-मनोदैहिक लक्षणों से पता लगाते हैं रोग का कारण, उसी हिसाब से करते हैं दवा का चुनाव
-आत्महत्या करने के आवेग को भी समाप्त करती हैं होम्योपैथिक दवाएं
-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर डॉ गिरीश गुप्ता से विशेष वार्ता

सेहत टाइम्स
लखनऊ। होम्योपैथी की अवधारणा ही मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित है। विभिन्न प्रकार की मानसिक स्थितियां, सोच का प्रभाव व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है जिससे अनेक प्रकार के शारीरिक रोग हो जाते हैं। होम्योपैथी में जो दवाएं हैं उनमें किस रोगी को कौन सी दवा देनी है, यह रोगी विशेष की प्रकृति, उसकी पसंद-नापसंद, उसके पूर्व के जीवनकाल और वर्तमान में उसकी मन:स्थिति के अनुसार उसकी केस हिस्ट्री तैयार कर दवाओं का चुनाव किया जाता है। लोगों में आत्महत्या के लिए उठने वाले आवेग को समाप्त करने में भी होम्योपैथिक दवाएं कारगर हैं।
यह जानकारी यहां अलीगंज स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) के मौके पर एक विशेष वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि होम्योपैथी में इलाज रोग का नहीं रोगी का किया जाता है, इसलिए इसमें कोई दवा ऐसी नहीं होती है जिसे कहा जा सके कि यह फलां रोग के लिए है, उन्होंने बताया कि हमारे अनुसंधान केंद्र में रोगी के छोटे-छोटे लक्षणों को हमारी टीम पहले समझती है उसके बाद ही रोगी का इलाज शुरू किया जाता है।
डॉ गिरीश गुप्त बताते हैं कि ऐसे-ऐसे रोगों को होम्योपैथी दवाओं से मात दी गयी है जिसका इलाज आधुनिक चिकित्सा विधि में सिर्फ सर्जरी है। स्त्रियों में होने वाले यूटेराइन फाइब्रॉयड (बच्चेदानी की गांठ), ओवेरियन सिस्ट (अंडाशय की रसौली), पीसीओडी, स्तन में गांठ जैसे रोगों के कारण महिलाओं की मानसिक स्थिति से जुड़े थे। इसके अतिरिक्त ल्यूकोडर्मा, सोरियासिस जैसे अनेक प्रकार के त्वचा रोगों के होने के कारणों में भी मानसिक स्थितियों की अहम भूमिका है। उन्होंने बताया कि आपको जानकर यह हैरानी होगी कि कई बार ऐसा होता है जब मरीज की हिस्ट्री ली जाती है तो कुछ कारण इस प्रकार के होते हैं जिन्हें मरीज या उनके घरवाले जाने-अनजाने बताते ही नहीं हैं, बाद में काफी पूछने पर ही वे खुलकर बताते हैं। उन्होंने बताया कि होम्योपैथिक से इलाज करने के लिए जब तक होलिस्टिक एप्रोच यानी शरीर और मन को एक मानते हुए मनोदैहिक (psychosomatic) लक्षणों को नहीं जाना जायेगा, तब तक रोग होने के कारण तक नहीं पहुंच पायेंगे, और जब कारण ही नहीं जानेंगे तो दवा का चुनाव कैसे करेंगे।
उन्होंने बताया कि स्त्री रोगों और त्वचा रोगों पर उनके द्वारा किये गये शोध विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नर्ल्स में प्रकाशित हो चुके हैं। ज्ञात हो स्त्रियों के इन रोगों पर साक्ष्य आधारित शोधों के बारे में डॉ गुप्ता की लिखी पुस्तकों Evidence-based Research of Homoeopathy in Gynaecology और Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology में विस्तार से जानकारी दी गयी है।
डॉ गुप्ता ने शारीरिक रोगों के मानसिक कारणों के बारे में स्पष्ट करते हुए बताया कि अपने दुर्भाग्य का डर, लाइलाज बीमारी का डर, कैंसर का डर, संकीर्ण जगह का डर, किसी न किसी के साथ रहने की इच्छा, जल्द नाराजगी, चिड़चिड़ापन, नीरसता, सोच की भिन्नता, संदेह, चिंता, घबराहट, सदमा, डरावना सपना, मानसिक आघात, तनाव जैसी चीजों से जब मस्तिष्क जूझ रहा होता है तो शरीर के हार्मोन्स डिस्टर्ब होते हैं। ये हार्मोन्स महिलाओं की बच्चेदानी, अंडाशय और स्तनों पर अपना असर डालते हैं, जिसके फलस्वरूप ट्यूमर/कैंसर जैसे रोगों का उदय होता है। इसी प्रकार त्वचा रोगों का कारण भी हार्मोन्स का डिस्टर्ब होना पाया गया है।
डॉ गुप्ता ने बताया कि होम्योपैथिक दवाओं से आत्महत्या करने जैसी प्रवृत्ति का इलाज करने में भी सफलता मिलती है। वे बताते हैं कि व्यक्ति को बड़ा आर्थिक नुकसान होने से या प्यार में धोखा मिलने से या पति-पत्नी के बीच गहरी अनबन होने आदि से जब वह भावनात्मक रूप से टूट जाता है, और उसे किसी का सहयोग नहीं मिलता तो कई बार ऐसा होता है कि उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति पैदा होती है, उसके अंदर आवेग (इम्पल्स) पैदा होता है और उसी आवेग में वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है, होम्योपैथी में ऐसी कई अति उत्कृष्ट दवायें हैं जो इस आवेग को समाप्त करती हैं।

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