-एसजीपीजीआई के डॉ राजीव अग्रवाल अब तक कई लोगों की कर चुके हैं इन्फ्रा इन गुवाइनल बाईपास सर्जरी
-डायबिटीज से ग्रस्त लोगों के जल्दी घाव न भरने के कारण हो जाता है खतरा
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। डायबिटीज के चलते होने वाले पैरों के घावों को भरने में होने वाली दिक्कत को दूर करने के लिए संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राजीव अग्रवाल ने पैर की बाईपास सर्जरी कर न सिर्फ इस परेशानी से निजात दिलायी बल्कि पैर को काटे जाने (एम्पुटेशन) से भी बचाने में सफलता प्राप्त की है, डॉ अग्रवाल पिछले छह माह से अब तक कई लोगों की बाईपास सर्जरी कर चुके हैं। हार्ट की बाईपास की तर्ज पर की जाने वाली यह सर्जरी काफी जटिल होती है, और सामान्यत: उत्तर प्रदेश तो दूर भारत वर्ष में भी डॉक्टर नहीं करते हैं।
यह जानकारी देते हुए सर्जरी के बारे में डॉ राजीव अग्रवाल ने बताया कि प्रक्रिया से ब्लॉक या संकुचित हो चुकी रक्तवाहिकाओं को द्वारा विगत छह माह में ऐसे कई प्रकार के रोगियों का एक नई विधि से ऑपरेशन करके लाभ दिया गया है, इस ऑपरेशन को मेडिकल भाषा में इन्फ्रा इन गुवाइनल बाईपास कहते हैं जिसमें कि शरीर की ही स्वस्थ रक्तवाहिका का प्रयोग करके, ब्लॉक वाली वाहिका को बाईपास किया जाता है। यह ऑपरेशन हृदय के बाईपास जैसा ही है, बस अन्तर इतना हीं है कि वह बाईपास हृदय में किया जाता है, यह बाईपास मधुमेह से ग्रसित पैरों के संकुचित वाहिकाओं को बाईपास करने में किया जाता है।
उन्होंने बताया कि यह ऑपरेशन अत्यन्त जटिल एवं हाइमैग्नीफिकेशन में माइक्रोस्कोप के द्वारा किया जाता है, और इसमें पैर की ही रक्तवाहिका से माइक्रोसर्जरी के द्वारा एक खास विधि से जोड़ा जाता है। इस आपरेशन में 5 से 10 घंटे का समय लग सकता है तथा रोग के अनुरूप लम्बी रक्त वाहिनियों का प्रयोग किया जाता हैं, जो कि एक से डेढ़ फिट तक लम्बी भी हो सकती हैं। डॉ अग्रवाल ने पिछले कुछ महीनों मे इस तरह के छह से आठ सफल शल्य क्रियायें एस0जी0पी0जी0आई0 में सम्पादित की हैं, तथा इससे रोगियों को अत्यन्त लाभा मिला है।
इस तरह का बाईपास आज के परिवेश में मधुमेह के उन रोगियों के लिए रामबाण सिद्ध हो रहा है जिनमें खासकर निम्न प्रकार की समस्याएं हैं
1.लम्बे अर्से से चली आ रही डायबिटीज के कारण रक्त की प्रमुख वाहिकाओं में जगह-जगह वसा के थक्के जमा होना एवं पचास प्रतिशत से भी अधिक संकुचित होना।
2.पैरों मे चलने के बाद अत्यन्त दर्द होना।
3.पैरों के घावों का लम्बे समय से ना भरना या पहले से अधिक बड़ा हो जाना।
4.पैरों में मधुमेह के कारण गैंगरीन होना(कालापन)।
5.बिना मधुमेह के भी पैरों में गैंगरीन होने पर यह ऑपरेशन कारगर साबित होता है।
इस ऑपरेशन में कुल एक से दो लाख का ही खर्च आता है, और पैरों में खराब हुई रक्तवाहिनियों को एक नया रक्त प्रवाहित होने का विकल्प मिल जाता है।
डॉ अग्रवाल ने बताया कि विश्व में सबसे ज्यादा मधुमेह के रोगी चीन के बाद भारत वर्ष में ही हैं। मधुमेह एक जीवन शैली से सम्बन्धित बीमारी है, और इसका प्रभाव शरीर के सभी अंगों पर पड़ता है, जैसे कि रेटीना, गुर्दे, रक्त की नलियां, तंत्रिकाएं एवं पैर। मधुमेह रोग अगर नियंत्रित ना किया जाये तो इसके दुष्प्रभाव से शरीर के सभी अंगों की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
मधुमेह का पैरों में अधिक प्रभाव पड़ता है और मधुमेह के कारण रोगियों में पैरों में घाव जल्दी हो जाते हैं एवं छोटी सी चोट लगने के बाद भी घाव भरने में अधिक समय लगता है। कई बार ऐसे घाव ठीक ही नहीं होते हैं अपितु और अधिक बड़े हो जाते हैं। ऐसे घावों को डायबिटिक फुट अल्सर कहा जाता है। सही प्रकार से इलाज न मिलने पर एक छोटा सा भी ऐसा घाव बढ़ते-बढ़ते पूरे पैर को भी प्रभावित कर लेता है।
मधुमेह में पैरों के घाव आज एक बहुत बड़ी समस्या है। जिसका इलाज कठिन एवं लम्बा होता है। मधुमेह में सबसे पहले पैरों के रंग में बदलाव आता है, और फिर सूजन और दर्द से रोग का आरंभ होता है। इस अवस्था में अगर चलते हुए, नाखून काटते हुए या किसी अन्य कारण से पैर में छोटी सी चोट भी लगती है, तो यह आसानी से ठीक नही होती है और जल्दी ही बड़ा रूप ले लेती है।
उन्होंने बताया कि काफी रोगियों में मधुमेह की बीमारी इतनी ज्यादा बढ जाती है कि रक्त की कोशिकाओं में थक्के जमा हो जाते हैं और ये कोशिकाएं ब्लॉक हो जाती हैं। इस अवस्था मे रोगी के पैरों में रक्त का प्रवाह अत्यन्त कम हो जाता है और इसी कारण से उंगलियों अथवा पैर में गैंगरीन भी हो जाती है।
मधुमेह के रोगों में पैरों के कम हुए रक्त प्रवाह एवं गैंगरीन के इलाज का विकल्प प्लास्टिक सर्जन के पास कम हो जाते हैं और ऐसे रोगियों को उंगली अथवा पैर को कटवाने (एमप्युटेशन) के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं रहता है।
संजय गांधी पी0जी0आई0 में मधुमेह के पैरों के घाव से ग्रसित रोगी सीमावर्ती एवं दूरस्थ शहरों से भारी संख्या में इलाज कराने आते हैं, ऐसे रोगी जिनमें मधुमेह के कारण पैरों की प्रधान रक्त वाहिकाएं या तो संकुचित हो चुकीं हैं या वसा के थक्के के कारण कई स्थानों पर ब्लाक हो चुकीं हैं, ऐसी अवस्था में एक ऐसे शल्य क्रिया की आवश्यकता होती है जो उपर हृदय से आ रहे रक्त को एक अतिरिक्त माध्यम के द्वारा नीचे पैर तक पहुंचाए और पैरों में कमजोर पड़ रहे रक्त प्रवाह को पुनः स्थापित करे जिससे कि पैरों के घाव को भरने की क्रिया तीव्र हो सके और पैरों में हो रही गैंगरीन को भी कुछ हद तक आगे बढ़ने से रोका जा सके।