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खर्राटे की शिकायत वाले मरीज को रहता है लकवा होने का खतरा

एम्‍स निदेशक की सलाह, ऐसी स्थिति में स्‍लीप एप्निया और लकवा दोनों का कराना चाहिये इलाज

 

लखनऊ। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान दिल्‍ली के निदेशक डॉ रनदीप गुलेरिया ने नींद पूरी करने पर जोर देते हुए कहा है कि नींद पूरी न होने का सीधा असर शरीर पर पड़ता है और ऑब्‍सट्रक्टिव स्‍लीप एप्निया बीमारी होने की स्थिति में मरीज को लकवा होने का भी डर रहता है।

डॉ गुलेरिया ने यह बात यहां साउथ ईस्‍ट एशियन एकेडमी ऑफ स्‍लीप मेडिसिन की चौ‍थी कॉन्‍फ्रेंस के अंतिम दिन अपने सम्‍बोधन में कही। इसकी जानकारी देते हुए सम्‍मेलन के आयोजन सचिव डॉ बीपी सिंह ने बताया कि डॉ गुलेरिया ने कहा कि ऑब्‍सट्रक्टिव स्‍लीप एप्निया के चलते अगर व्‍यक्ति लकवा का शिकार हो जाता है तो उसके बाद देखा गया है कि लोगों का ध्‍यान लकवा की तरफ चला जाता है, ऐसे में स्‍लीप एप्निया यानी जिस वजह से लकवा हुआ है, उस बीमारी का इलाज पीछे छूट जाता है और लकवा का इलाज चलता है, ऐसे में स्थिति और भी खराब हो जाती है, स्‍लीप एप्निया का इलाज रुक जाने के कारण मरीज के जीवन पर खतरा बढ़ जाता है।

 

डॉ बीपी सिंह ने बताया कि इस बीमारी की चिंताजनक स्थिति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की आबादी करीब 7 अरब है और इनमें से एक अरब लोग ऑब्‍सट्रक्टिव स्‍लीप एप्निया के शिकार हैं। स्‍लीप एप्निया में व्‍यक्ति को सोते समय खर्राटे आते हैं, और इसके चलते व्‍यक्ति को गहरी नींद नहीं आ पाती है। उन्‍होंने बताया कि खर्राटे आने की वजह सांस की नली में रुकावट होती है। इसके इलाज के रूप में उन्‍होंने बताया कि आने वाले समय में कुछ ऐसी दवायें आयेंगी जिनसे इसका इलाज हो सकेगा। अभी इसके इलाज के लिए मशीन उपलब्‍ध है, इस मशीन को व्‍यक्ति लगा कर सो जाता है, मशीन की मदद से व्‍यक्ति की सांस की नली को खोले रखा जाता है जिससे मरीज सोते समय बिना किसी अवरोध के सांस लेता रहता है, जिससे खर्राटे भी नहीं आते हैं। मशीन की कीमत पूछने पर उन्‍होंने बताया कि चालीस हजार से एक लाख रुपये तक की मशीन आती है।

 

उन्‍होंने बताया कि यह देखा गया है कि मोबाइल, टीवी आदि की स्‍क्रीन वाली चीजों का प्रयोग दो घंटे से ज्‍यादा न करें। इसके कारण के पीछे उन्‍होंने बताया कि सक्रीन से निकलने वाली ग्रीन लाइट व्‍यक्ति को जगाये रखने में असर डालता है।

 

डॉ बीपी सिंह ने बताया कि बेहतर यह होगा कि इस बीमारी को होने ही नहीं दिया जाये इसके लिए व्‍यक्ति को नियम पूर्वक जीवन जीना होगा। जिसमें बिगड़ी जीवन शैली को सही करते हुए सही समय पर खाना, सही समय पर सोना, आठ घंटे की नींद, व्‍यायाम आदि जरूर करना चाहिये। उन्‍होंने बताया कि शिफ्ट ड्यूटी ने लोगो की दिनचर्या को बदल कर रख दिया है। उन्‍होंने कहा कि सही समय पर सोना, सही समय पर जागने के साथ ही सही समय पर खाना प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए जरूरी है। शिफ्ट ड्यूटी के समय भी कोशिश करें कि खाना समय पर ही खायें, साथ ही खाने का समय रोजाना वही रखें, जिससे नियमितता बनी रहे। अगर रात्रि की ड्यूटी है तो दिन में आठ घंटे की नींद जरूर पूरी करनी चाहिये।

 

ऊन्‍होंने बताया कि कॉन्‍फ्रेंस में आयीं डॉ मीता सिंह ने बताया कि आठ घंटे नींद का महत्‍व यह है कि अगर खिलाड़ी को अपनी परफॉरमेंस देनी है तो उसे आठ घंटे की नींद लेना आवश्‍यक होता है। देखा गया है कि जिन खिलाड़ियों ने आठ घंटे की नींद पूरी कर ली थी और जिन खिलाड़ियों ने आठ घंटे की नींद पूरी नहीं की दोनों की परफॉरमेंस में काफी अंतर था। उन्‍होंने बताया कि डॉ श्रीकांत श्रीवास्‍तव ने बताया कि स्‍लीप एप्निया दवाओं के सफल ट्रायल के बाद उम्‍मीद बंधी है कि शीघ्र ही मरीज को ऑब्‍सटक्टिव स्‍लीप ऐप्निया का इलाज दवाओं से मिल सकेगा।

प्रो सूर्यकांत की पुस्‍तक ‘खर्राटे हैं खतरनाक’ का विमोचन

शनिवार को समारोह में केजीएमयू के पल्‍मोनरी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो सूर्यकांत की लिखी पुस्‍तक ‘खर्राटे हैं खतरनाक’ का विमोचन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान के निदेशक डॉ रनदीप गुलेरिया ने किया। हिन्‍दी में लिखी इस पुस्‍तक में ऑब्‍सट्रक्टिव स्‍लीप एपनिया बीमारी के बारे में आम आदमी को समझाने के लिए सरल शब्‍दों में लिखा गया है।

आपको बता दें यह वही डॉ सूर्यकांत हैं जिन्‍होंने पहली बार अपनी थीसिस हिन्‍दी भाषा में लिखी थी, पहली बार हिन्‍दी में थीसिस को स्‍वीकार करने में अड़चन आने पर विधानसभा में एक विशेष प्रस्‍ताव के जरिये हिन्‍दी में थीसिस स्‍वीकार करने की अनुमति दी गयी थी। इस तरह से प्रो सूर्यकांत का हिन्‍दी के प्रति प्रेम का सफर काफी पुराना है।