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सरकारी हों या प्राइवेट अस्‍पताल, अनावश्‍यक भीड़ को आने से सख्‍ती से रोकना होगा

-लापरवाही या अनदेखी करने वाले लोग भुक्‍तभोगी देशों से सबक लें
-इस कठिन दौर में शक्ति और विवेक दोनों का इस्‍तेमाल होना जरूरी
-मौजूदा परिस्थिति में डरने की नहीं, सतर्कता के साथ लड़ने की जरूरत 

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। कोरोना वायरस से पूरा देश लड़ रहा है, यह ऐसी लड़ाई है जिसे सरकार के साथ ही सभी को मिलकर लड़ना है, इसके खिलाफ लड़ाई आसान नहीं है, भारत एक विकासशील देश है, जब‍कि विकसित देशों को इससे लड़ने में पसीने आ रहे हैं, ऐसे में हमारे सभी के प्रयासों से ही इससे निपटना आसान होगा। वैसे भी संयुक्‍त प्रयास से किया गया कार्य बोझ नहीं महसूस होता है। हमें सह समझना होगा कि यह हम सबकी भलाई के लिए ही है, इसलिए हम अपने विवेक का इस्‍तेमाल करते हुए इस महामारी से लड़ें।

इसका दूसरा पहलू यह है कि मानव जीवन के हित में भय बिन होय न प्रीत वाली कहावत को ध्‍यान में रखते हुए सरकार को अगर किसी प्रकार की सख्‍ती करनी पड़े तो उसे भी करना चाहिये। कोरोना वायरस जैसी महामारी से लोगों को बचाने के लिए की गयी सख्‍ती जिनके साथ की जायेगी, उन्‍हें भी बाद में अहसास होगा कि ऐसा उनके भले के लिए ही किया गया था। स्‍वस्‍थ और बीमार दोनों ही लोगों के लिए अस्‍पताल ऐसी जगह है जहां संक्रमण का खतरा सर्वाधिक होता है, ऐसे में सरकारी हों या प्राइवेट अस्‍पताल, इन अस्‍पतालों से अनावश्‍यक भीड़ को हटाना सख्‍ती से लागू करना पड़ेगा।

बच्‍चों की तरह करना होगा ट्रीट

महत्‍वपूर्ण बात यह है कि सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी का पालन हर स्‍तर पर हो, इसके लिए लोग खुद भी जागरूक हों, और अगर खुद जागरूक न हों तो उन्‍हें अगर जबरन जागरूक करना पड़े तो कराया जाये। चूंकि यह काम जनहित का है, तो उसमें जबरदस्‍ती कराने का अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिये कि इसके पीछे की भावना द्वेषपूर्ण है। इसे इस तरह समझना होगा कि जिस तरह हम अपने छोटे बच्‍चे के हित को देखते हुए उसे वही करने की सलाह देते हैं जो उसके लिए उचित हो, और अगर वह नहीं समझता है तो उसके साथ सख्‍ती भी करते हैं, तो इसके पीछे भाव यह नहीं होता है कि बच्‍चे से आपको दुश्‍मनी है, बल्कि इसके उलट भाव यह होता है कि आप बच्‍चे का भला चाहते हैं।

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार कुछ उदाहरणों की बात की जाये तो पढ़े-लिखे लोग इस तरह की लापरवाही कर रहे हैं। जैसे बांदा में एक युवक जो पुणे में संक्रमित घोषित किया गया था, भागकर अपने गांव आ गया, यहां 8-10 दिन के बाद जब तबीयत बिगड़ी तो उसे जिला अस्‍पताल ले जाया गया। आगरा की महिला के केस में भी यही बात सामने आयी थी। आखिर इस तरह की लापरवाही से लोग अपने साथ-साथ अपने प्रियजनों और समाज सभी का नुकसान कर रहे हैं। ऐसे में इस नुकसान को रोकना अत्‍यंत आवश्‍यक है।

संयुक्‍त प्रयास जरूरी

केंद्र सरकार हों या राज्‍य सरकारें, सभी अपनी ओर से पूरे मनोयोग से इसके खिलाफ लड़ रही हैं, यही नहीं गैर सरकारी संस्‍थायें हों या फि‍र व्‍यक्तिगत स्‍तर पर भी काफी प्रयास हो रहे हैं, लेकिन यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि यहां कुछ लोगों के प्रयास या जागरूकता से काम नहीं चलेगा, इसमें सभी की भागीदारी जरूरी है, क्‍योंकि एक लापरवाही मनोयोग से काम करने वाले की मेहनत पर पानी फेर सकती है। इसे क्रिकेट की भाषा में समझें तो यह ऐसा ही है कि आपने गेंद तो पूरी घुमावदार फेंककर बल्‍लेबाज को चकमा दिया जिससे उसने कैच उछाल दिया लेकिन फील्‍डर ने लापरवाही दिखाते हुए कैच छोड़ दिया।

यहां यह बात इस संदर्भ में कही जा रही है कि जैसे भीड़-भाड़, संक्रमण से बचने के लिए सरकार द्वारा जो एडवाइजरी जारी की गयी है, उसका पालन सख्‍ती से कराया जाये। इसमें अस्‍पताल ऐसी जगहें हैं जहां संक्रमण का खतरा सबसे ज्‍यादा होता है। ऐसी जगहों पर क्‍यों न कुछ पाबंदियां सख्‍ती से लागू करा दी जायें, अस्‍पतालों में भी सिर्फ सरकारी अस्‍पताल ही नहीं बल्कि प्राइवेट अस्‍पताल भी शामिल हों, इन पाबंदियों में मरीज के साथ रहने वाली अनावश्‍यक भीड़ को हटाना अत्‍यंत आवश्‍यक है। यानी एक मरीज के साथ सिर्फ एक तीमारदार के रहने का नियम बनायें अन्‍यथा की स्थिति में भारी भुगतान या जुर्माना लागू किया जा सकता है जैसे कि रेलवे विभाग ने किया है कि प्‍लेटफॉर्म पर भीड़ को कम करने के लिए प्‍लेटफॉर्म का टिकट पांच गुना करते हुए 10 रुपये से 50 रुपये कर दिया। हालांकि इसमें यह तर्क दिया जा सकता है कि पांच गुना खर्च करके भी लोग जायेंगे लेकिन जानेवालों की संख्‍या पर कुछ तो असर पड़ेगा।

चंडीगढ़ पीजीआई का अच्‍छा कदम

इस मामले में चंडीगढ़ पीजीआई ने अच्‍छा कदम उठाया है, संस्‍थान ने भी अपने यहां जो एडवाइजरी जारी की है उसमें कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर, पीजीआईएमईआर प्रशासन द्वारा आम जनता को पीजीआई ओपीडी में मामूली या नियमित बीमारियों के लिए न आने  की सलाह दी है। इसी प्रकार कहा गया है कि ओपीडी में आने वाले या विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों को केवल एक परिचर के साथ जाना चाहिए। यह भी कहा गया है कि जो मरीज पोस्ट-ट्रांसप्लांट, कैंसर और क्रोनिक रीनल फेल्योर जैसे पुराने विकारों से पीड़ित हैं और जो इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड हैं, उन्हें भीड़भाड़ वाले क्लीनिकों में नियमित ओपीडी के दौरे से बचना चाहिए, जब तक कि यह बहुत आवश्यक न हो। इसके साथ ही एडवाइजरी में कहा गया है कि आसपास के राज्यों के चिकित्सा संस्थानों और सिविल अस्पतालों से भी अनुरोध किया जाता है कि जब तक कोई आपात स्थिति न हो, तब तक मरीजों को पीजीआई रेफर करने से बचें।

दूसरे देशों से सबक लेना होगा

यहां यह ध्‍यान रखना आवश्‍यक है कि लापरवाही के चलते दूसरे देशों में इसका क्‍या प्रभाव पड़ा, उससे सबक लिया जाये, कि वे लोग आज घरों में कैदी की तरह रहने को मजबूर हैं। एक और सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण बात यह है कि इस विषम परिस्थिति में डरने की नहीं इससे हिम्‍मत के साथ लड़ने की जरूरत है।

(‘सेहत टाइम्‍स’ ने सभी लोगों के हित को ध्‍यान में रखते हुए इस लेख के माध्‍यम से अपने विचार रखे हैं)