-डॉ एके त्रिपाठी की हिन्दी में लिखी पुस्तक ‘क्लीनिकल मेडिसिन’ का विमोचन किया राज्यपाल ने
सेहत टाइम्स
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित अटल बिहारी आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के 4 सितम्बर को आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह के ऐतिहासिक मौके पर कुलाधिपति राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य मंत्रालय के मुखिया उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के साथ हिन्दी में लिखी पुस्तक ‘क्लीनिकल मेडिसिन’ का विमोचन किया। मेडिकल छात्रों विशेषकर हिन्दी माध्यम से शिक्षा लेने वालों के लिए अत्यन्त उपयोगी इस पुस्तक के लेखक डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक, संजय गांधी पीजीआई लखनऊ के कार्यवाहक पूर्व निदेशक, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पूर्व डीन, पूर्व विभागाध्यक्ष, वरिष्ठ हेमेटोलॉजिस्ट तथा वर्तमान में हिन्द मेडिकल कॉलेज के संकाय सदस्य प्रो अनिल कुमार त्रिपाठी (एके त्रिपाठी) हैं। क्लीनिकल मेडिसिन यानी नैदानिक चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर हिन्दी भाषा में लिखी यह प्रथम पुस्तक बतायी जा रही है। लगभग दो वर्षों की मेहनत के बाद यह पुस्तक तैयार हुई है। डॉ त्रिपाठी ने राज्यपाल और उप मुख्यमंत्री को पुस्तक लिखने का उद्देश्य बताया। राज्यपाल और उपमुख्यमंत्री ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि यह अच्छा प्रयास है।
इस बारे में ‘सेहत टाइम्स’ से बात करते हुए डॉ त्रिपाठी ने बताया कि एमबीबीएस के कोर्स को ध्यान में रखते हुए पुस्तक की विषय वस्तु को चुना गया है। उन्होंने कहा कि साथ ही ऐसे शब्द जो हिन्दी में बहुत क्लिष्ट हैं, उनके प्रयोग से बचा गया है। डॉ त्रिपाठी ने बताया कि आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग होने वाले शब्दों के चयन को प्राथमिकता दी गयी है भले ही वे शब्द अंग्रेजी के हों, जैसे लिवर समझना आसान है, यकृत नहीं, तो लिवर शब्द का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि हिन्दी में लिखने का अर्थ अंग्रेजी का विरोध नहीं है, कोई भी भाषा छोटी नहीं होती है, व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी मातृ भाषा होती है। डॉ त्रिपाठी ने कहा कि विदेशों में भी वहां की स्थानीय भाषा को महत्व ज्यादा इसीलिए दिया जाता है।
बीमारी पहचानना सीखने की पहली और महत्वपूर्ण सीढ़ी है नैदानिक चिकित्सा ज्ञान
डॉ त्रिपाठी ने बताया कि चिकित्सक के लिए मरीज की बीमारी को पहचानना सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसी के हिसाब से आगे के उपचार की दिशा तय होती है, मेरा यह अनुभव भी है कि इस कला को अगर मातृ भाषा में सिखाया जाता है तो विद्यार्थियों को आसानी से और अच्छे तरीके से समझ में आता है। छात्रों को जो पढ़ाया जा रहा है, और पढ़ायी जा रही उस बात को भविष्य में उन्हें व्यावहारिकता में उतारना है, क्योंकि आगे चलकर मरीजों को उन्हीं की भाषा में समझाना और उनकी बात को समझना है। ऐसे में विद्यार्थी को अपनी इस स्किल को भी डेवलप करना है जो कि एक कला है, ऐसी परिस्थितियों में उस जगह विशेष में चलने वाली भाषा का प्रयोग एक बड़ी भूमिका अदा करता है, इसीलिए हिन्दी भाषी क्षेत्रों के रहने वाले विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
उन्होंने कहा कि हमारी हिन्दी, संस्कृत भाषाएं किसी से कम नहीं हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश साजिश के तहत आजादी के बाद भी हमें हमारी मातृ भाषा से दूर रखने की कोशिश की गयी, यही नहीं अगर अंग्रेजी बोलने वाला व्यक्ति के साथ हिन्दी बोलने वाला बैठा है तो अंग्रेजी बोलने वाले को देखने की नजर अलग होती है, हिन्दी बोलने वाले को देखने की नजर अलग हो जाती है।
डॉ त्रिपाठी ने कहा पुस्तक लिखने की एक वजह यह भी रही कि मातृ भाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रसार किया जाये, और लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया जाये दूसरी बात यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि हिन्दी को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में तो अंग्रेजी की किताबों का अनुवाद हिन्दी में कराया जा रहा है, लेकिन मैंने जो यह पुस्तक लिखी है यह मूल रूप से ही हिन्दी में लिखी है। पुस्तक विमोचन के मौके पर अटल बिहारी आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो संजीव मिश्र सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।



