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सफल उपचार के दावे के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य जरूरी और साक्ष्य के लिए रोगियों का डॉक्यूमेंटेंशन जरूरी

-स्त्री रोगों के होम्योपैथिक उपचार पर आयोजित हाईब्रिड सीएमई में डॉ गिरीश गुप्ता ने प्रस्तुत किये कई रोगों के उपचारित मॉडल केस

-स्त्री रोगों के होम्योपैथिक उपचार पर आयोजित हाईब्रिड सीएमई में चिकित्सकों से डॉक्यूमेंटेंशन के रखरखाव की अपील 

सेहत टाइम्स

लखनऊ। विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोगों का कारण उनकी मन:स्थिति में होता है, ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि उस रोग का स्थायी उपचार करने के लिए रोग के कारण को दूर किया जाये, होम्योपैथी का सिद्धांत भी यही कहता है कि उपचार के लिए होलिस्टिक अप्रोच यानी समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। रोगी की पसंद-नापसंद, उसके जीवन में घटीं ऐसी घटनाएं जिन्होंने उसकी मन:स्थिति पर प्रभाव डाला हो, उसे किन चीजों से डर लगता है, रोगी का स्वभाव कैसा है, जैसी अनेक छोटी-बड़ी बातों को पूछकर केस की हिस्ट्री तैयार करने के बाद ही दवा का चुनाव करना चाहिये।

ये विचार शनिवार 3 मई को नोएडा होम्योपैथिक डॉक्टर्स सोसाइटी (एनएचडीएस) और श्वाबे इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में ‘मैनेजमेंट ऑफ गाइनीकोलॉजिकल डिस्ऑर्डर्स विद होम्योपैथी’ Management of Gynecological Disorders with Homeopathy विषय पर आयोजित हाईब्रिड सतत् चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में मुख्य वक्ता लखनऊ के गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक चीफ कन्सल्टेंट वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने व्यक्त किये। नोएडा स्थित डॉ विलमार श्वाबे इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के कार्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में भौतिक और ऑनलाइन माध्यम से चिकित्सकों के भागीदारी की।

डॉ गिरीश गुप्ता ने कहा कि ऐसे-ऐसे रोग जिनका इलाज सिर्फ ऑपरेशन ही बताया जाता है उन्हें भी होम्योपैथिक दवाओं से ठीक किया जा सकता है। अपने प्रेजेन्टेशन में स्त्रियों में होने वाले यूटराइन फायब्रायड, ओवेरियन सिस्ट, पीसीओडी और ब्रेस्ट लीजन के कुछ मॉडल केसेज को प्रस्तुत करते हुए बताया कि इन रोगों के कारणों के पीछे किन-किन प्रकार की मन:स्थितियां रहीं, किन प्रकार के सपने आते थे, किन चीजों से डर लगता था, किन चीजों का भ्रम रहता था, इच्छा-आकांक्षा जो पूरी न हुई हों जैसी अनेक जानकारियों के साथ मरीज का स्वभाव, उसकी पसंद-नापसंद के बारे में जानकारी लेते हुए उनकी केस हिस्ट्री तैयार की गयी। उन्होंने बताया कि इसके बाद रिपर्टराइजेशन करते हुए देखा गया कि कौन सी एक मेडिसिन ऐसी है जो केस हिस्ट्री के अनुसार ज्यादा से ज्यादा लक्षणों में लाभ देती है, इस प्रकार दवा का चुनाव किया गया।

डॉ गिरीश ने बताया कि सभी मरीजों के इलाज से पहले और इलाज के बाद की अल्ट्रासाउंड व अन्य जांचों की रिपोर्ट से रोग मुक्त होने की स्थिति का आकलन किया गया।

 

ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्ता ने स्त्री रोगों के साक्ष्य आधारित होम्योपैथिक इलाज के बारे में एक किताब भी लिखी है जिसका नाम एवीडेंस बेस्‍ड रिसर्च ऑफ होम्‍योपैथी इन गाइनीकोलॉजी (Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology) है। इस पुस्तक में यूट्राइन फायब्रॉयड, ओवेरियन सिस्‍ट, पॉलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम, ब्रेस्‍ट लीजन्‍स, नेबोथियन सिस्‍ट, सर्वाइ‍कल पॉलिप जैसे स्‍त्री रोगों के मॉडल केसेज का विस्तृत वर्णन किया गया है। इन सभी केसेज पर रिसर्च पेपर्स विभिन्न प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित किये जा चुके हैं। डॉ गुप्ता ने भारत सरकार से उन्हें मिल चुके प्रोजेक्ट के बारे में भी जानकारी दी।

डॉ गुप्ता ने बताया कि डॉक्यूमेंटेशन का बहुत महत्व है, इसका लाभ स्टडी या शोध कार्यों के साथ ही अपने कार्य का साक्ष्य देने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि जब तक आप वैज्ञानिक साक्ष्य के साथ अपनी सफलता दुनिया को नहीं दिखाते हैं तब तक उसे लोग मान्यता नहीं देेते हैं, और जब आपको पास डॉक्यूमेंटेशन के रूप में साक्ष्य होंगे तब आप पर और होम्योपैथी पर उंगली उठाने की किसी की हिम्मत नहीं होगी। उन्होंने बताया कि सिर्फ स्त्री रोग ही नहीं अन्य कई प्रकार के रोगों पर उनके सफल शोध जिन्हें राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में जगह मिली है, उसके पीछे उनके द्वारा पिछले 30 वर्षों से किये जा रहे डॉक्यूमेंटेशन की अहम भूमिका है, इससे पहले वे स्वयं भी प्रत्येक केस का प्रॉपर डॉक्यूमेंटेशन नहीं करते थे।

अपने प्रेजेन्टेशन के दौरान डॉ गुप्ता ने महिलाओं को होने वाले जिन चार रोगों के मॉडल केसेज प्रस्तुत किये थे उन रोगों के 30 अप्रैल, 2025 यानी तीन दिन पूर्व तक के उपचारित रोगियों के आंकड़े प्रस्तुत किये। इनमें कुल रोगियों की संख्या, उनमें कितने रोगियों को लाभ हुआ, लाभ वाले रोगियों में भी कितनों को पूरा लाभ हुआ और कितनों को कम या ज्यादा लाभ हुआ इसकी संख्या भी बतायी। उन्होंने बताया कि यूटराइन फायब्रायड के 1418 केसेज में 705 (49.72 प्रतिशत) लोगों को लाभ हुआ लाभ हुए लोगों में 274 (19.32 प्रतिशत) को पूरा लाभ मिला जबकि 431 (30.40 प्रतिशत) को थोड़ा लाभ हुआ। इसी प्रकार ओवेरियन सिस्ट में यूनिलेटरल ओवेरियन सिस्ट के कुल 1328 केसेज में से 1114 केसेज (83.89 प्रतिशत) में लाभ हुआ इनमें 841 (63.33 फीसदी) पूरी तरह ठीक हो गये जबकि 273 (20.56 प्रतिशत) को थोड़ा लाभ हुआ, जबकि बाइलेटरल ओवेरियन सिस्ट के कुल 136 केसेज में 94 (69.12 प्रतिशत) केसेज में लाभ हुआ, इनमें 39 (28.68 प्रतिशत) लोगों को पूर्ण लाभ हुआ जबकि 55 (40.44 प्रतिशत) लोगों को थोड़ा लाभ हुआ।

इसके अतिरिक्त पीसीओडी के कुल 583 केसेज आये जिनमें 357 (61.23 प्रतिशत) लोगों में पॉजिटिव रिस्पॉन्स आया। 583 में से 230 यानी 39.45 प्रतिशत लोगों को पूर्ण लाभ मिला जबकि 127 मरीजों 21.78 प्रतिशत की स्थिति में सुधार हुआ, तथा ब्रेस्ट लीजन के रोगियों में ब्रेस्ट लीजन यूनीलेटरल के कुल 325 केसेज में 158 (48.62 प्रतिशत) को लाभ हुआ इनमें 44 (13.54 प्रतिशत) पूरी तरह से क्योर हो गये जबकि 114 (35.08 प्रतिशत) केसेज में लीजन में कमी आयी, जबकि ब्रेस्ट लीजन बाइलेटरल के कुल 248 केस आये इनमें 97 (39.11 प्रतिशत) मरीजों को लाभ हुआ इनमें से 19 (7.66 प्रतिशत) के पूरी तरह से लीजन समाप्त हो गये जबकि 78 (31.45 प्रतिशत) मरीजों को थोड़ा लाभ हुआ।

अपरान्ह तीन बजे से सायं पांच बजे तक चले दो घंटे चले कार्यक्रम में चिकित्सकों ने अनेक प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत की। कार्यक्रम के प्रारम्भ में आयोजक एनएचडीएस के अध्यक्ष डॉ एके त्यागी ने मुख्य वक्ता डॉ गिरीश गुप्ता का स्वागत करते हुए अपने विचार रखे, जबकि मॉडरेटर की कमान डॉ राहुल तिवारी ने सम्भाली, अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डॉ कविता लाबरा ने दिया। कार्यक्रम की एंकरिंग की जिम्मेदारी डॉ निधि शर्मा ने निभायी।

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