आयुर्वेदिक सलाह : प्रकृति के अनुरूप रखें खानपान, जरूर करें व्यायाम
ऐलोपैथिक सलाह : जितनी जल्दी होगी पहचान, उतना ही सफल समाधान
होम्योपैथिक सलाह : कारणों पर जब होगा वार, निश्चित होगी कैंसर की हार
-लघु उद्योग भारती एवं आरोग्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में चर्चा की सराहनीय पहल
धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ। कैंसर के कारणों और उसके निदान को लेकर आज 21 मार्च को लघु उद्योग भारती एवं आरोग्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में जूम ऐप प्लेटफॉर्म पर एक चर्चा का आयोजन किया गया। इस चर्चा की खास बात यह रही कि इसमें ऐलोपैथिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथी तीनों विधाओं के चिकित्सकों ने इसके कारणों और इसकी पहचान पर महत्वपूर्ण बिन्दुओं को रखा। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ अशोक कुमार वार्ष्णेय ने जहां इससे बचाव के बारे में जीवन शैली से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को रखा, वहीं ऐलोपैथिक कैंसर विशेषज्ञ डॉ प्रमोद कुमार गुप्ता ने इसकी शीघ्र पहचान कर शीघ्र इलाज पर चर्चा को केंद्रित रखा जबकि होम्योपैथी में शोधों की नयी परिभाषा लिखने वाले डॉ गिरीश गुप्ता ने कैंसर होने के कारणों के पीछे शारीरिक के साथ ही मानसिक पहलुओं की भी अहम भूमिका होने के बारे में जानकारी दी। इस चर्चा को भारत के साथ ही विदेशों में भी लोगों ने देखा।
जूम प्लेटफॉर्म पर तीन विधाओं के चिकित्सकों को एक साथ लाने वाले लघु उद्योग भारती व आरोग्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में हुई इस चर्चा की शुरुआत लघु उद्योग भारती की लखनऊ शाखा के विशाल गुप्ता ने सभी पैनलिस्ट का परिचय कराते हुए उनके स्वागत से की। आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव आयुर्वेद चिकित्सक डॉ अशोक कुमार वार्ष्णेय ने कहा कि जैसा कि हमारी संस्था का नाम है उसी के अनुरूप हमारा पहला उद्देश्य यही होता है कि रोग से बचा जाये। उन्होंने कहा कि हमारी जीवन शैली की हमें बीमार करने में अहम भूमिका होती है, हम कब खाते हैं, क्या खाते हैं, कितना खाते हैं, इन सभी का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि कैंसर एक रोग नहीं रोगों का समूह है, ये कई तरह के होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी दिनचर्या में व्यायाम भी बहुत आवश्यक है, व्यायाम छोटा हो या बड़ा सभी के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारा खानपान, जीवन शैली प्रकृति के अनुरूप होना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने हमें जलवायु के हिसाब से पैदावार में चीजें दी हैं, प्रत्येक मौसम में जो चीजें पैदा होती है उनका सेवन अवश्य करना चाहिये, उन्होंने कहा कि प्रकृति की ऐसी व्यवस्था है कि जहां हम रहते हैं उसके 100 किलोमीटर के दायरे में जो भी चीजें पैदा होती हैं, वे चीजें हमें स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त हैं।
डॉ वार्ष्णेय ने विरुद्ध आहार न करने पर जोर देते हुए कहा कि जैसे दूध और दही को साथ में नहीं खाना चाहिये, दूध के साथ खट्टा व नमकीन का सेवन न करें। उन्होंने कहा कि खाना हम गरम खाते हैं लेकिन साथ में पानी, सलाद, फल फ्रिज से निकला हुआ ठंडा खाते हैं, यह गलत है। इसी प्रकार भूख न लगने पर नहीं खाना चाहिये, मूली जब भी खायें पत्ते के साथ खायें चाहें सलाद के रूप में या भुजिया के रूप में। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग मूली का सेवन बाद में दुर्गन्ध से बचने के लिए नहीं करते हैं, लेकिन पत्ते सहित मूली खाने पर दुर्गन्ध की समस्या नहीं रहती है।
प्रति वर्ष 14 लाख नये कैंसर रोगी
ऐलोपैथिक क्षेत्र से लखनऊ स्थित सुपर स्पेशलिटी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड हॉस्पिटल के रेडिएशन एवं क्लीनिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ प्रमोद कुमार गुप्ता ने अपनी चर्चा में कहा कि आईसीएमआर के आंकड़े बताते हैं कि प्रति वर्ष 14 लाख नये कैंसर रोगी हो जाते हैं, इस दर से वृद्धि रही तो 2025 तक 17 लाख प्रति वर्ष कैंसर रोगी हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा कैंसर पाया गया है। डॉ प्रमोद ने कहा कि कैंसर 200 बीमारियों का समूह है। उन्होंने बताया कि 90 प्रतिशत कैंसर मस्तिष्क, गला, नाक, फेफड़ा, स्तन, खाने की नली, आंत, हड्डी, गर्भाशय, प्रोस्टेट में पाये जाते हैं। उन्होंने कहा कि कैंसर में 27 प्रतिशत कैंसर का कारण तम्बाकू या उससे बने उत्पाद का सेवन होता है तथा 17 प्रतिशत कैंसर वायु प्रदूषण के कारण होता है।
उन्होंने कहा कि कैंसर की चार स्टेज होती हैं। उन्होंने कहा सबसे अच्छा तो यह है कि कैंसर न हो, लेकिन अगर हो ही जाता है तो कोशिश करनी चाहिये कि जितनी जल्दी यानी पहली, दूसरी स्टेज पर ही इसका इलाज करा लिया जाये, हालांकि तीसरी और चौथी स्टेज में भी मरीज का इलाज हो सकता है लेकिन तीसरी स्टेज में करीब 60 प्रतिशत ठीक होने की संभावना रहती है, जबकि चौथी स्टेज में व्यक्ति के जीवन को थोड़ा और समय तक बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग दिक्कत होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन मेरा सुझाव है कि 50 वर्ष से अधिक की आयु वालों को हर तीन साल में अपनी जांच करा लेनी चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि अचानक वजन कम होने लगे, भूख कम हो जाये तो शीघ्र ही डॉक्टर से मिलना चाहिये। उन्होंने कहा कि महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर स्तन का कैंसर व गर्भाशय के मुंह का कैंसर है।
डॉ प्रमोद ने कहा कि रोज 30 से 45 मिनट व्यायाम करना चाहिये, स्वस्थ जीवन शैली को अपनाने भर से 60 फीसदी कैंसर से बचे रहेंगे। उन्होंने कहा कि कैंसर का इलाज ऑपरेशन, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी से होता है और इसमें सरकारी क्षेत्र में भी कम से कम कुल मिलाकर 1 से 2 लाख रुपये का खर्च आता है, इसलिए कोशिश करिये कि ऐसी नौबत न आये। उन्होंने कहा कि लोगों में यह भी भ्रम रहता है कि बायप्सी कराने के बाद कैंसर एकदम से बढ़ जाता है, यह पूर्णत: गलत है, कैंसर अपने हिसाब से ही बढ़ता है, इसलिए आवश्यक है कि इसे शीघ्र पहचानने के लिए अगर चिकित्सक बायप्सी की सलाह देते हैं तो बायप्सी करा लेनी चाहिेये ताकि शीघ्र पता चलने से इसका उपचार आसान और ज्यादा फलदायक होगा।
स्थितियों-परिस्थितियों में भी छिपा रहता है रोग का कारण
होम्योपैथी क्षेत्र से गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथी रिसर्च के चीफ कंसल्टेंट फिजीशियन डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा कि यह बहुत ही अच्छी बात है कि आज तीन विधाओं के चिकित्सक एक प्लेटफॉर्म पर एकसाथ हैं, इसके लिए आयोजकों को धन्यवाद देता हूं। उन्होंने कहा कि एक टर्म है इडियोपैथिक, जो रोग होने का कारण अज्ञात होने की स्थिति में चिकित्सकों द्वारा लिखा जाता है, उन्होंने कहा कि इस विषय में मेरा यह मानना है कि कोई भी रोग बिना कारण नहीं होता है। उन्होंने कहा कि इस विषय में होम्योपैथी का यह सिद्धांत है कि रोगी का उपचार करते समय उसे जिस अंग में तकलीफ है उसके लक्षणों (डिजीज सिम्प्टम्स) के साथ ही उसकी मानसिक स्थिति, मन:स्थिति का भी आकलन करना चाहिये। उन्होंने कहा कि मेरे पास ऐसे सैकड़ों केस आते हैं, जिनमें मरीज का खानपान, आचार-विचार इस प्रकार के नहीं थे जो कैंसर के कारण बन सकें लेकिन जब उनकी हिस्ट्री उनकी मन:स्थिति, उनके साथ घटी घटनायें आदि के बारे में जाना गया तो पाया गया कि अमुक घटना के चलते उसकी मन:स्थिति ठीक नहीं रही थी, जिसकी वजह से ऐसे हार्मोन्स का निर्माण उसके शरीर में हो गया जो कैंसर का कारण बन गये।
उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि उनके पास एक ब्यूरोक्रेट प्रोस्टेट की शिकायत लेकर आये थे, उनका आहार-विहार आदि सबकुछ ठीक था लेकिन एक घटना उनके जीवन में ऐसी घटी जिसने उनपर अत्यधिक प्रभाव डाला। हुआ यूं था कि जब वह मंडलीय स्तर के अधिकारी थे उस समय उनके अधिकारी ने उन्हें सबके सामने बहुत डांटा था, इससे वे बहुत ही लज्जित महसूस कर रहे थे, उस घटना के बाद से उन्होंने अपने आपको अकेला कर लिया, उन्हें लगता था कि वे टॉपर रहे थे, उनके पास विदेशों से अच्छे ऑफर थे, कहीं भी जाकर सर्विस कर सकते थे, लेकिन उन्होंने देश से बाहर जाना ठीक नहीं समझा, अपने तब के फैसले पर अब उन्हें पछतावा हो रहा था। लम्बे समय के टेंशन के कारण उनके शरीर में निकलने वाले हार्मोन्स ने उन्हें प्रोस्टेट का रोगी बना दिया था। इसी तरह एक अन्य रोगी को नोटबंदी के बाद इतना सदमा लगा कि वे बीमार हो गये। उन्होंने कहा कि कुछ रोगियों में देखा गया कि उनकी सीटी स्कैन, एमआरआई, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट में कुछ नहीं पता चला बाद में जब होलिस्टिक अप्रोच के तहत रोगी की मन:स्थिति के बारे में जाना गया तो पता चला कि वर्षों से किसी घटना को लेकर वह तनाव में जी रहे थे।
डॉ गिरीश ने कहा कि कैंसर से ज्यादा खतरनाक कैंसर का डर होता है, उन्होंने कहा कि एक महिला जिसे ओवरी की शिकायत थी, वह ऐसा ही सोचती थी कि उसे कहीं कैंसर न हो, यह सोचते-सोचते उसके शरीर में ऐसे हार्मोन्स का स्राव हुआ कि वह वाकई कैंसर ग्रस्त हो गयी। उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह है कि होम्योपैथी में कैंसर के डर की भी दवा है। मरीज जब दवा से ठीक हो जाता है तब वह सोचकर अपने ऊपर ही हंसता है कि मैं तो बेकार में ही डर रहा था।
उन्होंने कहा कि कैंसर के ऐलोपैथी से इलाज के समय कई रोगी दवाओं के साइड इफेक्ट को लेकर परेशान रहते हैं, उन्होंने कहा कि ऐसे अनेक रोगी हैं जो कैंसर की रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी आदि तो ऐलोपैथिक में कराते हैं, साथ ही साइड इफेक्ट से उबरने के लिए उनसे होम्योपैथिक दवा भी लेते हैं। डॉ गिरीश गुप्ता ने सुझाव दिया कि जिस प्रकार ऐलोपथी में भी मरीज की सर्जरी के साथ ही जरूरत होने पर कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी की जाती है, उसी प्रकार एक कुशल टीम की निगरानी में होम्योपैथी उपचार को भी चलाया जाये तो मरीज को उस परेशानी में भी लाभ मिलेगा जिनका इलाज ऐलोपैथी में नहीं है, साथ ही मरीज की रिकवरी बहुत अच्छी हो जायेगी।
लघु उद्योग भारती के प्रांतीय अध्यक्ष जनक भाटिया ने इस महत्वपूर्ण चर्चा में दिये गये चिकित्सकों के सुझावों को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि खानपान, व्यायाम से लेकर कैंसर के निदान और उपचार पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिये। उन्होंने अपने सम्बोधन का अंत शांति पाठ सर्वे भवन्तु सुखिन:…से किया।