-मातृ एवं नवजात जीवन रक्षक कौशल कार्यशाला में डॉ प्रीती कुमार ने कहा, इसे रोकना संभव
सेहत टाइम्स
लखनऊ। सामान्य प्रसव के बाद रक्तस्राव होने से प्रसूताओं की सबसे ज्यादा मौत हो रही है, इसे आसानी से रोका जा सकता है। समय पर रक्तस्राव को पहचानकर इलाज मुहैया कराया जा सकता है। यह जानकारी यूपीकॉन की आयोजक सचिव डॉ. प्रीति कुमार ने दी। वे 16 मार्च को केजीएमयू के कलाम सेंटर में आयोजित सुरक्षित मातृत्व सुनिश्चित करने के लिए मातृ एवं नवजात जीवन रक्षक कौशल कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं।
डॉ. प्रीति कुमार ने बताया कि सामान्य प्रसव के बाद पहला घंटा अहम होता है। इसमें प्रसूता की सेहत की निगरानी की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि प्रसव के बाद यूट्रस को सिकुड़ जाना चाहिए पर, कई बार सामान्य प्रसव के बाद यूट्रस सिकुड़ता नहीं है। ऐसे में रक्तस्राव शुरू हो जाता है। यह समस्या प्रसव के 24 घंटे से छह हफ्ते के भीतर होने का खतरा अधिक रहता है। प्रसव के बाद सांस लेने में तकलीफ, बेहोशी, ब्लड प्रेशर में गड़बड़ी आदि लक्षणों को पहचान कर इलाज शुरू करने से प्रसूता की जान बचाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि करीब 19 फीसदी प्रसूताएं जान गंवा रही हैं।
केजीएमयू कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि हर साल तमाम महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत हो रही है। स्टाफ नर्स व दूसरे पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित कर इन मौतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस तरह की वर्कशाप से ज्ञान व तकनीक का आदान प्रदान होता है। जो मरीजों के हित में अहम है।
केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉ. सुजाता देव ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को कम से कम चार बार डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर हीमोग्लोबिन, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज व अल्ट्रासाउंड जांच करानी चाहिए। इससे प्रसव के बाद के खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सामान्य प्रसव की उम्मीद भी बढ़ जाती है।
कार्यक्रम में चेयरपर्सन डॉ. चन्द्रावती ने कहा कि मातृ मृत्युदर में कमी लाने के लिए नर्स व अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षित किए जाने की सख्त जरूरत होती है। क्योंकि नर्स प्रसूताओं के संपर्क में अधिक समय तक रहती हैं। इसलिए नर्सों को प्रशिक्षित होना अधिक आवश्यक है।