केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग से हो रहा इलाज, अब तक दर्जनों बच्चे पूरी तरह ठीक हुए
13-14 साल की उम्र तक बच्चों को नहीं देना चाहिये मोबाइल प्रो विवेक अग्रवाल
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। एक दम्पति के इकलौते 13 वर्षीय बच्चे को मोबाइल पर गेम खेलने का ऐसा चस्का लगा कि उसने कक्षा 4 में ही स्कूल जाना छोड़ दिया। यह बच्चा 10 साल की उम्र से मोबाइल पर गेम खेलता है। फिलहाल इसका इलाज यहां किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के मानसिक रोग विभाग में चल रहा है। ‘सेहत टाइम्स‘ से विशेष वार्ता में इलाज करने वाले चिकितसक प्रो विवेक अग्रवाल ने बताया कि इलाज से बच्चा पूरी तरह से ठीक हो जायेगा। इस तरह के दर्जनों बच्चों को वह अब तक ठीक कर चुके हैं।
खिलौने की तरह बच्चों को मोबाइल देना ठीक नहीं
प्रो अग्रवाल ने बताया कि मेरी राय यह है कि 13-14 वर्ष की आयु तक बच्चे को मोबाइल नहीं देना चाहिये, इसके लिए माता-पिता को ध्यान रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कई बार ऐसी परिस्थितियां हो जाती हैं कि बच्चे की परवरिश पर माता-पिता का पूरा ध्यान नहीं रह पाता है, जैसा कि इस बच्चे के केस में हुआ, इसमें मां जहां डिप्रेशन की शिकार है वहीं पिता अपने काम पर चला जाता था इसलिए बच्चे की देखरेख ठीक से नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि लेकिन इन परिस्थितियों के चलते बच्चे को नुकसान होने वाली परिस्थितियां पैदा होने देना भी उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा भी होता है कि माता-पिता स्वयं भी बच्चे को खिलौने के तौर पर मोबाइल पकड़ा देते हैं, लेकिन यही खिलौना बच्चे की आदत बन जाता है जो उसके विकास में बाधक हो जाता है।
बच्चों की सभी मांगें पूरी की जायें, यह जरूरी नहीं
प्रो विवेक ने बताया कि बच्चों की कई तरह की मांगें होती हैं, लेकिन सभी मांगें पूरी करना जरूरी नहीं है, उसकी जरूरत के हिसाब से उसकी मांगों को पूरा करने की जिम्मेदारी माता-पिता की है। उन्होंने कहा कि घरवालों को चाहिये कि बच्चे को समय दें, उन्होंने कहा कि बच्चा तो कच्ची मिट्टी की भांति होता है, उसे जैसा चाहें वैसा बना दें, जाहिर है हर माता-पिता अपने बच्चे को स्वस्थ और जिम्मेदार नागरिक बनाना चाहते हैं लेकिन इसके लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा कि मोबाइल के फायदे-नुकसान बताने के लिए स्कूलों में भी शिक्षा दी जा सकती है, क्योंकि स्कूल ऐसी जगह है जहां बच्चा हर चीज आसानी से सीखता है। स्कूल के साथ ही जब घर पर भी ध्यान रखा जायेगा तो निश्चित ही ऐसा करना संभव हो सकता है।
संकोच न करें, चिकित्सक को दिखायें
उन्होंने कहा कि माता-पिता को चाहिये कि अगर बच्चा मोबाइल जैसी किसी भी तरह की लत का शिकार हो गया है तो उसे मानसिक रोग के चिकित्सक को दिखायें। उन्होंने बताया कि हालांकि लोगों में मानसिक रोग वाले चिकित्सक से मिलने में एक प्रकार की हिचक की भावना भी रहती है, उन्हें लगता है कि मानसिक रोग विभाग में एक विशेष प्रकार के गंभीर रोगियों को ही लाया जाता है, जबकि ऐसा नहीं है, ज्यादातर मानसिक बीमारियां तो सिर्फ काउंसलिंग या थोड़ी दवाओं से ठीक हो जाती हैं। इसलिए मानसिक रोग के चिकित्सक के पास जाने से झिझकना नहीं चाहिये।