-शुरुआत में ही कर लें डॉक्टर से सम्पर्क, लम्बे समय तक बचे रहेंगे हिप ट्रांसप्लांट से
-‘ज्वॉइंट सर्जरी विद एडवांस टेक्नोलॉजी’ विषय पर सीएमई आयोजित
सेहत टाइम्स
लखनऊ। कोविड से जंग जीत चुके लोगों को अगर अब कूल्हे में दर्द होता रहता है या फिर मूवमेंट में दिक्कत हो रही है, तो ऐसे लोगों को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि ये हिप के खराब होने के शुरुआती लक्षण हैं।
यह जानकारी यहां गोमती नगर स्थित एक होटल में ‘ज्वॉइंट सर्जरी विद एडवांस टेक्नोलॉजी’ विषय पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में आयोजन सचिव ऑर्थोपैडिक सर्जन डॉ.संदीप कपूर ने देते हुए बताया कि पोस्ट कोविड मरीजों में कूल्हे (हिप) खराब होने की समस्या आ रही है, इनमें वे मरीज ज्यादा हैं जो कोविड के दौरान अस्पताल में भर्ती रहे और जिन्हें स्टेरॉयड दी गयी हैं। उन्होंने बताया कि स्टेरायड देने से खून में क्लॉटिंग सिस्टम बिगड़ जाता है जिसकी वजह से कूल्हों में खून की आपूर्ति बाधित हो जाती है।
डॉ. कपूर ने बताया कि कोविड मरीजों को स्टेरॉयड धड़ल्ले से दी गई, क्योंकि गंभीर मरीजों को बचाने के लिए स्टेरॉयड ही सफल उपचार था। लेकिन स्टेरॉयड देने से, मरीजों में खून का थक्का जमने का सिस्टम बिगड़ जाता है, जिसकी वजह से हिप में पहुंचने वाले खून की आपूर्ति बाधित हो जाती है। खून की आपूर्ति बाधित होने से हिप गोले में सूखापन आने लगता है, और मरीज में दर्द की शुरुआत हो जाती है। उन्होंने बताया कि कुछ समय बाद कूल्हा मूवमेंट में दिक्कत बढ़ जाती है। ऐसे मरीजों को इलाज के द्वारा कुछ दिन तो रोका जा सकता है मगर अंतत: हिप ट्रांसप्लांट कराना पड़ रहा है।
सीएमई में भाग लेने वाले डॉ.कश्यप आदर्शाना ने बताया पोस्ट कोविड मरीजों को कूल्हे में समस्या शुरू होते ही, सीटी स्कैन जांच करा लेनी चाहिये जिससे यदि बीमारी शुरूआती चरण में है तो इलाज के द्वारा कूल्हे को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर शुरुआती चरण में ही मरीज विशेषज्ञ के पास पहुंच जाते हैं तो 50 प्रतिशत मरीजों को हिप ट्रांसप्लांट से बचाया जा सकता है।
डॉ.जिग्नेश पांड्या ने कहा कि ज्वॉइंट सर्जरी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग अत्यंत आवश्यक हो चुका है। इसके लिए यह सीएमई संपन्न हुई है, शरीर में सबसे अधिक समस्या, कन्धा, कुहनी, कलाई, कूल्हा, घुटना, एड़ी में आ रही हैं। सीएमई में बताया गया कि ज्वॉइंट सर्जरी के पहले सीटी स्कैन कराया जाता है, जिसके बाद उस इलाज की रूपरेखा तय करते हैं। डॉ.संदीप गर्ग ने बताया कि पूर्व में इंप्लांट्स प्लेटनुमा होते थे। जिन्हें शरीर में हड़्डी की तरह मोड़कर फिट किया जाता था, वर्तमान में प्राकृतिक जोड़ की तरह इंप्लांट आने शुरु हो गये हैं जो कि मरीजों को काफी राहत दे रहें हैं।