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अगर टीबी है तो करा लें ये जांचें भी, वरना हो सकता है नुकसान

-पायलट प्रोजेक्‍ट में सामने आये हैं चौंकाने वाले आंकड़े

-विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर विशेष जानकारी दी डॉ सूर्यकान्‍त ने

डॉ सूर्यकान्त

सेहत टाइम्‍स  

लखनऊ। क्षय रोग यानि टीबी केवल एक रोग ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक प्रगति का आईना भी है। जांच और उपचार की बेहतर व्यवस्था के बाद भी यह बीमारी जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार करने के लिए शीघ्र जांच और पूरे इलाज के साथ इससे होने वाली मौतों को रोकना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि टीबी से हर साल देश में करीब पांच लाख लोग दम तोड़ देते हैं। यह मौत टीबी के साथ अन्य बीमारियों से होती हैं। टीबी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ते ही एचआईवी, डायबिटीज व कई अन्य बीमारियों के साथ मानसिक समस्याएं घेर लेती हैं। ऐसे में टीबी की पुष्टि होते ही अन्य जरूरी जांच कराकर जोखिम का पता लगाना जरूरी है ताकि उच्च जोखिम वाले मरीजों का खास ख्याल रखकर जीवन बचाया जा सके।

डॉ. सूर्यकान्त, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ और राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम की नॉर्थ जोन टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन का कहना है टीबी के साथ कुपोषण, उच्च रक्तचाप, पैरों में सूजन, रेस्परेटरी रेट, ब्लड सुगर, हीमोग्लोबिन, पल्स रेट, चेस्ट एक्स-रे, ऑक्सीजन सेचुरेशन और बॉडी मॉस इंडेक्स का असामान्य होना, एचआईवी, बलगम में खून और असामान्य तापमान जैसी असामान्यताएं स्थिति को गंभीर बना सकती हैं। इसलिए टीबी की पुष्टि के होते ही इन सब की जांच करवाना भी ज़रूरी है,  इससे यह पता लगाया जा सकता है कि मरीज सामान्य टीबी की दवाओं से ठीक हो जाएगा या उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है। जोखिम का समय से पता लगाने के लिए प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं। 

डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग ने अक्टूबर 2022 से प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी और उन्नाव के उच्च जोखिम वाले एक-एक क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसकी पहल की है। चार जिलों में चिन्हित चार केन्द्रों पर पंजीकृत 639 टीबी मरीजों में 229 यानि 35.8 प्रतिशत मरीज विभिन्न मानकों के आधार पर उच्च जोखिम में पाए गए। इनमें से भी 14 टीबी मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया। आंकड़ों के मुताबिक़ लखनऊ के ठाकुरगंज टीबी अस्पताल पर 204 में 103, कानपुर के उर्सला हास्पिटल पर 146 में 44, बाराबंकी के जिला टीबी अस्पताल में 156 में 56 और उन्नाव के जिला टीबी अस्पताल में 133 में 26 टीबी मरीज उच्च जोखिम के मिले। दो सौ उनतीस उच्च जोखिम वाले टीबी मरीजों में 188 यानि 82.1 प्रतिशत में वजन की कमी मिली और आधे से अधिक मरीजों में न्यून बाडी मॉस इंडेक्स मिला। इन टीबी मरीजों में कई तरह की शारीरिक असामान्यता भी पायी गयी। अति गंभीर मरीजों को जिला स्तरीय अस्पताल में भेजा जाता है जहाँ किसी भी तरह की विषम परिस्थिति को संभाला जा सके, मध्यम रूप से गंभीर मरीजों को सीएचसी/पीएचसी और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से सम्बद्ध कराया जाता है। सामान्य मरीजों की देखभाल पर नजर रखी जाती है। पायलट प्रोजेक्ट के बाद इन जिलों के सभी टीबी यूनिट पर ट्रेनिंग दी जा चुकी है, जहाँ से सभी टीबी मरीजों की जाँच की जाएगी और फॉलोअप किया जायेगा। निकट भविष्य में हेल्थ एंड वेलनेस सेण्टर को भी ट्रेनिंग देकर मरीजों की जाँच और फॉलोअप का काम लिया जायेगा।

डॉ सूर्यकान्त ने कहा कि इसी तरह का एक केस संज्ञान में आया है। यह केस एक्सटेंसिवली ड्रग रजिस्टेंट (एक्सडीआर) टीबी के साथ आठ अन्य बीमारियों से घिरे चंदौली के 37 वर्षीय संजय प्रसाद का है। उनकी हालत देखकर परिजन, रिश्तेदार और आस-पास के लोग तक उनके जीने की आस छोड़ चुके थे। ऐसे में संजय दृढ़ इच्छा शक्ति, परिवार और स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से 65 माह के लम्बे इलाज के बाद स्वस्थ होकर दूसरे टीबी मरीजों को जिन्दगी की आस देने में जुटे हैं। उनकी इसी लगन और कर्मठता को देखते हुए उन्हें जिले का टीबी चैम्पियन बनाया गया है।

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