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संजय गांधी पीजीआई में फैकल्टी फोरम ने निदेशक के खिलाफ खोला मोर्चा, किये तीखे हमले

-फोरम की आम सभा की बैठक में लिये गये निर्णयों की जानकारी देने के लिए आयोजित की पत्रकार वार्ता

-नये निदेशक के चयन की प्रक्रिया में तेजी लाने की मांग, 7 फरवरी को समाप्त हो रहा है कार्यकाल

सेहत टाइम्स

लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई की फैकल्टी फोरम ने वर्तमान निदेशक प्रो आरके धीमन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, 16 जनवरी 2024 को हुई आम सभा की बैठक में प्रो धीमन के ऊपर अनेक गंभीर आरोप लगाते हुए मांग की गयी है कि प्रो धीमन का पांच वर्ष का कार्यकाल आगामी 7 फरवरी को समाप्त हो रहा है, इस दिन उन्हें कार्यमुक्त कर दिया जाये तथा नये निदेशक की नियुक्ति की जाये, फोरम का यह भी कहना है कि बेहतर होगा कि संस्थान के ही किसी वरिष्ठ संकाय सदस्य को नये निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाये क्योंकि उसे संस्थान की दिक्कतों और जरूरतों की जानकारी बाहर से आने वाले किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा होगी।

फैकल्टी फोरम के प्रेसीडेंट प्रो अमिताभ आर्या और सेक्रेटरी प्रो पुनीत गोयल ने यह जानकारी आज 21 जनवरी को आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने फैकल्टी फोरम की बैठक में लिये गये निर्णयों की जानकारी देते हुए बताया कि बैठक में अनेक मसलों पर चर्चा की गई और निर्णय लिया गया कि हम अपनी बात मीडिया के सामने रखें। उन्होंने कहा कि एक-एक करके अनेक फैकल्टी संस्थान छोड़कर जा रहे हैं, आखिर क्यों, पिछले चार सालों की बात करें तो करीब 24 फैकल्टी संस्थान छोड़कर जा चुके हैं। इसके बावजूद निदेशक की कार्यशैली में सुधार नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्तमान निदेशक डॉ. आरके धीमन द्वारा बहुत अधिक प्रशासनिक उदासीनता और देरी की जाती है, बुनियादी प्रशासनिक और शैक्षणिक कर्तव्यों की अनदेखी की जाती है।

उन्होंने बताया कि फोरम का कहना है कि प्रोफेसर की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों की समीक्षा और उन्हें मुख्य सचिव द्वारा समय पर मंजूरी नहीं दी गयी। इसी प्रकार संकाय सदस्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करना और संकाय पदोन्नति के लिए समय पर साक्षात्कार आयोजित नहीं किया गया। संकाय सदस्यों को गैर-उत्पादक/गैर-नैदानिक कार्यों में लगाना, जिसके कारण रोगी की देखभाल, शिक्षण प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए बहुत कम समय मिलता था। चूंकि संस्थान से फैकल्टी का पलायन तेजी से हो रहा है, ऐसे में इस स्तर पर संकाय को बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वरिष्ठ संस्थापक संकाय सदस्य सेवानिवृत्त हो गए हैं, लखनऊ और उत्तर प्रदेश में आकर्षक वेतन संरचना वाले नए निजी/कॉर्पोरेट अस्पताल बढ़ रहे हैं, इसलिए संकाय सदस्यों से उनकी प्रतिक्रिया सुनना और उन्हें समय पर उनके वैध भत्ते और भत्ते स्वीकृत करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि उन्हें संस्थान में बरकरार रखा जा सके।

उन्होंने बताया कि संकाय सदस्य कई कारणों से संस्थान में अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिसमें पहला है शिक्षण प्रशिक्षण और नैदानिक देखभाल और अनुसंधान के लिए जुनून के साथ ही यहां का शानदार आवासीय परिसर, जो हरा-भरा और सुरक्षित है, जिसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है और काफी हद तक व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया गया है। ग्रीनलैंड में बहुत सारा कचरा फेंक दिया गया था, नए केंद्रों के निर्माण के लिए साइटों की खोदाई के कारण बहुत सारी मिट्टी फेंक दी गई थी, परिसर के अंदर चोरियाँ हो रही थीं।

फोरम का कहना है कि यह एक सामान्य प्रथा है कि कार्यकाल समाप्त होने से 3 महीने पहले, निदेशक की शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और उसे कोई भी नीतिगत निर्णय लेने की अनुमति नहीं होती है (वर्तमान निदेशक की स्थिति के बारे में निश्चित नहीं)।

धरना-प्रदर्शन करने वालों की सुन लेते हैं, जो शांति से रहे उसकी कोई सुनवाई नहीं

फोरम ने एक गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि डॉ. धीमन मजबूरी में काम करते हैं लेकिन व्यवस्थित रूप से नहीं। वह कर्मचारियों के उन संवर्गों की मांगों पर ध्यान देते हैं जो आंदोलन (धरना-प्रदर्शन) और कार्य बहिष्कार द्वारा उन पर दबाव डालते हैं। लेकिन संकाय सदस्य मरीजों के हित में अपना काम करते रहते हैं और अपने बकाये के लिए नारे नहीं लगाते हैं और डॉ. धीमन लगातार उनकी प्रतिक्रियाओं को नजरअंदाज करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संकाय सदस्य काफी हद तक निराश हैं।

हाल ही में संकाय विज्ञापन एचओडी से परामर्श किए बिना जारी किया गया था, इसमें बहुत सारी खामियां हैं जिन्हें नहीं लिखा गया है और यह स्थापित मानदंडों के खिलाफ है। डॉ. धीमन ने संस्थान में वीआईपी कल्चर को भी बढ़ावा दिया है, वे उन्हीं लोगों की बात सुनते हैं, जो उनके लिए मायने रखते हैं। हर कोई अपने व्यक्तिगत विकास और महत्वाकांक्षा का हकदार है लेकिन चीजों के बीच संतुलन होना चाहिए। वह संस्थान के लिए काम करने के बजाय अपने स्वार्थ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उन्हें अपने नाम पर टाइप 5 का एक और घर आवंटित हो गया है (टाइप 6 निदेशक के बंगले में रहने के बावजूद)। वह इस टाइप 5 मकान में नया निर्माण करा रहे हैं, जो संपदा विभाग के नियमों के खिलाफ है। एसजीपीजीआईएमएस के. नियमों के अनुसार, मकानों के स्वीकृत लेआउट से परे किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं है। ऐसा तब है जब कई वरिष्ठ प्रोफेसर टाइप 5 आवास का इंतजार कर रहे हैं और उन्होंने उन सभी को दरकिनार कर टाइप 5 आवास अपने नाम पर आवंटित करा लिया है।

ये हैं मांगें

इसलिए, इस संस्थान के संकायों का आग्रह है कि नये संस्थान निदेशक की चयन प्रक्रिया में तेजी लायें, डॉ. धीमन को उनके कार्यकाल के अंतिम दिन यानी 7 फरवरी 2025 को निदेशक पद से मुक्त किया जाए, क्योंकि वह अपने मूल संस्थान पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ से प्रतिनियुक्ति पर 5 साल के कार्यकाल के पद पर हैं। यदि नए निदेशक की चयन प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है तो स्थानीय स्तर पर वरिष्ठ प्रोफेसर को कार्यवाहक निदेशक नियुक्त करें जो नए निदेशक के आने तक देखभाल कर सकें।

इसके अतिरिक्त संस्थान और एसजीपीजीआई अस्पताल की नैदानिक सेवाओं के सर्वोत्तम हित में यह विवेकपूर्ण होगा कि बाहर से किसी व्यक्ति के बजाय पर्याप्त प्रशासनिक अनुभव वाले एक वरिष्ठतम प्रोफेसर को संस्थान के साथ उनके लंबे जुड़ाव के कारण अगले निदेशक के पद के लिए उचित विचार किया जाए। वह संस्थान की समस्याओं को बेहतर तरीके से समझेगा और बेहतरी के लिए तुरंत काम करना शुरू कर देगा, बाहर से लाये व्यक्ति को कामकाज और समस्याओं को समझने में समय लगेगा।

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