Saturday , November 23 2024

राजा और चार रानियां

जीवन जीने की कला सिखाती कहानी – 58 

डॉ भूपेन्‍द्र सिंह

प्रेरणादायक प्रसंग/कहानियों का इतिहास बहुत पुराना है, अच्‍छे विचारों को जेहन में गहरे से उतारने की कला के रूप में इन कहानियों की बड़ी भूमिका है। बचपन में दादा-दादी व अन्‍य बुजुर्ग बच्‍चों को कहानी-कहानी में ही जीवन जीने का ऐसा सलीका बता देते थे, जो बड़े होने पर भी आपको प्रेरणा देता रहता है। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के वृद्धावस्‍था मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ भूपेन्‍द्र सिंह के माध्‍यम से ‘सेहत टाइम्‍स’ अपने पाठकों तक मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य में सहायक ऐसे प्रसंग/कहानियां पहुंचाने का प्रयास कर रहा है…

प्रस्‍तुत है 58वीं कहानी –  राजा और चार रानियां

एक समय की बात है, एक राजा था। उसकी चार पत्नियां थीं, जो एक से बढ़कर एक सुन्दर एवं गुणों से युक्त थीं। राजा उन चारों से अनुराग रखता था परंतु उसे चौथी पत्नी सर्वाधिक प्रिय थी फिर तीसरी, दूसरी और पहली। पहली पत्नी उनमें सर्वाधिक वयस्क थी।

एक दिन राजा वन में आखेट के लिए गया। वहां उसे एक अज्ञात कीट ने काट लिया और वह एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित हो गया। वैद्य एवं तांत्रिकों ने अपनी सारी विद्या का प्रयोग किया परंतु उसकी अवस्था को सुधार नहीं पाए। अंतत: उन्होंने यह कहा कि राजा की मृत्यु निकट है और अब वह कुछ ही दिनों के अतिथि हैं।

राजा ने अपनी संपत्ति को रानियों में विभाजित करने का निर्णय किया, क्योंकि उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, परंतु सामान्य रूप से विभाजन करने की जगह कौनसी रानी उसे कितना प्रेम करती है इस आधार पर संपत्ति को बांटने का निर्णय किया। उसने एक चतुर योजना बनाई और सभी रानियों को एक-एक कर के बुलाया।

उसने कहा- “मेरे जीवन के केवल तीन दिन शेष हैं” मैं तुम्हें एक रहस्य बताता हूं। बहुत पहले मुझे एक साधू ने एक शक्तिशाली यंत्र दिया था जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। यदि मैं साथ में एक और व्यक्ति को ले जाऊं, परंतु इससे पहले की स्वर्ग में प्रवेश करें हमे दारुण यंत्रणा सहन करनी होगी और नर्क में सात वर्ष व्यतीत करने होंगे। क्योंकि हम एक दूसरों से सर्वाधिक प्रेम करते हैं इसलिए मैंने यह निश्चय किया है कि मैं तुम्हें अपने साथ आने का यह अवसर प्रदान करूंगा।”

उसने चौथी रानी से आरम्भ किया जो सब से छोटी थी और जिससे वह सबसे अधिक प्रेम करता था। उन्होंने उससे पूछा, “क्या तुम मरने के बाद, मेरे साथ चलोगी ? रानी को राजा की आसन्न मृत्यु पर पूर्ण विश्वास था, और उसने भावना रहित स्वर में कहा “इसमें संदेह नहीं कि मैं आप से प्रेम करती हूं परंतु प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मृत्यु का स्वयं ही सामना करना होता है। “मैं यहां ही रानी के रूप में रहना पसंद करूंगी। मुझे तो प्रेम एवं सत्कार की आदत है।” मतलब चौथी पत्नी ने साफ़ मना कर दिया और चली गई।

राजा को अपनी तीसरी पत्नी भी बहुत प्यारी थी और उसपर उन्हें गर्व था। उन्होंने उसे बुलाया और साथ में मरने का पूछा। तीसरी पत्नी बोली, “मैं आपको यह सिद्ध करूंगी कि मैंने आपसे सबसे अधिक प्रेम किया है। पर मै आपके साथ नहीं चल सकती, मुझे अपनी ज़िन्दगी बहुत प्यारी है।

राजा की दूसरी पत्नी, हर मुश्किल समय में उनका साथ देती आ रही थी। राजा ने उससे भी साथ चलने का पूछा। दूसरी पत्नी ने कहा, “माफ़ कीजिये महाराज” ! मैं इसमें आपकी कोई मदद नहीं कर सकती। मैं आपका अंतिम संस्कार ज़रूर करवा सकती हूं और मैं उस वक़्त तक आपके साथ रहूंगी।

तभी एक आवाज़ आती है, “मैं आपके साथ चलूंगी और जहां भी जाएंगे वहां जाऊंगी। भले ही वो मौत के बाद का सफर हो। ”राजा ने देखा, ये उनकी पहली पत्नी की आवाज़ थी। राजा अब शांति अनुभव करता है कि कोई तो है जो उसे बिना किसी अपेक्षा के प्रेम करता है, पर उन्होंने उसपर सबसे कम ध्यान दिया था। 

राजा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्होंने कहा, “जब तक मैं जीवित था, तुम्हारा ध्यान रखना चाहिए था। तुम्हारी कद्र करनी चाहिए थी।” उन्होंने पहली पत्नी से माफ़ी मांगी।

इस कहानी का भावार्थ हमें क्या सिखाती है?  वास्तव में यह कथा आप की, हमारी और प्रत्येक मनुष्य की है। हर व्यक्ति की चार निम्नलिखित पत्नियां होती हैं–

चौथी पत्नी है, हमारा (शरीर) हम इसे खूब सजाते हैं, गहने पहनाते हैं, अच्छे कपडे पहनाते हैं पर आखिर में ये हमारा साथ छोड़ देती है।

हमारी तीसरी पत्नी होती है (धन- संपत्ति) हम जीवन का बहुत सारा समय, घर को साजो-सामान से भरने में लगा देते हैं। वो भी हमारे साथ नहीं चल सकती।

दूसरी पत्नी है हमारा (परिवार और दोस्त) वो हमारा हर सुख दुःख में साथ देते हैं, लेकिन ज़्यादा से ज़्यादा, वो हमारे आखि‍री समय में हमे अलविदा कहने आ सकते हैं, पर साथ में नहीं चल सकते।

पहली पत्नी होती है हमारा (चरित्र व संस्कार) जिस पर हम ज़्यादा ध्यान नहीं देते। पर ये ही वो पत्नी है जो मरने के बाद भी हमारा साथ नहीं छोड़ती, सदा साथ जुड़ी रहती है।

हममे से अधिकतर लोग इस कहानी के राजा की तरह ही जीवन जीते हैं। ऊपर लिखे क्रमानुसार ही अपनी पत्नियों से प्रेम करते हैं। हालांकि यह जीवन का आधार भी हैं और आवश्यक भी है कि साजो-सामान के साथ आरामदायक जीवन जियें। परिवार और दोस्तों को, प्यार से संजो कर रखें। अपने शरीर का ध्यान रखें,  इसे स्वस्थ रखें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.