आईएमए में आयोजित कार्यशाला में मनोचिकित्सक ने दिये टिप्स
लखनऊ। डिप्रेशन या अवसाद के लिए दवाओं का सही तरीके से इस्तेमाल बहुत जरूरी है। किस तरह डिप्रेशन को पहचानें, डिप्रेशन होने के पहले के लक्षणों को किस तरह पहचाने और फिर क्या कदम उठायें, जनरल प्रैक्टिशनर्स के पास अगर डिप्रेशन का शिकार रोगी पहुंचे तो वह क्या करे, इस बारे में एक प्रस्तुति आईएमए लखनऊ के ऐडीटर एवं मनोचिकित्सक डॉ अलीम सिद्दीकी ने दी।
आईएमए के समारोह में आयोजित सीएमई में आईएमए से जुड़े जनरल प्रैक्टिशनर्स को संबोधित करते हुए डॉ अलीम ने बताया कि हर चौथे-पांचवें व्यक्ति को अन्य बीमारियों के साथ डिप्रेशन जुड़ा होता है। बड़ी संख्या में लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं यही नहीं मरीज और उसके घरवालों को पता भी नहीं चलता है कि मरीज को डिप्रेशन है। ऐसे में अक्सर ऐसा होता है कि जनरल प्रैक्टिशनर के पास मरीज जाता है।
जनरल प्रैक्टिशनर के लिए यह देखना जरूरी है कि व्यक्ति को डिप्रेशन है अथवा नहीं अथवा निकट भविष्य में हो सकता है। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को चाहिये कि वे यह सुनिश्चित कर लें कि गर्भवस्था, किडनी की बीमारी, लिवर की बीमारी जैसी गंभीर बीमारियों के साथ यदि डिप्रेशन है तो वे तुरंत मरीज को विशेषज्ञ चिकित्सक यानी मनोचिकित्सक के पास भेज दें।
उन्होंने बताया कि अवसाद तीन श्रेणी का होता है माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर। जनरल फिजीशियन्स को चाहिये कि मरीज को देखकर डिप्रेशन की कैटेगरी को वह तय कर ले तथा अगर माइल्ड और मॉडरेट श्रेणी का अवसाद है तो वे एंटी डिप्रेशन की दवायें देकर मरीज का इलाज कर सकते हैं लेकिन अगर सीवियर श्रेणी का डिप्रेशन है तो उन्हें चाहिये कि वे तुरंत विशेषज्ञ के पास रेफर कर दें। सीवियर डिप्रेशन के मरीजों का प्रतिशत करीब 5 है, उन्हें विशेषज्ञ मनोचिकित्सक के पास इलाज के लिए भेजना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि अगर डॉक्टर को लगता है कि वे माइल्ड और मॉडरेट श्रेणी के डिप्रेशन का इलाज नहीं कर पायेंगे तो उन्हें भी विशेषज्ञ यानी मनोचिकित्सक के पास भेज देना चाहिये।