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एचआईवी/एड्स के मरीजों के इलाज की पालिसी बदलने से हुआ फायदा

मृत्युदर में 35 प्रतिशत की कमी, नए मरीज भी 66 फीसदी घटे

लखनऊ. एचआईवी/एड्स के मरीजों के इलाज की पालिसी बदलने के अच्छे परिणाम सामने आये हैं. आठ वर्षों में इससे होने वाली मृत्यु की दर 35 प्रतिशत कम हो गयी है. पहले ऐसे मरीजो की जांच में सीडी 4 घटने पर दवा चलाई जाती थी किन्तु अब ऐसा नही है अब जांच में एचआईवी/एड्स की पुष्टि होने के तुरन्त बाद टेस्ट एण्ड ट्रीटमेंट पालिसी के तहत उनका इलाज प्रारम्भ कर दिया जाता है. यही नहीं नए मरीजों की संख्या भी 66 प्रतिशत घट गयी है. यह बात एआरटी प्लस सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ. डी हिमांशु ने विश्व एड्स दिवस, जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत केजीएमयू में आयोजित कार्यक्रम के दौरान दी.

मेडिसिन विभाग एवं एपीआई यूपी चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में केअर ऐंजल (नर्स) का प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ. प्रशिक्षण में चिकित्सा विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों की एक नर्स को केअर एंजेल के तौर पर नामित किया गया है जिससे चिकित्सा विश्वविद्यालय में आने वाले एचआईवी/एड्स के मरीजो को बेहतर उपचार दिया जा सके. ज्ञात हो कि चिकित्सा विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों मे कई ऐसे मरीज भर्ती होते है जिनके बारे मे पहले से एचआईवी/एड्स की जानकारी नहीं होती है ऐसे मरीज जब विश्वविद्यालय के चिकित्सालय में भर्ती होते है तो जांच मे एचआईवी/एड्स की पुष्टि होने पर केअर एंजेल नर्स द्वारा उन मरीजों की जानकारी तत्काल एआरटी सेण्टर को उपलब्ध कराई जाती है जिससे उन मरीजो के उपचार में सुविधा हो जाती है.

डॉ. डी. हिमांशु द्वारा एचआईवी/एड्स के उपचार में अपडेटेड गाइड लाइन पर एक व्याख्यान प्रस्तुत किया गया. डॉ. हिमांशु ने बताया पिछले एक साल में एचआईवी/एड्स की दवाओं में काफी बदलाव आ गया है. पहले ऐसे मरीजो की जांच में सीडी 4 घटने पर दवा चलाई जाती थी किन्तु अब ऐसा नही है अब जांच में एचआईवी/एड्स की पुष्टि होने के तुरन्त बाद टेस्ट एण्ड ट्रीटमेंट पालिसी के तहत उनका इलाज प्रारम्भ कर दिया जाता है. डॉ. हिमांशु द्वारा एचआईवी/एड्स के उपचार की नवीन विधियों एव एचआईवी मरीजों को किस तरह बेहतर उपचार दिया जा सके इस विषय पर चर्चा की गयी.

डॉ. हिमांशु ने बताया कि प्रत्येक वर्ष एचआईवी/एड्स के नये मरीजो में 66 प्रतिशत (2007 में 2.5 लाख से घटकर, 2015 में 85000) की गिरावट हो गयी है तथा इस बीमारी की वजह से होने वाली मृत्यु दर में भी 35 प्रतिशत की कमी देखी गई है। भारत में इस बीमारी के उपचार और रोकथाम में सफलता की दर, विश्व के अन्य देशों की तुलना में ज्यादा सराहनीय है. देश मे कुल मरीजो की संख्या करीब 21 लाख है जो कि दुनिया में दूसरे नम्बर पर है उत्तर प्रदेश में एचआईवी मरीजों की संख्या 123000 है तथा 64000 लोग एआरटी पर पंजीकृत हैं. बाकी मरीजों को एआरटी सेण्टर पर लाने का प्रयास चल रहा है। जिन मरीजों की दवा कम असर कर रही है, उनके लिए सेकण्ड लाइन की दवा एआरटी सेण्टर व सीओई पर उपलब्ध है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में करीब 400 मरीज सेकण्ड लाइन पर हैं. प्रदेश में साल 2017-18 में एचआईवी से संक्रमित 600 महिलाएं विभिन्न एआरटी सेण्टरों से दवाएं ले रही हैं. एचआईवी से संक्रमित टीबी के करीब 2000 मरीज है जो कि एआरटी सेण्टरों से दवा ले रहे हैं. पूरे यूपी में 38 एआरटी सेण्टर एवं 5 एआरटी प्लस सेण्टर हैं जो कि मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पतालों एवं सीएचसी/पीएचसी लेवल पर हैं.

एआरटी प्लस सेण्टर, केजीएमयू में 7511 मरीज पंजीकृत हैं, जिनमें 4813 मरीज एआरटी की दवा ले रहे हैं. करीब 300 एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिलाएं पंजीकृत हो चुकी हैं और दवा पर है। इनमें से केवल 5 बच्चों मे एचआईवी का संक्रमण पाया गया है। एआरटी प्लस सेण्टर में करीब 94 सेकण्ड लाइन के मरीज हैं. एचआईवी की दवा अब ज्यादा सुरक्षित है तथा इन्हें अब दिन में केवल एक बार लेना पड़ता है. एचआईवी-टीबी संक्रमित मरीजों के लिए टीबी की दवा की सुविधा आरएनटीसीपी के सहयोग से एआरटी सेण्टर पर ही उपलब्ध है.

 

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