-सीएसआईआर-आईआईटीआर की पोस्ट मॉनसून रिपोर्ट में दिये गये हैं कई प्रकार के सुझाव

सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की हवा में प्रदूषण का जहर बड़ी मात्रा में घुला हुआ है। इस बारे में लखनऊ स्थित सीएसआईआर भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) द्वारा बीती 3 नवम्बर को पोस्ट मानसून रिपोर्ट जारी की गयी है। इस रिपोर्ट में दूषित हवा वायु प्रदूषण को कम करने की संस्तुति करते हुए कुछ कदम उठाने को कहा गया है जिनमें दीपावली पर ग्रीन पटाखों के उपयोग को प्रोत्साहित करने की सलाह सहित कई सुझाव शामिल हैं।
प्रदूषण के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है कि pm10 और पीएम 2.5 की सांद्रता राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक से अधिक पाई गई। मानसून पूर्व (लॉकडाउन) में मापी गई pm10 और पीएम 2.5 की सांद्रता मानसून के बाद मापी गई सांद्रता में pm10 में 9.6 और पीएम 2.5 में 20.6 की वृद्धि पाई गई इसी प्रकार सभी स्थानों पर so2 तथा no-2 की सांद्रता राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम पाई गई।
इसी प्रकार पोस्ट मानसून में मापी गई so2 तथा no2 की सांद्रता प्री मानसून की तुलना में अधिक पाई गई so2 तथा no2 के औसत मूल्यों में 111 दशमलव 0% और 38.2% की वृद्धि हुई है रिपोर्ट के अनुसार इसी प्रकार दिन और रात का ध्वनि स्तर सभी आवासीय और व्यावसायिक स्थानों पर राष्ट्रीय मानकों से अधिक पाया गया। यह भी प्री मानसून लॉकडाउन की तुलना में पोस्ट मानसून में सभी स्थानों पर अधिक था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण को जैसे विदित कारण यानी pm10 और पीएम 2.5 so2 no2 और ध्वनि के स्तर में धीरे-धीरे लॉकडाउन की छूट और समय बीतने के साथ वृद्धि हो रही है।
प्रदूषण कम करने के लिए की गयी संस्तुतियों में कहा गया है कि कुछ बातों पर ध्यान रखते हुए नियम बनाये जाएं तो हवा के इस जहरीले प्रदूषण को कम करना संभव हो सकेगा। ज्ञात हो वायु प्रदूषण स्तर बढ़ने से अनेक प्रकार के स्वास्थ्य विकार होने की संभावना रहती है इसके चलते समय से पूर्व मृत्यु, बिगड़ा हुआ दमा, तीव्र श्वसन विकार एवं फेफड़ों के कार्य में असामान्यताएं पैदा हो जाती है। श्वासनीय सूक्ष्म कण धुंध को बढ़ाते हैं एवं दृश्यता को क्षति भी पहुंचाते हैं। अति सूक्ष्म कण लंबी दूरियों तक गुरुत्वाकर्षण से कम प्रभावित होते हुए वायु में मिश्रित रह सकते हैं। कई शोध एवं अध्ययन वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य विघटन से सीधा संबंध स्थापित करते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड गैस नमी की उपस्थिति में सल्फ्यूरिक एसिड बना लेती है नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस भी नमी की उपस्थिति में नाइट्रिक एसिड एवं नाइट्रेट बनाती है जो कि श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक है इसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण में बढ़ोतरी श्रमशक्ति को कम करने से लेकर चिड़चिड़ापन बढ़ाने का एक मुख्य कारण है।
आईआईटीआर ने जिन कदमों को उठाने की सलाह दी है उनमें कहा गया है कि पुराने भवनों को तोड़ने एवं नए का निर्माण योजना बनाकर इस प्रकार किए जाए ताकि धूल के कण वायु में न फैलें। इसी प्रकार वाहनों में पार्टीकुलेट मैटर फिल्टर की रेट्रोफिटिंग और बीएस सिक्स मॉडल के उपयोग को अनिवार्य किया जाए। गलत स्थान पर पार्किंग की अनुमति न दी जाए। इसी प्रकार शुष्क मौसम के दौरान शहर की मुख्य सड़कों और सभी सक्रिय सड़कों पर धूल की रोकथाम के लिए जल का छिड़काव और सफाई का कार्य किया जाए। व्यक्तिगत वाहनों के उपयोग को कम किया जाए एवं यातायात के लिए सब्सिडी वाले सार्वजनिक परिवहन मेट्रो रेल एवं बसों के अधिक उपयोग के लिए जनता को जागरूक किया जाए। इसके अतिरिक्त सलाह में कहा गया है कि चौराहों पर सुगम यातायात प्रवाह के लिए आधुनिक यातायात प्रणाली का उपयोग एवं सुविधाजनक परिवर्तन किए जाएं। इसी तरह राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाने वाले वाहनों को अच्छी तरह ढंक कर ले जाया जाए। भीड़ भरे चौराहों पर मार्ग मिलने तक वाहनों का इंजन अल्पकाल के लिए बंद कर दिया जाए।
बैटरी, सीएनजी व विद्युत चालित वाहनों के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाए, ठोस अपशिष्ट स्थल सड़कों के किनारे न बनाए जाएं, ठोस अपशिष्ट का परिवहन बंद वाहनों में हो और निवारण पूरी तरह से बंद ढंके हुए स्थलों पर किया जाए। इसी प्रकार कहा गया है कि ठोस अपशिष्ट पदार्थों को जलाया ना जाए। नगर में सीएनजी आपूर्ति स्थलों की संख्या में वृद्धि की जाए। दीपावली में ग्रीन पटाखों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाए। सभी वाहनों से प्रेशर हॉर्न हटाया जाए एवं हॉर्न का कम उपयोग करने के लिए नागरिकों को जागरूक किया जाए। वायु प्रदूषण तथा उसके स्वास्थ्य पर प्रभाव विषय से संबंधित जन जागरण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। सघनतम यातायात स्थलों पर धूल निष्कासन प्रणाली लगाई जाए जो कि अति व्यस्त समय के दौरान संचालित की जाए। इसके अतिरिक्त हर वर्ष शासन द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन सुनिश्चित किया जाए जिसमें वाहन उत्पादकों, तेल विपणन संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, शोध संस्थानों, सीपीसीबी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं इत्यादि को एक मंच पर अपने विचार व्यक्त करने का अवसर दिया जाए, जिससे कि भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण एवं जन स्वास्थ्य संरक्षण के लिए प्रभावकारी योजनाएं बनाई जा सकें।

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