एलर्जी और अस्थमा की तीन दिवसीय 51 वीं वार्षिक अधिवेशन संपन्न
पद्माकर पाण्डेय
लखनऊ। दमा की वजह से फेफडे़ गल चुके हो या सीओपीडी की वजह से खराब हो गये हों, स्टेम सेल तकनीक से फेफड़ों को रीजनरेट (पुन:संर्चना) किया जा सकेगा। विदेशों में यह तकनीक बीते चार-पांच साल से आम हो चुकी है, हलांकि भारत में भी अब शुरू हो चुका है। इस तकनीक में मरीज के बोनमेरो से ही स्टेम सेल (मीसन कायमल) निकाल कर, सेंटी यूज से उसे कन्संट्रेट कर खराब हो चुके फेफड़े पर इंजेक्ट कर देते हैं। समय के साथ फेफड़ा प्राकृतिक रूप से निर्मित होने लगता है।
रविवार को यह जानकारी यह महत्वपूर्ण जानकारी लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय (केजीएमयू) के साइंटिफिक कन्वेन्शन सेंटर में चल रही ऐलर्जी और अस्थमा की 51वीं वार्षिक संगोष्ठी (51st ICCAICON) के तीसरे और अंतिम दिन दी गयी. आज की परिचर्चा अस्थमा पर केन्द्रित रही।
संगोष्ठी के आयोजक सचिव प्रोफ़ेसर (डॉ) सूर्य कांत ने बताया कि स्टेम-सेल थेरपी से अस्थमा/ दमा प्रबंधन के बारे में विशेषज्ञों ने नवीनतम वैज्ञानिक जानकारी दी।
एलर्जी एवं अस्थमा विषयक, तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय कांफ्रेंस 51 वीं ईकाइकॉन के अंतिम दिन स्टेम सेल इण्डिया रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष और स्टेम सेल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के फाउंडर उप-अध्यक्ष डॉ बीएस राजपूत ने अस्थमा के संदर्भ में, स्टेम सेल प्रत्यारोपण के बारे में विशेष जानकारी देते हुए बताया कि अगर अस्थमा या दमा का मरीज में डंटरस्टीशियल लंग्स डिजीज(आईएलडी) हो जाये तो, इलाज बहुत जटिल हो जाता है। इन मरीजों के इलाज में स्टेम सेल तकनीक कारगर इलाज है। पहले स्टेम सेल से फेफडे़ में खून का संचार बढ़ाया जाता है और रक्त संचार बढऩे से फेफड़े की सिकुडऩ कम होती है। इसके अलावा अस्थमा या दमा के इलाज में मरीज को जिन चीजों से एलर्जी होती है उस चीज से मरीज को बचाते हैं। इसके बाद मरीज को लाभ होता है। अधिवेशन में लखनऊ के डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, डॉ.वीपी सिंह, सिविल अस्पताल के डॉ.आशुतोष कुमार दुबे, पूर्व निदेशक बलरामपुर डॉ.टीपी सिंह, सेवानिवृत्त डॉ.डीपी मिश्र समेत सैकड़ों चेस्ट फिजीशियन मौजूद रहें।
बच्चे की नाल से निकला खून बहुत काम का
प्रो. सूर्यकांत ने बताया कि नवजात बच्चे की नाल (नाभि से जुड़ी कॉर्ड) काटने के दौरान निकलने वाला खून (स्टेम सेल कल्चर)को ही एकत्र किया जाता है, इसके स्टेम सेल कल्चर कहा जाता है, जिसे स्टेम सेल बैंक में सुरक्षित किया जा सकता है। जो कि उक्त बच्चे के अलावा किसी के भी इलाज में उपयोग में लाया जा सकता है। इसके अलावा बोनमेरो से निकलने वाले सेल हमेशा मरीज के काम आते हैं।
सेल से निश्चित होता है कि किन बीमारियों की गिरफ्त में रहेंगे
प्रो.सूर्यकांत ने बताया कि स्टेम सेल दो प्रकार के होते हैं, बी सेल और टी सेल । बी सेल एंटीबॉडी बनाते हैं, अगर बी सेल कमजोर हुये तो एंटीबॉडी कम बनेंगी और बच्चा या मरीज निमोनिया आदि बीमारियों की गिरफ्त में आसानी से आ जाते हैं। इसके अलावा टी रेगुलेटरी सेल को मेमोरी सेल कहते हैं, ये सेल क्रोनिक बीमारियों से बचाते हैं। टी रेगुलेटरी सेल मजबूत होने से शरीर में सूजन कम होती है और व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और दमा का दौरा क्षणिक आता है। अगर, टी रेगुलेटरी सेल कमजोर होंगे तो क्रोनिक बीमारियों से लड़ने में काफी दिक्कतें आती हैं।
अस्थमा रोगी प्राणायाम करें तो बहुत जल्दी ज्यादा आराम
प्रो.सूर्यकांत ने बताया कि सलाह के बावजूद केवल 30 प्रतिशत अस्थमा या दमा रोगी ही इन्हेलर लेते हैं, जो लेते भी हैं वो मजबूरी में बेमन लेते हैं, जिसकी वजह से अपेक्षित आराम नहीं मिलता है, और जीवन चलता रहता है। प्रो सूर्यकांत ने बताया कि अस्थमा रोगियों के फेफड़े कमजोर होंते हैं, मरीज लंबी सांस नहीं लेता है जिसकी वजह से मरीज के फेफड़े का एक तिहाई हिस्सा सुप्ता अवस्था में पड़ा रहता है। अगर ये मरीज प्राणायाम करें तो प्राणायाम में गहरी सांस लेने से सुप्त फेफड़ा भी सक्रिय हो जाता है और इन्हेलर की दवा पूरे फेफड़े में पहुंचेगी और अप्रत्याशित लाभ देखने को मिलेंगे।