-केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग में वर्ष 2009 में हुई थी योग केंद्र की स्थापना
-अस्थमा और योग संबंधी 20 शोध पत्र इंडियन व इंटरनेशनल जर्नल्स में हो चुके हैं प्रकाशित
सेहत टाइम्स
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त ने कहा है कि अस्थमा के रोगी इनहेलर के साथ-साथ योग व प्राणायाम भी करें। विभाग में हुए अस्थमा पर योग के प्रभाव के विभिन्न शोधों से यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ योग, प्राणायाम व ध्यान का नियमित रूप से प्रतिदिन 30 मिनट भी अभ्यास किया जाए तो रोगी की गुणवत्ता प्रभावित होती है, इनहेलर की मात्रा कम की जा सकती है, दौरों को नियंत्रित किया जा सकता है, फेफड़ों की कार्य क्षमता बढ़ती है।
इन आसन और प्राणायाम को करने की सलाह
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून की पूर्व संध्या पर डॉ. सूर्य कान्त ने कहा कि योग के महत्व को देखते हुए वर्ष 2009 में हमने अपने विभाग में योग केंद्र की स्थापना की जिससे सांस के रोगियों की समस्या को कम किया जा सके और वे योग व प्राणायाम को अपनी जीवन शैली में शामिल करें। उन्होंने कहा कि विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों द्वारा योग को सबसे अच्छी सह चिकित्सा के रूप में स्वीकार किया गया है। उन्होंने कहा कि अस्थमा के रोगियों को प्रतिदिन इनहेलर लेना चाहिए और साथ ही साथ गोमुखासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, धनुरासन, ताड़ासन, पर्वत आसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम एवं भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए।
डॉ सूर्यकान्त के अब तक अस्थमा और योग संबंधी 20 शोध पत्र इंडियन व इंटरनेशनल जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं, जो इस विषय में प्रकाशित सर्वाधिक शोध पत्र हैं। उनके दिशा निर्देशन में वर्ष 2009 में पीएचडी में पंजीकृत श्रुति अग्निहोत्री को वर्ष 2014 में डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। इस शोध कार्य को वर्ष 2018 में प्रतिष्ठित चार्ल्स रिकेट प्राइज द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। इंडियन कौंसिल ऑफ़ सोशल साइंस रिसर्च द्वारा 2018 में पोस्ट डॉक्टोरल फैलोशिप भी डॉ. श्रुति अग्निहोत्री को प्रदान की गई। यह इस विषय में प्रदान की जाने वाली विश्व की प्रथम डॉक्टरेट एवं पोस्ट डॉक्टरेट उपाधि है। डॉ. श्रुति अग्निहोत्री रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ हैं ।
विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त एवं पूर्व अध्यक्ष इंडियन कॉलेज आफ एलर्जी अस्थमा एवं अप्लाइड इम्यूनोलॉजी के अनुसार विश्व में लगभग 40 करोड़ लोग अस्थमा से ग्रसित हैं और इसका लगभग 10 प्रतिशत 3.57 करोड़ लोग भारतवर्ष में है । भारत में प्रतिवर्ष 2 लाख लोगों की मृत्यु इस रोग के कारण होती हैं । दुनिया में अस्थमा से होने वाली मृत्यु का 46 प्रतिशत भाग भारतवर्ष में ही है।
उन्होंने बताया कि अस्थमा एक गंभीर बीमारी है जिसमें श्वास नलियों की भीतरी दीवारों में सूजन आ जाती है जो किसी भी एलर्जन के संपर्क में आने से प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं और फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है। फलस्वरुप नाक-बहना, खांसी-आना, छाती में जकड़न महसूस, होना, सांस लेने में तकलीफ होना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। इसके लिए फेफड़ों की कार्य क्षमता का परीक्षण किया जाता है जिसे पीएफटी कहते हैं। इसके अलावा एलर्जी परीक्षण, रक्त परीक्षण, छाती और साइनस का एक्स- रे किया जाता है। अस्थमा के रोगियों में इनहेलर सबसे प्रभावी इलाज है जिसका प्रयोग उचित तरीके से डॉक्टरी सलाह के अनुसार करना चाहिए ।
डॉ सूर्यकान्त ने बताया कि वर्ष 2015 से अब तक हुए शोध कार्य को इंटरनेशनल जर्नल डायनेमिक ऑफ़ ह्यूमन हेल्थ, यूरोपीय जनरल ऑफ़ फार्मास्यूटिकल एंड मेडिकल रिसर्च एवं इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ साइंटिफिक रिसर्च में प्रकाशित किया गया है।