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लाखों की नौकरी छोड़कर ग्रामीण महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बन गयी ‘पैडवूमन’

2015 से बना रही हैं सस्‍ते सैनेटरी नैपकिन्‍स

लखनऊ। महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान सफाई और स्‍वास्‍थ्‍य के दृष्टिकोण से अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण विषय को लेकर बनायी गयी अक्षय कुमार की फि‍ल्‍म पैडमैन आज से रिलीज हो गयी है अक्षय कुमार की फि‍ल्‍म एक शख्‍स अरुणाचलम मुरुगनाथन से मिलाती है। यह मुरूगनाथन वही शख्स हैं, जिन्होंने ग्रामीण महिलाओं की परेशानी दूर करने के लिए उनकी खातिर सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने की मशीन तैयार की। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि अपने देश में एक ‘पैडवूमन’ भी है जो लाखों रुपये की सैलरी वाला जॉब छोड़कर काफी समय पहले से सस्‍ते सैनेटरी नैपकिन बनाकर इस क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। यह ‘पैडवूमन’ हैं सुहानी मोहन।

 

मीडिया रिपोटर्स के अनुसार सरल डिजाइन्स की को-फाउंडर और सीईओ सुहानी मोहन ने गांवों की महिलाओं की  परेशानी को कम करने के लिए सरल डिजाइन्स की शुरूआत की। सरल डिजाइन्स की शुरुआत साल 2015 में हुई थी। वह कम खर्च में सैनेटरी मैन्युफैक्चर करती है।

 

साल 2011 में आईआईटी मुंबई से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने डोएचे बैंक में इन्वेस्टमेंट बैंकर की नौकरी की। नौकरी के दौरान वह कंपनी की सीएसआर एक्टिविटी में हिस्सा लेती थी। तब उन्हें महिलाओं के हाइजिन को लेकर चौकांने वाले तथ्य मिले। सुहानी ने बताया कि कंपनी की सीएसआर एक्टिविटी के दौरान एनजीओ गूंज के अधिकारी ने उन्हें बताया कि देश में 80 फीसदी महिलाएं सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल नहीं करती। देश में पीरियड के दौरान सफाई को लेकर महिलाएं ही जागरूक नहीं है। उन्हें सैनेटरी नैपिकन ही नहीं इस्तेमाल करने के लिए कपड़ा भी नहीं मिलता। उन्होंने बताया कि अगर घर में 5 महिलाएं हैं, तो वह सभी एक ही चिथड़े कपड़े का इस्तेमाल करती है। इसके कारण उन्हें सबसे ज्यादा इन्फेंक्शन होता है। कुछ ऐसे भी मामले सामने आए जब ब्लाउज के हुक के कारण महिलाओं को टेटनेस हुआ। यह सब देखकर सुहानी ने इनकी मदद करने की ठानी और इस तरह शुरू हुआ उनका ‘पैडवुमन’ का सफर.

 

सुहानी ने सरल डिजाइंस की शुरुआत अपने को-फाउंडर आईआईटी मद्रास ग्रेजुएट मशीन डिजाइनर कार्तिक मेहता के साथ मिलकर की. सुहानी की मां न्यूक्ल‍ियर साइंटिस्ट हैं. वह बचपन से ही  सुहानी को ‘इंदिरा नूई’ की तरह बनने के लिए प्रेरित करती थीं. सुहानी ने बताया कि उनके सैनेटरी नैपकिन तैयार करने के आइडिया को लेकर उनके माता-पिता खुश नहीं थे. उन्हें सुहानी का ये बिजनेस आइडिया पसंद नहीं आया. उन्हें अपने माता-पिता को मनाने में 2 महीनों से भी ज्यादा का समय लगा. सुहानी बताती हैं कि परमिशन देने से पहले उनके माता-पिता ने उनके आइडिया को अपने स्तर पर जांचा-परखा, कई सवाल पूछे और फिर आखि‍र मान गए.

 

सुहानी ने बताया कि वह हमेशा से एंटरप्रेन्योर बनना चाहती थी. अपने इस सपने को ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं से जोड़ते हुए उन्होंने सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने की योजना पर काम शुरू किया. उनका फोकस न सिर्फ सस्ते पैड बनाने पर था, बल्कि इन्हें बाजार में मौजूद महंगे सैनेटरी नैपकिन के मुकाबले क्वालिटी के स्तर पर खड़ा करना भी था.

 

सुहानी ने बताया कि उन्होंने नौकरी छोड़ी और वह टाटा जागृति यात्रा पर गई. इस दौरान 15 दिनों तक देशभर में घूमीं. उन्होंने सैनेटरी नैपकिन बनाने वाली कंपनियों और कई एंटरप्रेन्योर से भी मुलाकात की. इस सफर में वह अरूणाचलम मुरूगनाथन की फैक्ट्री में भी गई थीं. काफी रिसर्च करने के बाद उन्होंने अपने इस सपने को मूर्त रूप दिया और इस तरह शुरू हुआ सरल डिजाइंस का सफर.

 

सुहानी ने आईआईटी मद्रास ग्रेजुएट मशीन डिजाइनर कार्तिक मेहता के साथ मिलकर सरल डिजाइंस की शुरुआत की. महज 2 लाख रुपये के खर्च  से उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की. कार्तिक को सुहानी का आइडिया पसंद आया और उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इसके लिए मशीन तैयार की. महज 2 लाख रुपये के निवेश से स्टार्टअप की शुरुआत हुई.

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