लखनऊ। जब तक पल्स पोलियो की तरह टीबी को समाप्त करने के लिए कार्यक्रम नहीं चलेगा तब तक भारत से टीबी का खात्मा होना बहुत मुश्किल है। वर्तमान में सरकार द्वारा चलाये जा रहे अभियान के बावजूद अभी यह पता चलना सुनिश्चित नहीं हुआ है कि सरकारी चिकित्सालयों में इलाज कराने वाले टीबी के मरीजों को छोड़ दें तो बाकी जो निजी क्षेत्रों में इलाज करा रहे हैं वे इलाज कहां करा रहे हैं, करा भी रहे हैं अथवा नहीं। अगर नहीं करा रहे हैं या उचित इलाज नहीं करा रहे हैं तो समझ लीजिये कि ऐसा एक टीबी का मरीज 15 लोगों में टीबी पैदा कर रहा है।
टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय
यह बात इंडियन चेस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व चेयरमैन यूपी स्टेट टास्क फोर्स फॉर टीबी कंट्रोल प्रो सूर्यकांत ने आज यहां इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा द्वारा आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टीबी के कुल मरीजों में 27 प्रतिशत मरीज भारत में हैं यानी टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय है और हर डेढ़ मिनट में टीबी के एक मरीज की मौत हो रही है। उन्होंने बताया कि 28 लाख नये मरीज हर साल निकलते हैं।
एमडीआर मरीजों का पता चलना बहुत जरूरी
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा चिंता करने वाली बात यह है कि कुछ मरीज अधूरा इलाज करके फिर इलाज छोड़ देता है ऐसे मरीज मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट यानी एमडीआर टीबी के मरीज कहलाते हैं, इनमें जो सरकारी चिकित्सालयों में इलाज करा रहे होते हैं और बीच में इलाज छोड़ते हैं उन्हें तो स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर जाकर समझा-बुझाकर वापस ले आता है लेकिन निजी क्षेत्र में इलाज कराने वाला मरीज जब बीच में इलाज छोड़ता है तो उसका कुछ पता नहीं चलता। ऐसे ही मरीज अपने साथ-साथ दूसरों के लिए खतरनाक रहते हैं। ऐसे लोग दूसरे लोगों को भी एमडीआर टीबी ही फैलाते हैं।
उन्मूलन के लिए दिये सुझाव
उन्होंने सुझाव दिया कि अगर टीबी पर नियंत्रण पाना है तो टीबी मरीजों का नोटिफिकेशन अनिवार्य किया जाये जैसे कि यदि मरीज निजी डॉक्टर के पास पहुंचता है तो डॉक्टर उसका नोटिफिकेशन सरकार तक कराये। इसी प्रकार निजी चिकित्सकों का भी समय-समय पर उचित प्रशिक्षण होता रहे क्योंकि अक्सर देखा गया है कि निजी क्षेत्र के डॉक्टर टीबी की पहचान करने में गलती कर बैठते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह हर चमकती हुई चीज सोना नहीं होती है उसी प्रकार एक्स रे में दिखने वाला हर धब्बा टीबी नहीं होता। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार मेडिकल स्टोर्स पर बिना योग्य डॉक्टर के लिखे पर्चे पर इसकी दवायें न दी जायें। प्रो सूर्यकांत ने कहा कि पल्स पोलियो की तरह अभियान चलाना इसलिए जरूरी है कि उसमें समाज और सरकार के विभिन्न वर्गों के लोगों की भागीदारी होती है जिससे इलाज में आसानी होती है।