-बस्ती डीएम की ओर से जारी आदेश से राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद में जबरदस्त नाराजगी
-जिलाधिकारी ने साफ किया, लिपिकीय त्रुटि से गलत आदेश हुआ जारी, अंशदान स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं
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धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। मुख्यमंत्री सहायता कोष में सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन से 500 रुपये की कटौती कर जमा करने के आदेश की खबर मिलते ही राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने इसके खिलाफ कड़ा विरोध जताया है। परिषद ने इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी बस्ती की ओर से 11 दिसम्बर को जिलास्तरीय अधिकारियों के लिए जारी किये पत्र की फोटो भी जारी की है, इस बारे में जब ‘सेहत टाइम्स‘ ने बस्ती के जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन से फोन पर सम्पर्क किया तो उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा कि लिपिकीय त्रुटि के कारण पत्र जारी हो गया था, अधिकारी/कर्मचारी से मुख्यमंत्री सहायता कोष में किसी तरह की धनराशि जमा करने की अनिवार्यता का आदेश नहीं है।
जिलाधिकारी ने यह भी बताया कि इस बात का पता चलते ही नया आदेश जारी कर दिया गया है जिसमें साफ लिखा है कि अधिकारी/कर्मचारी अपनी स्वेच्छा से सहायता कोष में दान दे सकते हैं, साथ ही उनसे अपेक्षा की गयी है कि वे आमजनमानस को भी यह सूचना देने का प्रयास करेंगे।
इससे पूर्व विशेष सचिव मुख्यमंत्री के अर्धशासकीय पत्र दिनांक 4 दिसम्बर 19 के क्रम में सभी राजकीय सेवकों के वेतन से 500 रुपये प्रतिमाह काटकर मुख्यमंत्री कोष में जमा कराने के फरमान को तुगलकी बताते हुए राज्य कर्मचारियों ने इसका कड़ा विरोध किया।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने बताया कि इस पत्र के जारी होते ही कर्मचारियों में हर तरफ प्रतिक्रिया देखने को मिली। जनपदों के साथियों के आक्रोश को देखते हुए राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने आज सुरेश रावत की अध्यक्षता में आपात बैठक आहूत की। बैठक में उपस्थित प्रतिनिधियों ने एक स्वर से उक्त आदेश को एक तुगलकी फरमान बताते हुए मुख्यमंत्री से इसे तत्काल वापस लेने का अनुरोध किया।
श्री मिश्रा ने कहा कि अगर कर्मचारी-अधिकारी और पेंशनर को जोड़ देंगे तो करीब 200 करोड़ प्रति माह सरकारी लेवी बनती है। सहायता का आधार केवल उनका विवेक होता है। ऐसा लगता है कि सरकार प्रदेश में सबसे धनी वर्ग कर्मचारी को ही मानती है जबकि बड़े-बड़े व्यापारियों उद्योगपतियों के तो कर्ज भी माफ कर देते हैं। किसी आपदा विशेष के निमित्त स्वेच्छा से तो मांगा जा सकता है, लेवी लगाकर नहीं।
कर्मचारियों का कहना है कि कर्मचारी और अधिकारी प्रदेश सरकार के साथ हैं और किसी भी आपदा के समय सदैव सभी कर्मचारी और अधिकारी सरकार के साथ खड़े रहते हैं। कर्मचारियों ने आवश्यकता पड़ने पर कई बार अपने वेतन का बड़ा हिस्सा दान किया है, लेकिन इस आदेश में जबरन वसूली जैसी बू आ रही है। परिषद के प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने कहा कि प्रदेश का कर्मचारी और अधिकारी किसी भी अपरिहार्य स्थिति में, किसी भी आपदा की स्थिति में हमेशा देश और प्रदेश की जनता के साथ खड़ा है। जब भी कर्मचारियों का आह्वान किया गया है कर्मचारियों ने खुले मन से सरकार का सहयोग किया है, लेकिन यह आदेश जबरदस्ती धन वसूली जैसा लगता है। इसलिए परिषद इस आदेश के विरुद्ध है और इस आदेश की कड़ी निंदा करती है, परिषद इसे कतई स्वीकार नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ईश्वर से कामना करता है कि कभी कोई आपदा की स्थिति पैदा न हो लेकिन यदि कभी भी आवश्यकता पड़ेगी तो प्रदेश का हर कर्मचारी सरकार के साथ खड़ा रहेगा परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत ने कहा कि इस आदेश के आते ही सोशल मीडिया से लेकर दूरभाष पर प्रदेश के कर्मचारियों की नाराजगी परिषद को प्राप्त हो रही है, जिससे मजबूर होकर परिषद ने आपात बैठक बुलाई, बैठक में आदेश का विरोध किया गया। बैठक को संबोधित करते हुए वरिष्ठ उपाध्यक्ष गिरीश मिश्रा ने कहा कि उक्त आदेश किसी भी रूप में स्वीकार नहीं होगा।
बैठक में संगठन प्रमुख केके सचान, उपाध्यक्ष अशोक कुमार, राजकीय फार्मासिस्ट महासंघ के महामंत्री अशोक कुमार, वन विभाग मिनिस्ट्रियल एसोसिएशन के महामंत्री आशीष मिश्रा, सचिव पीके सिंह, सतीश यादव, कमल श्रीवास्तव, राजेश चौधरी, सुनील यादव प्रवक्ता एलटी, सुभाष श्रीवास्तव जिला अध्यक्ष, अजय पांडेय सचिव आदि उपस्थित रहे। परिषद ने यह भी आशंका व्यक्त की कि यह आदेश मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाये बगैर जारी किया गया लगता है। अगर इस आदेश का पालन होता है तो यह कर्मचारियों की इच्छा के विपरीत होगा, इसलिए इसका सामूहिक रूप से बहिष्कार किया जाएगा परिषद ने आदेश को तुरंत वापस लेने की मांग की थी।