपलब्ध 8 मशीनों से एक्स रे जांच 63421 मरीजों की हुई जबकि 6 मशीनों से 22788 मरीजों का अल्ट्रासाउंड किया गया। पिछले साल सर्वाधिक जांचें पैथोलॉजी में हुईं इनमें 10 लाख 68 हजार 555 मरीजों की पैथोलॉजी जांचें हुईं। इसी तरह साल भर में 9099 मेजर सर्जरी तथा 3297 माइनर सर्जरी की गयीं।
एक और महत्वपूर्ण बात है कि यूं तो यहां इलाज कराने पूरे प्रदेश से लोग आते हैं लेकिन विशेषकर बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद, बहराइच, अम्बेडकर नगर, बस्ती जैसे जिलों सहित लखनऊ शहर के गोमती पार के इलाके की जनता को इस अस्पताल तक पहुंचना दूसरे अस्पतालों की अपेक्षा आसान है। यहां यह बात ध्यान में रखनी होगी कि एनएबीएच सार्टीफिकेट पाने वाला उत्तर प्रदेश का यह पहला सरकारी अस्पताल वीवीआईपी से लेकर गरीब तबके तक के मरीजों की प्राथमिकता पर है।
जिस दिन इस अस्पताल का विलय लोहिया संस्थान में औपचारिक रूप से होकर क्रियान्वित हो जायेगा उसी दिन से यहां भी संजय गांधी पीजीआई की तर्ज पर हर उपचार का चार्ज लिया जाना संभव हैं। जो कि आम मरीज के लिए अनावश्यक बोझ जैसा होगा। हालांकि पिछले दिनों उच्च न्यायालय में फ्री उपचार की सुविधा को लेकर एक जनहित याचिका भी दायर की गयी थी, जिस पर कोर्ट ने आदेश दिया था कि मरीजों को फ्री में इलाज की सुविधा छीनी नहीं जानी चाहिये। लेकिन कानूनी दांवपेंच और नियमों के जाल में तो फंसकर यह सुविधा कब तक मिलती रहेगी और सरकार इसे पीजीआई से अलग तर्ज पर रखने के लिए कब तक बाध्य होगी यह सब भविष्य के गर्भ में है।
आपको बता दें कि वर्तमान में यहां 91 डॉक्टरों की तैनाती है। विलय होने की स्थिति में इनमें से सिर्फ छह डॉक्टरों को संस्थान में प्रतिनियुक्ति पर लिया जायेगा, जबकि 27 डॉक्टरों को मार्च 2020 तक के लिए संस्थान में रखा जायेगा शेष 58 अगर कर्मचारियों की बात करें तो उन्होंने इस फैसले के विरोध में 20 जनवरी से आंदोलन शुरू कर दिया है। चिकित्सकों को अन्य अस्पतालों में स्थानांतरित कर दिया जायेगा। कर्मचारियों के लिए कुछ समय के लिए संस्थान में ही सेवाएं देने की तैयारी कर ली गयी हैं दरअसल कर्मचारियों में असंतोष की भावना न हो, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद की स्थिति बचाने के लिए ही शायद ऐसा सोचा गया होगा लेकिन मरीज तो ऐसा है जिसके लिए शायद ही कोई अपनी तरफ से आवाज उठाये। फिलहाल तो यह दायित्व सरकार का स्वयं ही है कि वह मरीजों के लिए सुविधाएं बढ़ाये न कि घटाये। देखना होगा कि मरीजों का दर्द जिम्मेदारों के दिल में कितना होता है?
पौधे को सींच कर पेड़ बनाया, अब छांव से महरूम क्यों कर रहे?
वर्ष 1998 में ओपीडी की शुरुआत होने के बाद 2003 से पूरी तरह से अस्पताल ने कार्य करना शुरू किया है। अस्पताल का सफलतापूर्वक संचालन किसी एक व्यक्ति के करने से नहीं होता है, यह टीम वर्क है इसलिए चिकित्सक हों या कर्मचारी सभी की मेहनत ने इस अस्पताल को इस मुकाम तक पहुंचाया है। इसलिए इन्हें भी यहां से हटाये जाने का कष्ट है। कुछ तो भावुकता में सवाल उठाते हुए कहते भी हैं कि जिस पौधे को सींच कर इतना बड़ा पेड़ बनाया, आज उसी की छांव से हमें महरूम किया जाना कहां तक उचित है।