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आखिर ऐलोपैथ विशेषज्ञ ने क्‍यों जरूरत समझी होम्‍योपैथी का अविष्‍कार करने की?

डॉ अनुरुद्ध वर्मा

डॉ अनुरुद्ध वर्मा एक वरिष्‍ठ होम्‍योपैथ विशेषज्ञ हैं तथा उत्‍तर प्रदेश सरकार के वरिष्‍ठ चिकित्‍साधिकारी पद से सेवानिवृत्‍त हो चुके हैं। डॉ वर्मा शुरू से ही बहुत सक्रिय रहे हैं, चाहे वह संगठन का कार्य हो अथवा होम्‍योपैथिक के उत्‍थान का। डॉ वर्मा ने विश्‍व होम्‍योपैथिक दिवस पर लिखे गये अपने इस सारगर्भित लेख में स्‍वस्‍थ भारत बनाने के लिए सस्‍ती, सुलभ और बिना साइड इफेक्‍ट वाली होम्‍योपैथिक दवाओं के उपयोग के लिए आमजन से लेकर विशेषरूप से नीति निर्धारकों तक का आह्वान किया है कि जनहित में होम्‍योपैथी को बढ़ावा दें।

लगभग 225 वर्ष पूर्व डा0 हैनीमैन ने होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति का आविष्कार तत्कालीन प्रचलित चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) के अवैज्ञानिक स्वरूप, तर्कसंगत न होने एवं उपचार का पीड़ादायक तरीका होने के कारणों को दूर करने के लिए होम्योपैथी का आविष्कार किया था। डा0 हैनीमैन ने ऐलोपैथी में एमडी की उपाधि प्राप्त की थी और उन्होनें यह महसूस किया था कि इस पद्धति से वह रोगियों का पूर्ण रूप से उपचार नहीं कर सकते हैं, इसलिये उन्होनें उपचार के बजाय चिकित्सा पुस्तकों का अनुवाद कर अपना जीवनयापन करना श्रेयस्‍कर समझा।

 

लगभग 200 से अधिक वर्ष की यात्रा में होम्योपैथी दुनिया के 100 से अधिक देशों में अपने गुणों एवं विशिष्टताओं के कारण लोकप्रियता प्राप्त कर रही है और विश्व की लगभग 20 प्रतिशत से अधिक आबादी होम्योपैथी से चिकित्सा कराने पर विश्वास कर रही है। होम्योपैथी को भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल किया गया है और भारत में होम्योपैथी दूसरे नम्बर पर अपनायी जाने वाली पद्धति है।

 

होम्योपैथी की बढ़ती हुई लोकप्रियता से घबराकर कुछ ताकतें होम्योपैथी की वैज्ञानिकता पर प्रश्नचिन्ह्न लगाकर उसे मात्र खुशफहमी वाली पद्धति या प्लैसिबो प्रभाववाली पद्धति साबित करने पर तुले हुये हैं, परन्तु अनेक वैज्ञानिक शोधों, अनुसंधानों, प्रयोगों, अनुभवों तथा कार्यकारिता के कारण होम्योपैथी सारी बाधाओं को पार करते हुये कुंदन की तरह निखर कर सामने आ रही है और जनस्वास्थ्य का विकल्प बनने की ओर अग्रसर है।

80 प्रतिशत स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में सक्षम

होम्योपैथी अपने गुणों एवं विशिष्टताओं एवं स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के गुणों के कारण अन्य चिकित्सा पद्धतियों से प्रतिस्पर्धा में आगे निकल रही है परन्तु लगभग 80 प्रतिशत स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में सक्षम होम्योपैथी आज संक्रमण की विचित्र स्थिति से गुजर रही है। डा0 हैनीमैन ने कहा था कि होम्योपैथी पूर्ण चिकित्सा पद्धति है और एलोपैथी पूर्ण चिकित्सा पद्धति नहीं है, इसलिये उन्होने होम्योपैथी का आविष्कार किया था। लगभग 200 वर्ष से अधिक की यात्रा के बाद अब कुछ लोगों को यह लगने लगा है कि जो डा0 हैनीमैन ने कहा था वह पूरी तरह सही नहीं है। कुछ चिकित्सक एवं छात्र इमरजेन्सी मेडिसिन एवं हल्के-फुल्के रोगों के इलाज के लिये एलोपैथिक दवाइयों के चिकित्सा कार्य में उपयोग की छूट की मांग कर रहे हैं। इस मांग को अधिक हवा नेशनल मेडिकल कमीशन बिल ने दी है जिसमें व्रिजकोर्स के प्राविधान की बात कही गयी है। इसके पक्ष में धरना, प्रदर्शन एवं ज्ञापनों का दौर जारी है। इसी मध्य इण्डियन मेडिकल ऐसोसिशन के एक पदाधिकारी का कहना है कि अब यह तय हो जाना चाहिये कि होम्योपैथिक दवाइयाँ सर्दी, जुकाम, बुखार, दस्त और खाँसी जैसे सामान्य रोगों के उपचार भी कारगर नहीं हैं जो होम्योपैथी के गम्भीर रोगों के उपचार दावे के खारिज करती है। जहाँ कुछ लोग ऐलोपैथिक दवाइयों के प्रयोग की छूट के पक्षधर हैं वहीं पर ज्यादातर होम्योपैथिक चिकित्सकों का मानना है कि इस दोहरी व्यवस्था से होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की लोकप्रियता पर कुप्रभाव पड़ेगा और उसमें लोगों के विश्वास में कमी आयेगीतथा ऐलोपैथी पद्धति का प्रभाव बढ़ेगा जबकि होम्योपैथी जैसी सस्ती, सरल, सुलभ एवं दुष्परिणाम रहित चिकित्सा पद्धति से देश की जनता को स्वास्थ्य लाभ की सुविधा प्रदान की जा सकती है।

स्थितियों पर चिन्तन और मनन आवश्यक

आखिर 200 से अधिक वर्षों के बाद ऐलोपैथी की छूट का जिन्न बोतल से बाहर क्यों निकला? आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? कौन सी स्थितियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाई जा रही डा0 हैनीमैन की जयन्ती के अवसर पर इन सब स्थितियों पर चिन्तन और मनन आवश्यक है क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि इन सब स्थितियों के कारण होम्योपैथी की प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाये। यहां पर यह भी सोचने वाली बात यह है कि छात्रों में होम्योपैथी के प्रति घट रहे विश्वास को पुनः पैदा करना होगा उन्हें गुणात्मक शिक्षा देनी होगी। उन्हें प्रयोग कर यह दिखाना होगा कि होम्योपैथी पूरी तरहरोगों के उपचार में कारगर है जो छोटे-मोटे रोगों से लेकर गम्भीर से गम्भीर रोगों के उपचार में पूरी तरह कारगर है और सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली एकमात्र पद्धति है, दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली पद्धति के विकास के लिए सरकार का रवैया उपेक्षापूर्ण है। सरकार होम्योपैथी चिकित्सा, शिक्षा, शोध, विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए ध्यान नहीं दे रही है, यहां तक कि बजट में भी होम्योपैथी को पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। होम्योपैथी में दरोजगार के अवसरों की कमी के कारण युवा चिकित्सक दूसरे रास्तों पर भटकने लगता है, इसलिये आवश्यक है कि होम्योपैथी में अरोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित किये जाये तथा साथ ही साथ चिकित्साकों को क्लीनिक/चिकित्सालय स्थापित करने के लिए आसान शर्तों पर अनुदान की व्यवस्था की जाये।

सरकार को दूर करनी होंगी भ्रांतियां

अभी आम जनता में होम्योपैथी पद्धति के सम्बन्ध में अनेक भ्रंतियों व्याप्त हैं      इसलिये सरकार को चाहिये कि‍ होम्योपैथी के गुणों एवं विशिष्टताओं का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये जिससे उसके पक्ष में वातावरण सृजित किया जाये। जनता को यह बताना आवश्यक है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के महंगे इलाज, औषधियों के दुष्प्रभाव के जाल से होम्योपैथी ही उन्हें निकाल सकती है। होम्योपैथिक पद्धति के सरकारी चिकित्सकों/शिक्षकों को ऐलोपैथी के बराबर वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाएँ दीजिये जिससें होम्योपैथिक चिकित्सकों में हीनता का भाव समाप्त हो सके। होम्योपैथी में शोध को बढ़ावा दिया जाना समय की आवश्यकता है तथा शोध को प्रयोगशालाओं से निकालकर चिकित्सकों के मध्य पहुँचाया जाये जिससे इसका सीधा लाभ जनता को मिल सके।

 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में होम्योपैथी को पूरी सहभागिता दिया जाना आवश्यक है। होम्योपैथी में कार्यरत संगठनों को भी आपसी विवाद के बजाय होम्योपैथी के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए आगे आना चाहिए। होम्योपैथी से सम्बन्धितराष्ट्रीय एवंअन्र्तराष्ट्रीय मुद्दोंपरभी एकमत होकर विचार विमर्श करना चाहिए।

 

आइये विश्व होम्योपैथिक दिवस के अवसर पर डा0 हैनीमैन के सम्पूर्ण विश्व को रोगमुक्त बनाने के सपने को साकार करने का संकल्प लें तथा यह शपथ लें कि हम कोई ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो होम्योपैथी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाये। भारत जैसे देश में होम्योपैथी जैसी सरल, सस्ती, सुलभ और दुष्परिणाम रहित चिकित्सा पद्धति के माध्यम से ही स्वस्थ राष्ट्र एवं सश्क्तराष्ट् का संकल्प पूरा हो सकता है ।