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ट्रॉमा सेंटर में अब कोविड से संक्रमित नहीं होते हैं डॉक्‍टर व अन्‍य चिकित्‍सा कर्मी, जानिये कैसे

-‘मैनेजमेंट ऑफ इमरजेंसी एंड ट्रॉमा केयर ट्रेनिंग’ दी जा रही, अ‍ब तक 150 प्रशिक्षित

-कोविड काल में इलाज के लिए गोल्‍डेन आवर और प्‍लैटिनम मिनट्स बचाये जा रहे

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। बस एक छोटी सी चूक हुई नहीं कि इमरजेंसी में आने वाले कोरोना संक्रमित मरीज की चपेट में आ जाता है पूरा अस्‍पताल परिसर, अस्‍पताल में काम करने वाले डॉक्‍टर और अन्‍य चिकित्‍सा कर्मी, नतीजा अस्‍पताल परिसर को बंद करना, आने वाले मरीजों का काम ठप, डॉक्‍टरों व अन्‍य स्‍टाफ को क्‍वारंटाइन किया जाना, आईसोलेशन, परिसर का सैनिटाइजेशन आदि-आदि।

उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यायल (केजीएमयू) के ट्रॉमा सेंटर को अब कोरोना संक्रमण के चलते सील करने की नौबत नहीं आती है, न ही यहां का कोई डॉक्‍टर व अन्‍य चिकित्‍सा कर्मी संक्रमण की चपेट में आता है, दरअसल यह सब संभव हो सका है डॉक्‍टरों सहित चिकित्‍सा के कार्य में लगे प्रत्‍येक कर्मी को दिये गये विशेष प्रशिक्षण ‘मैनेजमेंट ऑफ इमरजेंसी एंड ट्रॉमा केयर ट्रेनिंग’ से। इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो हैदर अब्‍बास और ट्रॉमा सर्जरी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो संदीप तिवारी इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के नोडल अधिकारी हैं। दोनों नोडल ऑफीसर्स के साथ ही प्रो समीर मिश्र एवं अन्‍य लोग संस्‍थान के डॉक्‍टरों व अन्‍य पैरामेडिकल स्‍टाफ को इस प्रशिक्षण को देने का दायित्‍व सम्‍भाले हुए हैं। अब तक 150 लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।

प्रो संदीप तिवारी व प्रो समीर मिश्र

आपको बता दें कि लॉकडाउन पीरियड में एक-दो बार संक्रमित रोगी के सामान्‍य रोगियों के साथ ट्रॉमा सेंटर आने के बाद जहां परिसर को सैनिटाइज करने के लिए बंद करना पड़ा वहीं डॉक्‍टरों व अन्‍य स्‍टाफ को क्‍वारंटाइन भी करना पड़ा था। बस इसी के बाद इस प्रशिक्षण को देने की योजना बनी और उस पर क्रियान्‍वयन शुरू हो गया। केजीएमयू का ट्रॉमा सेंटर, जहां प्रदेश भर से हल्‍के गंभीर से लेकर अतिगंभीर मरीजों की चौबीसों घंटे आवक बनी रहती है, मरीज मेडिसिन (अंदरूनी रोगों) का हो या ट्रॉमा (चोट लगने का) का, थोड़ा सा भी गंभीर होने पर यहां रेफर कर दिये जाते हैं, आंकड़ों में बात करें तो अपनी क्षमता से ज्‍यादा का लोड (100 फीसदी के मुकाबले 120 से 130 फीसदी) हमेशा बना रहता है। ऐसे में मौजूदा कोविड काल में बिना जानकारी संक्रमित मरीजों के आने की सूरत में गैर संक्रमित मरीजों के साथ ही डॉक्‍टरों को भी संक्रमण से बचाना एक बड़ी चुनौती था, इसी चुनौती ने जन्‍म दिया चिकित्‍सक और चिकित्‍सा कर्मियों को संक्रमण से बचते-बचाते कार्य करने के प्रशिक्षण का।

नोडल अधिकारी प्रो संदीप तिवारी बताते हैं कि लॉकडाउन के समय और लॉकडाउन खुलने के बाद भी प्रदेश में ट्रॉमा सेंटर में इमरजेंसी सुविधायें लगातार दी जाती रही हैं, लॉकडाउन खुलने के बाद दुर्घटनाओं में फि‍र से वृद्धि हुई है। ऐसे में चिकित्‍सक, चिकित्‍सा कर्मियों को संक्रमण से बचाते हुए मरीज को समय से इलाज देना जारी रखने के लिए यह प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया गया है। फि‍लहाल इसे शुरुआत में ट्रॉमा सेंटर से जुड़े चिकित्‍सकों, नर्सों, स्‍टाफ नर्स, टेक्‍नीशियनंस, पैरामेडिकल स्‍टाफ को तीन घंटे का प्रशिक्षण दिया जा रहा है इस ट्रेनिग मॉड्यूल में 8 प्रेजेन्‍टेशन होते हैं। प्रत्‍येक बुधवार और शुक्रवार को इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है। उन्‍होंने बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो दूसरे अस्‍पतालों के चिकित्‍सा कर्मियों को भी यह प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

प्रो हैदर अब्‍बास

दूसरे नोडल ऑफीसर प्रो हैदर अब्‍बास ने बताया कि कोविड काल में मैनेजमेंट अलग तरीके से कार्य कर रहा है। इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि इलाज में महत्‍वपूर्ण गोल्‍डेन आवर और प्‍लैटिनम मिनट्स की अवधि में ही बिना समय गंवाये संक्रमण से बचते हुए किस प्रकार इलाज करना है। उन्‍होंने बताया कि हम लोगों ने एक स्‍क्रीनिंग एरिया बनाया है जहां पहले मरीज की स्‍क्रीनिंग की जाती है जिसमें कुछ प्रश्‍न पूछे जाते हैं तथा सामान्‍य तरीके से जांच की जाती है, इसके बाद रेड टैग व ग्रीन टैग एलॉट कर दिया जाता है। कोरोना संक्रमण के लक्षण प्रतीत होने पर रेड टैग देकर उसे कोरोना के लिए बने अलग एरिया की तरफ भेज दिया जाता है जबकि ग्रीन टैग की श्रेणी वाले को ट्राइएज एरिया में रखा जाता है जहां  उसका प्राइमरी सर्वे एयरवे, ब्रीदिंग, सरकुलेशन की जांच उसका इमरजेंसी असेसमेंट किया जाता है लेकिन यह सुनिश्चित किया जाता है कि जांच के अभाव में उसका इलाज न रुके, कोरोना जांच भी करायी जाती है और सुरक्षा और सावधानी बरतते हुए उसे इलाज भी दिया जाता है।

प्रो अब्‍बास बताते हैं कि कोविड काल की इस व्‍यवस्‍था को चलाये रखने के लिए हम लोग पहले इमरजेंसी व ट्रॉमा में जिनकी ड्यूटी लगती है, उन्‍हें यह प्रशिक्षण दे रहे हैं, इसके बाद दूसरे विभागों के लोगों को भी इमरजेंसी एंड ट्रॉमा का सुरक्षा के साथ इलाज कैसे किया जाये, इसका प्रशिक्षण दिया जायेगा, जिससे जरूरत पड़ने पर अगर उनकी ड्यूटी इमरजेंसी व ट्रॉमा में लगे तो उन्‍हें पता हो कि बिना जांच रिपोर्ट का इंतजार किये मरीज का किस प्रकार संक्रमण से बचते और बचाते हुए इलाज किया जाता है।

उन्‍होंने बताया कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की बड़ी संख्‍या के चलते अक्‍सर कॉरीडोर में भीड़ होने पर कॉरीडोर मैनेजमेंट कैसे करना है, भीड़ की वजह से देर होने पर मरीज को लगता है कि मेरा इलाज नहीं हो रहा है, ऐसे में उन्‍हें साइकोलॉजिकल सपोर्ट देना जरूरी होता है। उन्‍होंने कहा कि कॉरिडोर में विंडो के पीछे माइक लगा कर बैठ कर व्‍यक्ति मरीजों से सवाल पूछा करता है। उन्‍होंने कहा कि मरीज और दूसरों को भी एसएमएस शब्‍द याद रखना चाहिये। उन्‍होंने कहा कि यह एसएमएस मोबाइल वाला नहीं है बल्कि इस एसएमएस का अर्थ है एस  यानी सेफ सोशल डिस्‍टेंस़, एम यानी मास्‍क और एस यानी सैनिटाइजेशन, (एक दूसरे से दूरी बनाये रखते हुए, मास्‍क लगाये रहना और हाथों को सैनिटाइज करते रहना)  प्रो अब्‍बास कहते हैं कि मोबाइल केे युग में एसएमएस याद रखना आसान है।