रॉयल स्टैग बैरल सिलेक्ट लार्ज शॉर्ट फिल्म्स ने आयोजित की पैनल चर्चा
लखनऊ। बॉलीवुड की अदाकारा दिव्या दत्ता का कहना है कि वेब फिल्मों के लिए किसी अन्य सेंसर बोर्ड की नहीं सेल्फ सेंसरशिप की जरूरत होनी चाहिये। दिव्या यहां रॉयल स्टैग बैरल सिलेक्ट लार्ज शॉर्ट फिल्म्स द्वारा शॉर्ट फिल्मों में परफेक्शन की तलाश को लेकर एक पैनल चर्चा में भाग लेने आयी थीं। इस दौरान इन शॉर्ट फिल्मों में प्रयोग की जा रही गालियों को लेकर पूछे गये सवाल के क्रम में दिव्या ने यह जवाब दिया। हालांकि तारिक का कहना था कि गालियां दिखाना गलत नहीं है, यह सब आम जीवन का हिस्सा है। दिव्या का कहना था कि फिलहाल तो सीमायें नहीं लांघी जा रही हैं खुद अपने आप फिल्म मेकर्स अपनी जिम्मेदारी को निभाकर सीमा में रहें लेकिन अगर सीमायें लांघी जाती तो मेरा मानना है कि शॉर्ट फिल्म मेकर्स ही अपना सेंसर बोर्ड गठित कर गाइडलाइन्स तैयार करें।
परिचर्चा में दिव्या दत्ता के अलावा सिनेमा जगत के अर्जन बाजवा, अनुराग अरोड़ा, तरुण जैन, मानसी जैन और तारिक सिद्दीकी जैसे दिग्गज पहुंचे हुए थे। उनके साथ अनुपमा चोपड़ा थीं, जो उनके परफेक्शन की कहानियों को बताने के लिए मौजूद थीं। इस मौके पर रॉयल स्टैग बैरल सिलेक्टन लार्ज शॉर्ट फिल्म्स की चार परफेक्ट फिल्मों के ट्रेलर दिखाये गये, जिनमें तारिक नावेद सिद्दीकी की द प्ले बॉय मिस्टर साहनी, मानसी जैन की एवरीथिंग इज़ फाइन, तरुण जैन की अम्मा मेरी और सुजॉय घोष की अनुकूल शामिल थीं। आपको बता दें कि इस तरह की वेब शॉर्ट फिल्मों का चलन इधर तेजी से बढ़ा है। इन कहानीकारों ने परफेक्ट फिल्मों को बनाने के पीछे की प्रेरणा के बारे में बताया।
इस मौके पर इन सभी कलाकारों ने लार्ज शॉर्ट फिल्म्स के साथ अपने अनुभवों के बारे में बताया। उन्होंने एक ऐसे प्लेटफॉर्म की आवश्यकता पर जोर दिया, जो कि उनके नये प्रयोगों और रचनात्मकता को सबसे बेहतर रूप में दिखाने का मौका दे। इस प्लेटफॉर्म पर अपनी बात रखते हुए पर्नोड रिकार्ड इंडिया के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर कार्तिक मोहिंद्रा ने कहा रॉयल स्टैग बैरल सिलेक्ट लार्ज शॉर्ट फिल्म्स का हमारा प्लेटफॉर्म भारत में शॉर्ट फिल्मों का मार्गदर्शक रहा है। हम फिल्म जगत के इन बेहतरीन कहानीकारों के साथ जुड़कर बेहद खुश हैं जिन्होंने न केवल सशक्त शॉर्ट फिल्में बनायी हैं बल्कि उन्होंने परफेक्शन के लिए इस प्लेटफॉर्म के स्तर को ऊपर उठाया है। ब्रांड के मेक इट परफेक्ट की फिलॉसफी के साथ हम लगातार प्रतिभाशाली फिल्मकारों को प्रोत्सांहित करते हैं कि वह बेझिझक अपनी वास्तविक क्रिएटिविटी को दिखायें।
एक सवाल के जवाब में इन कलाकारों का कहना था कि जो तीन घंटे की पारम्परिक फिल्में बनती हैं उनका क्रेज इन शॉर्ट वेव फिल्मों के चलते कम नहीं होगा क्योंकि हमारे यहां फिल्म देखने जाने का अर्थ सिर्फ फिल्म देखने जाना नहीं होता है बल्कि परिवार इसे इवेंट के रूप में लेता है।