-संजय गांधी पीजीआई के एंडोक्राइन सर्जरी विभाग में हो रही 25 नवम्बर को सीएमई
सेहत टाइम्स
लखनऊ। डायबिटिक फुट अल्सर (डीएफयू) एक खुला घाव या घाव है जो मधुमेह के लगभग 15% रोगियों में होता है और आमतौर पर पैर के निचले हिस्से में स्थित होता है। 25% मधुमेह रोगियों को अपने जीवनकाल में इस समस्या का सामना करना पड़ता है, जिनमें से 50% संक्रमित हो जाते हैं और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, जबकि 20% को अंग काटने की आवश्यकता होती है। डीएफयू के उपचार के लिए आवश्यक औसत समय 28 सप्ताह (सीमा 12-62 सप्ताह) है, साथ ही संपूर्ण डीएफयू थेरेपी कराने में एक मरीज की 5.7 वर्ष (68.8 महीने) की आमदनी लग जाती है।
संजय गांधी पीजीआई के एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के प्रो ज्ञान चंद ने यह जानकारी डायबिटिक फुट मैनेजमेंट पर एक दिवसीय सीएमई की पूर्व संध्या पर दी है। ज्ञात हो संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान का एंडोक्राइन सर्जरी विभाग 25 नवंबर को डायबिटिक फुट मैनेजमेंट पर एक दिवसीय सीएमई का आयोजन करने जा रहा है। यह सीएमई मेडिसिन, सर्जरी, ऑर्थोपेडिक सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, एंडोक्रिनोलॉजी और एंडोक्राइन सर्जरी सहित विभिन्न विशिष्टताओं के युवा डॉक्टरों को शिक्षित करेगी।
उनका कहना है कि भारत में वर्ष में होने वाले कुल अंग विच्छेदनों में 80 प्रतिशत अंग विच्छेदन की वजह डीएफयू होता है। डायबिटिक फुट के कारण प्रति वर्ष दस लाख से अधिक लोग अपना अंग खो रहे हैं, यानी हर 30 सेकंड में दुनिया में कहीं भी एक अंग खो रहा है। यह विच्छेदन 30-60 वर्ष की आयु में अधिक आम है। वे आम तौर पर परिवार में केवल कमाने वाले सदस्य होते हैं और विच्छेदन के कारण उनकी नौकरी छूट सकती है।
प्रो ज्ञान चंद का कहना है कि डीएफयू देखभाल के लिए भारत सबसे महंगा देश है, क्योंकि संपूर्ण डीएफयू थेरेपी के भुगतान के लिए एक मरीज की 5.7 वर्ष (68.8 महीने) की आमदनी लग जाती है। उन्होंनं कहा कि भारतीय मधुमेह रोगियों में, न्यूरोपैथिक अल्सर (एम्बुलेटरी देखभाल), संक्रमित न्यूरोपैथिक पैर (एम्बुलेटरी देखभाल), एडवांस्ड डायबिटिक फुट के बचाव, एडवांस्ड डायबिटिक फुट के अंग विच्छेदन, और विच्छेदन के बाद बचाव, और न्यूरोइस्केमिक पैर (बाईपास) की उपचार लागत क्रमशः 4666 रुपये, 13750 रुपये, 90000 रुपये, 80000 रुपये, 220837 रुपये और 163336 रुपये है। यह समाज के लिए एक बड़ी क्षति है।
वे बताते हैं कि शारीरिक रूप से ऐसे मरीज उचित व्यायाम करने में सक्षम नहीं होते हैं, लगभग 50% डीएफयू रोगी जिनका अंग एक बार कट जाता है, अगले 2 वर्षों के भीतर उनका दोबारा अंग काटना पड़ता है, इसलिए उनकी जल्दी मौत हो सकती है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में मधुमेह के कारण निचले अंग कटे हुए 50% लोग अंग-विच्छेदन के बाद तीन साल के भीतर मर जाते हैं। शिक्षा, जागरूकता और शीघ्र उपचार से हम समाज को होने वाले बड़े नुकसान से बच सकते हैं।
मधुमेह रोगियों में पैर की उपेक्षा की जाती है और चिकित्सक भी इस समस्या के प्रबंधन में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, इसलिए हम इस समस्या की बेहतर देखभाल के लिए युवा डॉक्टरों को प्रशिक्षित करना चाहते हैं और मधुमेह रोगियों के बीच जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के वक्ता निम्नलिखित विषयों पर विचार-विमर्श करेंगे
- चोट का तंत्र, मधुमेह के पैर के घाव का पैथो-फिजियोलॉजी, जीर्णता के कारण
- पेरी-ऑपरेटिव मधुमेह प्रबंधन
- डीएफयू के प्रबंधन में सर्जिकल एनाटॉमी की भूमिका और इसकी व्याख्या
- संवहनी रोग सहित मधुमेह के पैर के घाव का आकलन, मधुमेह के पैर के घाव का स्थानीय उपचार, नए अणुओं का अनुप्रयोग और उनका लाभकारी उपयोग स्थिरीकरण और उतारना
- मधुमेह के पैर के घाव और मधुमेह के पैर के संक्रमण का सर्जिकल उपचार
- हाइपरबेरिक, मैगॉट्स, वीएसी ड्रेसिंग आदि सहित मधुमेह के पैर के घाव का गैर-सर्जिकल उपचार।
दिल्ली से डब्ल्यूडीएफ/डीएफएसआई-राष्ट्रीय घाव देखभाल परियोजना के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ. अशोक दामिर, हुबली, कर्नाटक से डॉ. सुनील कारी, वरिष्ठ सलाहकार मधुमेह पैर सर्जन, मधुमेह अंग बचाव विभाग के एचओडी, डॉ. सुरेश पुरोहित मधुमेह देखभाल चिकित्सक, हाइपोबेरिक मेडिसिन मुंबई से आए विशेषज्ञ एवं अन्य विशेषज्ञ डायबिटिक फुट के प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा करेंगे।