-कुशल चिकित्सक की सलाह से ही शुरू और बंद करनी चाहिये डिप्रेशन की दवायें
सेहत टाइम्स
लखनऊ। डिप्रेशन वाली दवाएं कब शुरू करें और कब समाप्त करें, इस पर निर्णय लेने के लिए सीधा जवाब यह है कि बीमारी होने पर शुरू करें और बीमारी समाप्त होने पर दवायें लेना बंद करें। लेकिन बीमारी है या नहीं है इसे जानने के लिए आवश्यक यह है कि डिप्रेशन के लक्षणों को किस तरह पहचाना जाये लक्षणों में उदासीपद, घबराहट, उलझन, नींद में कमी, आत्महत्या के विचार आना, बुरे विचार आना, शरीर में दर्द होना शामिल हैं। चूंकि कभी-कभी ये दिक्कतें बहुत से लोगों को हो जाती हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उस व्यक्ति को डिप्रेशन हो गया, लेकिन ये दिक्कतें अगर 15-20 दिनों से ज्यादा लगातार बनी रहे, और इतनी सीवियर हो कि व्यक्ति की दिनचर्या, उसका कार्य प्रभावित होने लगे या यह पर्सनल लाइफ को डिस्टर्ब करने लगे तो इसे तो यह सोशल ऑक्यूपेशनल पर्सनल डिस्फंक्शन कहते हैं। इसका अर्थ है कि बीमारी की स्थिति बन रही है और हमें डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिये।
यह जानकारी सीनियर कन्सल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ मोहम्मद अलीम सिद्दीकी ने रविवार को इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा द्वारा यहां आईएमए भवन में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं एक वृहद सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में दी। उन्होंने बताया कि एंटीडिप्रेसेंट दवायें लक्षणों पर काबू करती है। जैसे ब्लड प्रेशर की दवायें कंट्रोल करती हैं वैसे ही डिप्रेशन की दवायें इसके लक्षणों को कंट्रोल करती है इसलिए आवश्यक यह है कि जब तक डिप्रेशन का फेज चल रहा है तब तक दवा चलती रहनी चाहिये। उन्होंने बताया कि दवा जब चल रही होती है तो स्थिति कंट्रोल में होती है लेकिन अंदर ही अंदर डिप्रेशन का असर चल रहा होता है इसलिए बेहतर यही होता है कि डिप्रेशन का पूरा फेज निकल जाये तब तक दवा बंद नहीं करनी चाहिये।
उन्होंने बताया कि कुछ मरीजों में तो फेज समाप्त होने के बाद दवा बंद कर दी जाती है लेकिन कुछ प्रकार के मरीजों में पुन: डिप्रेशन होने की संभावना बनी रहती है, यही नहीं डिप्रेशन के फिर से उभरने से व्यक्ति के दूसरे रोगों पर भी असर पड़ता है इसलिए कुछ लोगों में दवा लम्बी चलती है जबकि कुछ ऐसे भी लोग होते है जिन्हें जीवनपर्यन्त दवायें दी जाती हैं। डॉ अलीम ने बताया कि इस तरह अगर दवा से कोई विशेष एलर्जी होती है तो बंद की जाती है या फिर चिकित्सक को लगता है कि अब बिना दवा के काम चल जायेगा तो बंद की जाती है, अन्यथा इन दवाओं को चलाना चाहिये।
डॉ अलीम ने बताया कि कुछ लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि दवाएं लम्बे समय तक खाओ तो नुकसान करती हैं, इस बारे में मैं बताना चाहता हूं कि ऐसा नहीं है बल्कि स्थिति इसके उलट है क्योंकि ऐसा देखा गया है कि डिप्रेशन के समय ब्रेन में हल्की माइक्रोलेवल पर सूजन, इन्फ्लेमेशन, डिग्रेशन की स्थिति होती है, ऐसे में जब दवायें चलायी जाती हैं जिससे ब्रेन के कमजोर होने की स्थिति रुक जाती है। उन्होंने बताया कि ऐसे में देखा जाये तो दवायें ब्रेन को सेव करती हैं और बुढ़ापे में ब्रेन को होने वाले नुकसान से बचाती है बशर्ते दवाएं कुशल चिकित्सक की सलाह से दी जा रही हों।
उन्होंने बताया कि इन दवाओं को एंटी कैंसर थेरेपी में फंगल इन्फेक्शन में एक दवा के रूप में दी जाती हैं, जिससे रिस्पॉन्स बेहतर हेता है। उन्होंने कहा कि यह भी देखा गया है कि बहुत से केस में जब ब्लड प्रेशर या ब्लड शुगर सामान्य नहीं आ रही हैं तो जब साथ में एंटी डिप्रेसेंट दवायें दी गयीं तो उनका लेवल कंट्रोल हो गया।
डिप्रेशन के कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि ये जेनेटिक होती है इसलिए इससे बिल्कुल तो बचना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर है कि यदि हम अपनी जीवन शैली को बेहतर रखेंगे तो काफी हद तक इससे बचे रह सकते हैं। जीवन शैली बेहतर रखने के लिए नींद पूरी लें, समय से सोकर उठें, नशे से बचें, रोजाना आधा से एक घंटा व्यायाम करें। उन्होंने बताया कि ये बातें हमें ब्रेन के साथ ही किडनी रोगों, लिवर रोगों, हृदय रोगों, पैरों की बीमारियों से भी बचाती हैं।