-हार्ट अटैक आये तो तुरंत डिस्पिरिन की 325 मिलीग्राम की गोली चबाकर खायें, डॉक्टर के पास जायें
-CSICON 2024 के तीसरे दिन हृदय की विभिन्न बीमारियों पर विशेषज्ञों ने दीं नयी-नयी जानकारियां
सेहत टाइम्स
लखनऊ। हमारे शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्राल होते हैं, एक बैड कोलेस्ट्राल (एलडीएल) और एक गुड कोलेस्ट्राल (एचडीएल)। हमारी जीवन शैली और खानपान ऐसा हो गया है कि बड़ी संख्या में लोग बढ़े हुए बैड कोलेस्ट्राल के शिकार हो रहे हैं। इसमें लापरवाही पर हार्ट अटैक का खतरा और उससे जान का खतरा पैदा हो जाता है। जो हृदय रोगी हैं, उनका एलडीएल 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम होना चाहिये व एचडीएल 40 मिलीग्राम से ऊपर होना चाहिये, उन्हें तुरंत डॉक्टर से मिलकर दवा लेनी चाहिये जबकि जो स्वस्थ व्यक्ति हैं या हृदय रोगी नहीं हैं उन्हें एलडीएल 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा 190 तक होने पर अपने खानपान व जीवन शैली में सुधार लाकर नियंत्रित करना चाहिये।
यह महत्वपूर्ण सलाह आज यहां गोमती नगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में चल रहे चार दिवसीय कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के वार्षिक सम्मेलन CSICON 2024 के तीसरे दिन हृदय रोग विशेषज्ञों ने दी। डॉ सुब्रतो मंडल व डॉ सुनील कुमार मोदी ने हाई कोलेस्ट्राल पर अपने व्याख्यान दिये। डॉ सुब्रतो मंडल ने बताया कि बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को लेकर लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। डॉ सुब्रतो ने कहा कि आधुनिक जीवन शैली व ख़ान-पान बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। हृदय रोगी में अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल हार्ट अटैक का प्रमुख कारण है, ऐसे लोगों को अपना बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम रखना चाहिये व गुड कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) 40 मिलीग्राम से ऊपर होना चाहिये। डॉ सुनील मोदी ने बताया कि अनियन्त्रित ब्लड कोलेस्ट्रॉल युवाओं में भी एक समस्या है, अगर किसी का बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) 190 मिलीग्राम से ज़्यादा है ,तो उसे दवाएं लेने की आवश्यकता है। डॉ मोदी ने बताया कि अब पीसीएस के 9 इन्हिबिटर के 6 महीने में एक इंजेक्शन से बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता है, पर स्वस्थ जीवनशैली कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने का सबसे अच्छा तरीका है।
अमेरिका के डॉ हैडली विल्सन ने एंजियोप्लास्टी की विभिन्न तकनीकों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि लेफ्ट मेन डिजीस में अब बाईपास के स्थान पर इमेजिंग के माध्यम से एंजियोप्लास्टी भी बहुत कारगर है। डॉ टिनी नायर व डॉ एच० के० चोपड़ा ने हाई ब्लड प्रेशर पर चर्चा की। डॉ टिनी नायर ने बताया कि अगर दो दवाओं का कॉम्बिनेशन इस्तेमाल किया जाता है तो हम ब्लड प्रेशर को ज़्यादा अच्छे से ठीक से नियंत्रित कर सकते हैं। हाइपरटेंशन साइलेंट किलर है, इसलिए इसे नियंत्रित करना बहुत ही आवश्यक है। डॉ चोपड़ा ने बताया कि नियमित व्यायाम व तनावमुक्त जीवन शैली से ब्लड प्रेशर को नियंत्रित किया जा सकता है।
पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारतीयों में ज्यादा जोखिम
डॉ प्रवीण चंद्र व डॉ नकुल सिन्हा ने दिल की धमनियों में थक्का जमने की विभिन्न वजहों पर चर्चा की। मेदान्ता अस्पताल दिल्ली के कार्डियोलॉजी विभाग के हेड डॉ प्रवीण चंद्रा ने बताया कि भारतीय पश्चिमी देशों के लोगों की अपेक्षा इस बीमारी के लिए ज्यादा रिस्क पर हैं, इसके लिए जीन के साथ-साथ आधुनिकता भरी लाइफ स्टाइल भी है, अगर हम रिस्क फैक्टर्स जैसे कि हाई बीपी, डायबिटीज, मोटापा आदि पर ध्यान देते हैं तो काफ़ी हद तक हृदय की इन बीमारियों से बच सकते हैं। डॉ नकुल सिन्हा ने बताया कि कई तरह के रिस्क फैक्टर स्कोर्स से भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक के बारे में काफी सटीकता से बताया जा सकता है।
हार्ट अटैक वैश्विक समस्या, इसे रोकने की जरूरत
डेनमार्क से आए डॉ नॉर्डेसगार्ड ने हार्ट अटैक के बढ़ते हुए मामलों पर चर्चा की। डॉ नॉर्डेसगार्ड ने बताया कि यह समस्या पूरे विश्व में है और हम सभी को जन-जागरूकता पैदा करके इस महामारी को रोकने की आवश्यकता है अन्यथा स्वास्थ्य सेवाओं को इसको सम्भालना कठिन हो जाएगा। फोर्टिस नई दिल्ली के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अशोक सेठ ने हार्ट फेलियर और हार्ट अटैक की नई तकनीकों पर चर्चा की। लंदन से आए डॉ रॉक्सी सीनियर ने हार्ट अटैक के उपचार पर चर्चा करते हुए बताया कि हार्ट अटैक के इलाज में समय की बहुत महत्ता है, अगर हार्ट अटैक का रोगी गोल्डन ऑवर्स (शुरू के तीन घण्टों) में अस्पताल पहुँच जाता है और उसकी एंजियोप्लास्टी हो जाती है तो हार्ट को नुकसान न के बराबर होता है। किसी भी व्यक्ति को हार्ट अटैक होने पर तुरंत डिस्पिरिन की 325 मिलीग्राम की गोली चबाकर खानी चाहिये व तुरंत अस्पताल जाना चाहिये।
नॉर्मल ईसीजी होने पर भी ब्लड टेस्ट से हार्ट अटैक की पुष्टि संभव
स्नातकोत्तर छात्रों ने अपनी नई शोधों पर पेपर प्रस्तुत किए। स्नातकोत्तर छात्र डॉ सत्यप्रकाश ने अपने शोध में बताया कि नॉर्मल ईसीजी होने पर भी विभिन्न ब्लड टेस्ट से यह बताया जा सकता है कि रोगी को हार्ट अटैक पड़ा है या नहीं। डॉ करन ने अपने शोध के माध्यम से बताया कि ईसीजी से हार्ट अटैक कभी कभार कुछ समय बाद पता चलता है क्योंकि इसमें बदलाव आने में कुछ मामलों में समय लग जाता है। ऐसे मामलों में लक्षणों को पहचानना बहुत आवश्यक है। विभिन्न संस्थानों से आए टेक्निशियन व नर्सेस ने हृदय रोगों से संबंधित विभिन्न कार्यशालाओं में प्रतिभाग किया। फार्मा इंडस्ट्री के स्टालों पर नये उत्पादों व दवाओं पर चर्चा की गयी। सम्मेलन के मुख्य आयोजक डॉ सत्येन्द्र तिवारी ने बताया कि आज सम्मेलन में कई नई तकनीकियों पर चर्चा की गयी। यूपी चैप्टर के सदस्यों डॉ एसके द्विवेदी, डॉ आदित्य कपूर, डॉ नवीन गर्ग, डॉ ऋषि सेठी, डॉ शरद चंद्रा, डॉ रूपाली खन्ना, डॉ भुवन तिवारी, डॉ अवधेश शर्मा व डॉ अंकित साहू ने सम्मेलन में आए हुए सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।