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प्रत्‍येक मनुष्‍य पर पांच करोड़ का है कर्ज है पेड़ों का

राज्‍यपाल ने पर्यावरण के लिए प्रतिष्ठित पुरस्‍कार से प्रो सूर्यकांत को नवाजा

 

लखनऊ। हर व्‍यक्ति पेड़ों का करीब पांच करोड़ रुपये का कर्जदार है। कैसे आइये हम बताते हैं। मनुष्‍य प्रतिदिन 350 लीटर ऑक्‍सीजन सांस के जरिये शरीर में लेता है। इस ऑक्‍सीजन की कीमत बीमार व्‍यक्ति के हॉस्पिटल में भर्ती होने पर ऑक्‍सीजन का बिल आने पर पता चलती है, इस हिसाब से अगर व्‍यक्ति की औसत आयु 65 वर्ष भी लगायी जाये तो जीवन भर में वह करीब पांच करोड़ रुपये की ऑक्‍सीजन लेता है जो कि हमें पेड़ों से मिलती है। अब ऐसे में सोचिये कि अगर इन पेड़ों को नुकसान पहुंचायेंगे और नये पेड़ तैयार करने के लिए पौधे नहीं रोपित करेंगे तो स्थिति कितनी भयावह हो जायेगी। जीवनदायक पेड़ों का हमें शुक्रगुजार होना चाहिये।

 

यह बात मंगलवार को राष्‍ट्रीय वन‍स्‍पति अनुसंधान संस्‍थान (एनबीआरआई) में आयोजित एक समारोह में किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय (केजीएमयू) के पल्‍मोनरी विभाग के हेड प्रो सूर्यकांत ने अपने उद्बोधन में कही। प्रो सूर्यकांत को पर्यावरण क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ऐन्‍वायरमेंटल बॉटेनिस्‍ट द्वारा फेलोशिप अवॉर्ड दिया गया है। प्रो सूर्यकांत को यह अवॉर्ड उत्‍तर प्रदेश के राज्‍यपाल राम नाईक द्वारा प्रदान किया गया। आपको बता दें प्रो सूर्यकांत ने वायु प्रदूषण और पर्यावरण पर काफी कार्य किया है जिसके लिए बीते 25 अगस्‍त को भी मुंबई में ऐन्‍वायरमेंट मेडिकल एसोसिएशन द्वारा उन्‍हें केसी मोहन्‍ती पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था।

 

प्रो सूर्यकांत ने कहा कि अब सवाल उठता है कि हमें क्‍या करना चाहिये। उन्‍होंने कहा कि पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए उनका त्रिसूत्रीय फॉर्मूला है। इसमें पहला है जब भी किसी समारोह में बुके देना हो तो उसकी जगह एक पौधा दें। दूसरा बच्‍चों का जन्‍मदिन हो या विवाह की वर्षगांठ इस पर मोमबत्‍ती न जलायें, इसकी जगह उतने ही पौधे लगायें जितने जन्‍मदिन और विवाह को वर्ष हुए हों। इससे जहां मोमबत्‍ती से निकलने वाले धुएं से बचाव होगा वहीं पेड़ों की संख्‍या भी बढ़ेगी। उन्‍होंने कहा कि तीसरा महत्‍वपूर्ण फॉर्मूला है कि रोज शाम को सोचिये कि आज आपने पर्यावरण को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया? जैसे अगर आपने दिन भर में पांच सिगरेट पीं तो आपने पर्यावरण का कितना नुकसान किया, (एक सिगरेट के धुएं से 30 प्रतिशत पीने वाले के अंदर और 70 फीसदी वातावरण में धुआं घुल जाता है) उस पर्यावरण का जिसके बेहतर रहने पर सभी का जीवन निर्भर है।

 

उन्‍होंने कहा कि हमारी संस्‍कृति किस तरह वैज्ञानिक तथ्‍यों पर आधारित है, इस संस्‍कृति में सिखाया जाता है कि पीपल के पेड़ को काटना नहीं चाहिये और इसी प्रकार घर के अंदर तुलसी के पौधे को लगाना आध्‍यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। इसका वैज्ञानिक कारण है कि वृक्षों में सबसे ज्‍यादा ऑक्‍सीजन देने वाला पेड़ पीपल है तथा पौधों में सबसे ज्‍यादा ऑक्‍सीजन हमें तुलसी से मिलती है, यानी हम कह सकते हैं कि घर के बाहर पीपल और घर के अंदर तुलसी का महत्‍व हमारे लिए जीवनदायिनी है।