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निजी क्षेत्र में टीबी का इलाज कराने वालों पर भी स्वास्थ्य विभाग की नजर

लखनऊ। क्षयरोग यानी टीबी से ग्रस्त रोगियों में से करीब 10 फीसदी मरीज इसका पूरा इलाज कराने से पहले ही छोड़ देते हैं, यह स्थिति उस मरीज के साथ ही दूसरे स्वस्थ लोगों के लिए भी खतरनाक है। इसलिए ऐसे मरीजों को दवा का पूरा कोर्स कराने के लिए हर संभव प्रयास किये जाते हैं। इसी के तहत अब सरकार निजी चिकित्सकों के पास टीबी का इलाज कराने वाले मरीजों पर भी नजर रख रही है।
यह जानकारी आज मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ मेजर जीएस बाजपेई और जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ सुशील चतुर्वेदी ने दी। ज्ञात हो दुनिया भर से टीबी के खात्मे के लिए हर वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर पत्रकारों को जानकारी देते हुए डॉ बाजपेई और डॉ चतुर्वेदी ने बताया कि दरअसल टीबी का जड़ से खात्मा करने के लिए पूरा कोर्स किया जाना जरूरी होता है। उन्होंने बताया कि कुछ माह बाद जब मरीज को थोड़ा आराम होने लगता है तो वह यह सोचकर कि अब दवा खाना बेकार है, अपने मन से दवा खाना छोड़ देता है, लेकिन यह स्थिति बहुत खतरनाक होती है क्योंकि जहां वह खुद टीबी से ग्रस्त हो जाता है वहीं अपने आसपास रहने वालों को भी बीमारी फैलाने की वजह बन सकता है। जब तक टीबी जड़ से न जाये तब तक के हिसाब से कोर्स की अवधि निश्चित की गयी होती है, चूंकि दवा का सेवन बीच में ही रोक देने से टीबी के कीटाणु मर नहीं पाते हैं और रोग पुन: उभर आता है और यही नहीं इसके कीटाणु पहले से ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं क्योंकि जो भी दवाएं रोगी खा चुका होता है अब फिर से उन दवाओं को मरीज को देने पर उनका असर नहीं होता है। इसी स्थिति को एमडीआर यानी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट कहते हैं।
उन्होंने बताया कि जो मरीज सरकार द्वारा चलाये जाये डॉट्स सेंटरों से दवा खाते हैं उन मरीजों द्वारा दवा बीच में छोड़ देने की जानकारी उनके केंंद्र पर न आने से मिल ही जाती है ऐसे में उनके घर जाकर उन्हें दवा छोडऩे के नुकसान के बारे में बताकर कोर्स जारी रखने के लिए समझा लिया जाता है लेकिन जो मरीज टीबी का इलाज निजी चिकित्सक के यहां कराते हैं उनके लिए भी अब ऐसी व्यवस्था की गयी है कि उन पर भी लगातार नजर रखी जाती है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष 2016 में करीब टीबी के शुरुआती लक्षण वाले लगभग 60000 मरीजों के बलगम की जांच माइक्रोस्कोप से की गयी जिनमें करीब 7500 को टीबी रोग की पुष्टि हुई।
पत्रकार वार्ता में उपस्थित राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ आलोक रंजन ने बताया कि उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जहां हर जिले मेंं टीबी की जांच के लिए आयी आधुनिक मशीन सीबी नेट उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट मरीजों की जांच इसी मशीन से की जाती है। उन्होंने बताया कि टीबी के मरीज के ठीक होने के बाद दो साल तक उनका ऑब्जर्वेशन होता है। विश्व टीबी दिवस पर आज बाइक रैली निकाली गयी तथा 24 मार्च को भी कार्यक्रम रखा गया है।

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