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एक कोशिश यूपी में किसी भी व्‍यक्ति को हार्ट अटैक पड़ने पर समय रहते इलाज देने की

दो दिवसीय ‘स्‍टेमी इंडिया-2018’ प्रारम्‍भ, सरकारी और निजी क्षेत्र की सहमति होने पर ही लागू हो पायेगा स्‍टेमी इंडिया प्रबंधन 

लखनऊ।  दिल की बीमारी जिस तेजी से बढ़ रही है और लोगों को समय पर चिकित्‍सा नहीं मिल पाती है उसी का हल निकालने के के लिए ही ‘स्‍टेमी इंडिया-2018’ का आयोजन किया गया है। स्‍टेमी इंडिया द्वारा विकसित किये गये प्रबंधन का लागू करके हम बहुत से मरीजों की जान बचा सकते हैं। 30 जून और 1 जुलाई को हो रही इस कार्यशाला में आज पहले दिन के सेशन में इस पर विस्‍तार से कार्यशालायें हुईं। इन कार्यशालाओं के जरिये यह बताने की कोशिश की गयी कि कम से कम समय में हार्ट अटैक होने पर मरीज को बेहतर चिकित्‍सा सुविधा प्रदान करते हुए उसकी जान बचायी जा सकती है।

 

यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के हृदय रोग विभाग लारी कार्डियोलॉजी के डॉ अक्षय प्रधान और डॉ प्रवेश विश्‍वकर्मा ने देते हुए बताया कि स्‍टेमी इंडिया द्वारा जो प्रबंधन कोर्स तैयार किया गया है उसमें सिर्फ डॉक्‍टर ही नहीं नर्स और अन्‍य पैरामेडिकल स्‍टाफ को भी ट्रेंड किया जाता है कि जब इस तरह का मरीज आये तो उन्‍हें क्‍या करना है। डॉ प्रधान ने बताया कि दिल का दौरा जब पड़ता है तो इसमें सबसे ज्‍यादा महत्‍व समय का है। गोल्‍डन आवर यानी दिल के दौरे के एक घंटे के अंदर मरीज को अस्‍पताल पहुंच जाना चाहिये जिससे उसे बचाया जा सके। उन्‍होंने बताया कि दिल का दौरा पड़ने पर सिर्फ डॉक्‍टर पर ही निर्भर नहीं रहा जा सकता है, हॉस्पिटल के अन्‍य स्‍टाफ को भी पता होना चाहिये कि कौन सा इंजेक्‍शन देना है। उन्‍होंने बताया कि ज्‍यादा से ज्‍यादा एक घंटे के अंदर इंजेक्‍शन और 24 घंटे के अंदर एंजियोप्‍लास्‍टी हो जानी चाहिये।

 

उन्‍होंने बताया कि स्‍टेमी इंडिया के तहत जो व्‍यवस्‍था लागू की जाती है वह है दिल के दौरे के बाद इसका शीघ्र इलाज कैसे किया जाये तो इसके लिए पहले अस्‍पतालों को जोड़ने का काम किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि जैसे उत्‍तर प्रदेश में करीब 70 कैथ लैब हैं जहां एंजियोप्‍लास्‍टी हो सकती है इनमें करीब 20 सरकारी और 50 निजी क्षेत्र में हैं। ऐसी स्थिति में स्‍टेमी इंडिया के तहत इन कैथ लैबों को इनके नजदीक के अस्‍पतालों से जोड़ा जाये ताकि मरीज जब पहुंचे तो उसे नजदीक की कैथ लैब में एंजियोप्‍लास्‍टी के लिए भेजा जा सके। उन्‍होंने बताया कि अगर मरीज एंजियोप्‍लास्‍टी नहीं कराना चाहता है तो उसका इलाज दवाओं से करना पड़ता है जिससे एंजियोप्‍लास्‍टी की तरह तो आराम नहीं आ सकता है लेकिन चूंकि यह मरीज के परिजनों पर निर्भर करता है कि वे एंजियोप्‍लास्‍टी के लिए तैयार होते हैं या नहीं क्‍योंकि एंजियोप्‍ला‍स्‍टी में अगर लारी कार्डियोलॉजी की बात करें तो कम से कम 30 हजार रुपये का खर्च आता है और निजी अस्‍पतालों में यह खर्च ज्‍यादा आता है। अगर परिजन एंजियोप्‍लास्‍टी नहीं कराते हैं तो ऐसी स्थिति में थॉम्‍बोलाइसिस यानी क्‍लॉटिंग को पिघलाने वाली दवा देते है।

 

उन्‍होंने बताया कि स्‍टेमी इंडिया के प्रबंधन के लिए चूंकि बहुत सी कड़ियों को जोड़ना होता है तो इस कॉन्‍फ्रेंस में कल इस पर बैठक होनी है जिसमें सरकार और निजी क्षेत्र से जुड़े लोगों को शामिल होना है उसी के बाद यह तय होगा कि इस प्रबंधन का कितने क्षेत्र में इस्‍तेमाल किया जा सकता है, क्‍योंकि जितने ज्‍यादा कैथ लैब और छोटे-बड़े सरकारी और निजी अस्‍पताल जुड़ेंगे उतना ही प्रबंधन क्षेत्र का फैलाव हो सकेगा।

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