Friday , September 12 2025

फिजियोथेरेपिस्ट को अपने नाम से पूर्व डॉक्टर लिखने का अधिकार नहीं

-केंद्रीय स्वास्थ्य महानिदेशक ने आईएमए प्रेसीडेंट को लिखा पत्र

सेहत टाइम्स

लखनऊ। भारत सरकार की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ सुनीता शर्मा ने कहा है कि फिजियोथेरेपिस्टों को अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ उपसर्ग लगाने का अधिकार नहीं है। इस आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा उपाधि अधिनियम, 1916 के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। ऐसा उल्लंघन धारा 6 और 6ए के उल्लंघन के लिए अधिनियम की धारा 7 के तहत कार्रवाई को आकर्षित करता है। अपनी इस बात के समर्थन में उन्होंने न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों और आचार समिति के निर्णय का हवाला दिया है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ दिनेश भानुशाली को 9 सितम्बर, 2025 को लिखे पत्र में महानिदेशक ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है। पत्र में कहा गया है कि निदेशालय को भारत में फिजियोथेरेपिस्टों द्वारा “डॉ.” उपसर्ग और “पीटी” प्रत्यय के उपयोग के संबंध में भारतीय भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास संघ (आईएपीएमआर) सहित विभिन्न संगठनों से कई अभ्यावेदन और कड़ी आपत्तियां प्राप्त हुई हैं। आईएपीएमआर का कहना है कि यह मुद्दा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय संबद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग (एनसीएएचपी) द्वारा 23.04.2025 को प्रकाशित ‘फिजियोथेरेपी अनुमोदित पाठ्यक्रम 2025 के लिए योग्यता आधारित पाठ्यक्रम’ से उत्पन्न हुआ है। इस पर तर्क देते हुए कहा गया है कि फिजियोथेरेपिस्ट चिकित्सा चिकित्सक के रूप में प्रशिक्षित नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें “डॉ.” उपसर्ग का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह रोगियों और आम जनता को गुमराह करता है, जिससे संभावित रूप से धोखाधड़ी को बढ़ावा मिलता है।

यह भी कहा गया है कि फिजियोथेरेपिस्टों को प्राथमिक देखभाल या अभ्यास की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और उन्हें केवल रेफर किए गए रोगियों का ही इलाज करना चाहिए, क्योंकि उन्हें चिकित्सा स्थितियों का निदान करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, ऐसे में कुछ अनुचित फिजियोथेरेपी हस्तक्षेप से मरीज की स्थिति बिगड़ सकती हैं।

पत्र में यह भी कहा गया है कि डॉ उपसर्ग का प्रयोग देश के विभिन्न न्यायालयों और चिकित्सा परिषदों द्वारा जारी कानूनी घोषणाओं और सलाहकार आदेशों के विपरीत है। इनमें पटना उच्च न्यायालय द्वारा 2023 में, बेंगलुरु न्यायालय का 2020 में दिया गया आदेश और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा 2022 में दिये गये निर्णय में फिजियोथेरेपिस्ट को डॉ उपसर्ग लिखने से रोका गया था। फिजियोथेरेपिस्ट को चिकित्सक की देखरेख में काम करने आदेश दिया गया था।

पत्र में यह भी कहा गया है कि परिषद की आचार समिति (पैरामेडिकल और फिजियोथेरेपी केंद्रीय परिषद विधेयक, 2007) ने पहले निर्णय लिया था कि “डॉक्टर” (डॉ.) उपाधि का प्रयोग केवल आधुनिक चिकित्सा, आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी चिकित्सा के पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा ही किया जा सकता है। नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ सहित किसी अन्य श्रेणी के चिकित्सा पेशेवरों को इस उपाधि का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।

पत्र में कहा गया है कि आम सभा ने एक कानूनी राय भी प्राप्त की थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा बिना किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता के “डॉक्टर” शीर्षक का उपयोग करना भारतीय चिकित्सा उपाधि अधिनियम, 1916 के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। ऐसा उल्लंघन धारा 6 और 6ए के उल्लंघन के लिए अधिनियम की धारा 7 के तहत कार्रवाई को आकर्षित करता है। यह कानूनी राय परिषद द्वारा 23.03.2004 को आयोजित अपनी बैठक में अपनाई गई थी। तदनुसार, समिति ने दोहराया कि फिजियोथेरेपी में योग्यता वाले व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में “डॉ.” उपसर्ग का उपयोग करने के हकदार नहीं हैं।

महानिदेशक ने निर्देश दिया है कि फिजियोथेरेपी के लिए योग्यता आधारित पाठ्यक्रम-अनुमोदित पाठ्यक्रम 2025 में फिजियोथेरेपिस्ट के लिए “डॉ.” उपसर्ग का उपयोग तुरंत हटा दिया जाए। मरीजों या जनता को अस्पष्टता पैदा किए बिना, फिजियोथेरेपी के स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए अधिक उपयुक्त और सम्मानजनक शीर्षक पर विचार किया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.