2025 तक भारत से टीबी उन्मूलन में सहयोग के लिए सभी से आह्वान
लखनऊ। उत्तर प्रदेश स्टेट टास्कफोर्स फॉर टीबी कंट्रोल के चेयरमैन व केजीएमयू के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के हेड डॉ सूर्यकांत ने कहा है कि भारत सरकार ने टीबी यानी क्षयरोग को वर्ष 2025 तक बाहर करने के लिए व्यापक रणनीति तैयार की है। इसके तहत छिपे हुए मरीजों को ढूंढ़ने के साथ ही बीच में दवा छोड़ने से ड्रग रेसिस्ट हो चुके मरीजों को फिर से इलाज देकर उन्हें स्वस्थ बनाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्यक्रम चल रहा है।
डॉ सूर्यकांत आज सेफई स्थित उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज में टीबी की नयी दवा बिडाक्विलिन को लॉन्च करते हुए उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। दवा की लॉन्चिंग उन्होंने टीबी से ग्रस्त एक महिला को दवा खिलाकर की। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ राजकुमार थे। इस मौके पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एके अग्रवाल, यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के हेड डॉ आदेश कुमार भी उपस्थित थे। डॉ सूर्यकांत ने कहा कि उत्तर प्रदेश के 12 मेडिकल कॉलेजों में जहां एमडीआर टीबी के इलाज की सुविधा है, में लखनऊ, आगरा, बीएचयू, प्रयागराज, मेरठ, अलीगढ़, झांसी, गोरखपुर और आज सैफई को मिलाकर अब तक नौ मेडिकल कॉलेज में यह नयी दवा बिडाक्विलिन लॉन्च हो चुकी है। अब कानपुर, कन्नौज और अम्बेडकरनगर में इस दवा की लॉन्चिंग शेष रह गयी है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में टीबी के बैक्टीरिया का बढ़ता हुआ रेजिस्टेंस है, जिसके कारण मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी तथा एक्सपेंसिव टीबी अर्थात एमडीआर टीबी एवं एक्स डी आर टीबी जैसी समस्याएं सामने आ रही है इन सब से निजात पाने के लिए यह बिडाक्विलिन नाम की नई दवा विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा लाई गई है यह दवा मल्टी ड्रग रिसर्च टीबी तथा एक्स्ट्रा टीबी के रोगियों के लिए रामबाण साबित हो सकती है। ज्ञात रहे कि इस दवा की खोज वर्ष 2012 में की गई थी तथा विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा परीक्षण के पश्चात 2015 में भारत वर्ष में लाई गई। वर्ष 2016-17 में इसके और परीक्षण भारतवर्ष में हुए और इस तरह इसको टीबी के कंट्रोल प्रोग्राम में शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि टीबी के समूल उन्मूलन में हर व्यक्ति की भागीदारी बहुत जरूरी है क्योंकि इस संक्रामक रोग के समूल नाश के लिए इसके खिलाफ लड़ाई सिर्फ कुछ लोगों के लड़ने से जीत हासिल नहीं होगी।
विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेते डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी भारत की बहुत बड़ी स्वास्थ्य समस्या है वर्तमान में 6000 लोग प्रतिदिन टीबी से ग्रसित हो जाते हैं और हर 1:30 मिनट में टीबी के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु हमारे देश में हो जाती है।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी को भारत में वैदिक काल में ऋग्वेद के जमाने से जाना जाता है। ऋग्वेद में बताया गया है कि क्षयरोग से ग्रस्त मरीज को ताप रहता है, कमजोर रहता है, कृषकाय हो जाता है, तथा इसके उपचार के लिए ऐसे रोगी को शुद्ध वायु मिले, पोषण मिले, अच्छी सेवा-सुश्रुषा मिले। उन्होंने बताया कि टीबी का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव 24 मार्च 1882 को था, जब जर्मनी के डॉक्टर रॉबर्ट कोच ने टीबी के बैक्टीरिया की खोज की। इसीलिए प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है टीबी के इतिहास में दूसरा महत्वपूर्ण पड़ाव 1944 माना जाता है जब टीबी की पहली दवा स्टेप्टोमाइसिन का आविष्कार हुआ।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि टीबी के इतिहास में तीसरा पड़ाव वर्ष 1993 माना जाता है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीबी को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित कर दिया इसी वर्ष भारत ने रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरक्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम प्रारंभ किया इसके पश्चात विश्व में एक बड़ा पड़ाव 13 मार्च 2018 का आता है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एंड टीबी बाय 2025 घोषित किया जिसके अनुसार भारत में 2025 तक टीबी को समाप्त करना है।
डॉ सूर्यकांत ने बताया कि वर्तमान में टीबी समाप्ति के लिए भारत सरकार ने कुछ प्रमुख योजनाएं शुरू की हैं जिसमें से टीबी रोगियों के लिए निशुल्क जांच, निशुल्क उपचार तथा 500 रुपये प्रति माह का पोषण भत्ता शामिल है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने एक टीबी मरीज के नोटिफिकेशन तथा उसके ठीक होने तक प्रति टीबी के मरीज के हिसाब से एक प्राइवेट डॉक्टर को 1000 का मानदेय भी शामिल है। इसी क्रम में 2012 के टीबी नोटिफिकेशन को और मजबूत करते हुए नया नियम लागू किया गया है जिसके अनुसार तीन तरह के नोटिफिकेशन टीबी के लिए जरूरी हैं। पहला जांच के समय, उपचार प्रारंभ करते समय तथा मेडिकल स्टोर द्वारा टीबी का नोटिफिकेशन।
उन्होंने कहा कि अगर कोई टीबी का नोटिफिकेशन नहीं करेगा तो उसको 2 वर्ष की सजा भी हो सकती है, इसका उद्देश्य चिकित्सकों को डराना नहीं बल्कि टीबी के भारत में एक तिहाई रोगियों, जिनका कोई अता-पता नहीं है, उनको रिकॉर्ड में लाना है। एक तिहाई रोगी अर्थात 1100000 टीबी के मरीज जिनका कोई अता-पता नहीं है, और हो सकता है कि वह संक्रमित अवस्था में ही चल रहे हों। उनके कारण टीबी अनियंत्रित हो सकती है क्योंकि एक टीबी के व्यक्ति का अगर उचित उपचार न किया जाए तो वह अपने संक्रमण से एक साल में टीबी के 15 नए रोगी पैदा कर देता है। इसी को ध्यान में रखते हुए टीबी नोटिफिकेशन जारी किया गया है।