-कौशल बढ़ाने वाली शिक्षा नीति में अपनी भाषा चुनने की आजादी
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। परिवर्तन जीवन का हिस्सा है। परिस्थितियाँ जीवन शैली को, कार्य स्थान को और कार्य संस्कृति को बदल देती हैं, जैसे कोरोना ने हमारी विचार प्रक्रिया को बदल दिया है। हम नए आविष्कार कर रहे हैं, हम अब स्कूल न जा कर इंटरनेट पर पढ़ाई कर रहे हैं। हमने पिछ्ले 34 साल से अपनी शिक्षा नीति कोई बदलाव नहीं किया है और आज के परिप्रेक्ष्य को देखते हुये मौजूदा शिक्षा नीति में भी बदलाव की जरूरत है। अब जब नयी शिक्षा नीति आयी है, इसमें भाषा का विशेष महत्व दिया गया है, ऐसे में माना जा सकता है कि हिन्दी को अभी जो स्थान नहीं मिला है, वह अब मिलेगा।
ये विचार हिन्दी दिवस पर ऑनलाइन मेडिकल कन्सल्टेशन कम्पनी डॉक्सनियरमी और एनजीओ जेनस इनीशिएटिव के संयुक्त प्रयासों से नई शिक्षा नीति में हिन्दी का भविष्य थीम पर आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा के बारे में बताते हुए चर्चा की संयोजक डॉ कुमुद श्रीवास्तव ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति व्यवहारिकतापूर्ण होगी, जिसकी काफी समय से जरूरत महसूस की जा रही थी। उन्होंने बताया कि जैसे उद्योग-व्यापार जगत द्वारा लगातार इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की गई कि स्कूलों और कॉलेजों से ऐसे युवा नहीं निकल पा रहे हैं जो आज की आवश्यकताओं के हिसाब से उपयुक्त हों और तुरंत रोजगार के लिए तैयार हों।
उन्होंने बताया कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ज्ञान से ज्यादा महत्व अच्छे अंकों को दिया जाने लगा है, नतीजतन विद्यार्थियों में ज्ञान की जगह अच्छे अंकों को प्राप्त करने की प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है जबकि कुछ वर्षों पहले ही इस बात की अनुभूति हो गई थी कि किताबी ज्ञान का एक सीमा तक ही महत्व होता है इसके बावजूद नए तौर-तरीके अपनाने को प्राथमिकता नहीं प्रदान की गई।
उन्होंने बताया कि इस नयी शिक्षा नीति का तकरीबन 15 लाख से अधिक स्कूल, 864 से अधिक विश्वविद्यालय, 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय सहित 51 राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और इनमे पढ़ने वाले करीब 3 करोड़ छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और यह भी जाने कि अपनी हिंदी भाषा कौशल विकास में कैसे सहायक होगी? इन मुद्दों पर मंथन करने के लिए एक परिचर्चा आयोजित की गयी।
इस चर्चा में लखनऊ से निदेशक, एसआईईटी यूपी ललिता प्रदीप, महामाया राजकीय विश्वविद्यालय, लखनऊ की प्राचार्य प्रो भारती सिंह, सामाजिक अनुसंधान फाउंडेशन,कानपुर के सचिव यूपी रत्न डॉ राजीव मिश्रा, अंबाह पीजी कॉलेज, मुरैना के हिन्दी विभाग की अध्यक्ष डॉ शशिवल्लभ शर्मा, वेलनेस सेंटर,लखनऊ की मनोवैज्ञानिक-परामर्शदाता डॉ कुमुद श्रीवास्तव, जम्मू में बैंक के वरिष्ठ अधिकारी आर के श्रीवास्तव, दिल्ली में बैंक के वरिष्ठ अधिकारी नीरज श्रीवास्तव और बंगलौर से इंजीनियर राजीव श्रीवास्तव ने भाग लिया।
शुरुआत में डॉ कुमुद श्रीवास्तव ने सबका स्वागत और अभिनंदन करते हुए इस परिचर्चा के आयोजन का उद्देश्य बताया कि कौशल विकास में हिन्दी भाषा की भूमिका और संभावनाए तलाशनी और बनानी होंगी। डॉ शशिवल्लभ शर्मा ने चर्चा का संचालन सम्भाला।
प्रो भारती सिंह ने हिन्दी भाषा के इतिहास की तरफ ध्यान खींचते हुए वर्तमान समय में इसके स्वरूप की चर्चा की। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति मे मातृ भाषा को अनिवार्य करने की बात पर बल दिया गया है और इसका मजबूत आधार बनाने का महत्व दिया गया है, यह बहुत सराहनीय बात है।
ललिता प्रदीप ने अपनी संस्कृति को सहेजने और समझने में अपनी भाषा के महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति का यह एक सराहनीय कदम है। उन्होंने हिन्दी को बोलचाल की भाषा के रूप मे अपना कर कौशल विकास में सहायक बताया, उन्होंने तकनीकी शिक्षा में अंग्रेजी और अन्य भाषा के शब्दों को शामिल करने की बात की।
राजीव मिश्रा ने हिन्दी भाषा और कौशल के प्रायोगिक रूप की तरफ ध्यान दिलाया और आधारभूत शिक्षा को समृद्ध बनाने की बात कही। इस दिशा में और अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया ।
डॉ शर्मा ने हिन्दी की उत्पत्ति, इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए अपनी कविता द्वारा अपने विचार व्यक्त किये ,कि किस प्रकार हिन्दी भाषा मे अन्य भाषाओं के शब्द सम्मिलित हुए ।
बैंक के दोनों वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि बैंकिंग प्रणाली को समझने, कार्यशीलता बढ़ाने में और छोटे रोजगारों के विकास में आम जनता के लिए हिन्दी भाषा सहायक होती है।
डॉ कुमुद श्रीवास्तव ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अधिक सम्वेदनशीलता के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त करे, उन्होंने कौशल विकास में अभी और कार्य करने पर बल दिया। इन्जीनियर राजीव ने कहा कि तकनीकी शिक्षा को अपनी भाषा के शब्दों में और अधिक विकसित करना होगा ।
सभी वक्ताओं ने हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाइयाँ दीं और कहा कि हिन्दी दिवस को मनाना अच्छी बात है और इस तरह से हिन्दी भाषा के प्रति अपना प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का अवसर मिलता है। वक्ताओं ने कहा कि नयी शिक्षा नीति के द्वारा अपनी भाषा के साथ कौशल विकास की बहुत संभावनाए दिखती हैं। वक्ताओं का कहना था कि नि:सन्देह यह एक सराहनीय और उपयोगी कदम है। लेकिन इस पर अभी और कार्य और अनुसंधान और विषयवस्तु के विकास और सम्भावनायें करने की आवश्यकता है।