-डॉ गिरीश गुप्ता ने 1982 में शुरू की थी प्रैक्टिस, असाध्य रोगों के होम्योपैथी इलाज के शोध कार्यों की देश-विदेश में गूंज
सेहत टाइम्स
लखनऊ। होम्योपैथी को विज्ञान की मुख्य धारा से जोड़ने का लक्ष्य लेकर रिसर्च के क्षेत्र में नयी-नयी इबारत लिखकर लोगों को अनेक असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाकर भारत, उत्तर प्रदेश और लखनऊ का मस्तक ऊंचा करने वाले होम्योपैथिक विधा के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता ने रविवार 2 अक्टूबर को अपनी होम्योपैथिक यात्रा के चार दशक पूरे कर लिए।
डॉ गुप्ता ने 40 वर्ष पूर्व 2 अक्टूबर 1982 को अपनी प्रैक्टिस लखनऊ में शुरू की थी। हमेशा से सादगी पसन्द रहे डॉ गिरीश गुप्ता ने अपनी क्लीनिक की 40वीं वर्षगांठ भी बिल्कुल सादगी से बिना किसी समारोह के मनायी। हां इस मौके पर हमेशा की तरह उस दिन आने वाले सभी मरीजों और उनके साथ आये लोगों तथा अपने गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के सभी चिकित्सकों व अन्य कर्मियों के बीच मिष्ठान्न का वितरण किया गया।
डॉ गिरीश गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने चांदगंज गार्डन, अलीगंज में दो कमरों में क्लीनिक की शुरुआत की थी। इसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष रह चुके कानपुर यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति, डॉ प्रो राधाकृष्ण ने किया था। उन्होंने बताया कि उद्घाटन के समय प्रो राधाकृष्ण के अतिरिक्त सीडीआरआई जहां उन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान रिसर्च वर्क किया था, वहां के आठ-दस मित्रगण, शुभचिंतक आये थे। उस समय को याद करते हुए हंस कर रहते हैं कि उद्घाटन के समय आने वाले लोगों ने एक-एक कप चाय पी और हो गया उद्घाटन।
डॉ गुप्ता से यह पूछने पर कि आप अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं, इस पर उनका जवाब था कि लोगों की यह धारणा कि होम्योपैथिक दवाएं प्लैसिबो हैं, ऐसे में उनकी धारणा को गलत साबित करने के लिए मुझे यह सिद्ध करना था कि होम्योपैथिक दवाओं में दम है, और यह साइंटिफिक तरीके से कार्य करती हैं, इसीलिए मैंने क्लीनिकल रिसर्च के साथ ही एक्सपेरिमेंटल रिसर्च भी की। उन्होंने बताया कि ये सारी रिसर्च भारत सरकार के ही सीडीआरआई, एनबीआरआई जैसे प्रतिष्ठानों में वहां के वैज्ञानिकों की निगरानी में हुई, इसके बाद ही देश और विदेश के हर उचित और मान्य मंचों पर रिसर्च को स्वीकृति मिली है। यही मेरे लिए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ज्ञात हो रिसर्च का जुनून डॉ गुप्ता पर इस कदर हावी था कि उन्होंने दो बार सरकारी सेवा का ऑफर अस्वीकार कर दिया, एक बार उत्तर प्रदेश सरकार के होम्योपैथी विभाग में तथा दूसरी बार भारत सरकार के होम्योपैथिक रिसर्च इंस्टीट्यूट में सेवा करने से इनकार कर दिया था।
डॉ गिरीश गुप्ता ने अब तक तीन किताबें लिखी हैं, इनमें उनके द्वारा किये गये शोधों का जिक्र किया गया है। इनमें एक किताब ‘एवीडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन गाइनोकोलॉजी’, जिसमें स्त्रियों को होने वाले रोगों पर किये शोध और दूसरी किताब ‘एवीडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्माटोलॉजी’, जो त्वचा के रोगों पर किये गये शोध पर आधारित हैं, तथा तीसरी किताब ‘एक्सपेरिमेंटल होम्योपैथी’ है जिसमें डॉ गुप्ता द्वारा होम्योपैथिक दवाओं के लैब में किये गये शोध के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है।